Home > राज्य > अन्य > नई दिल्ली > सत्ता का तिलिस्म: बाहरी दिल्ली की दो दर्जन सीटें

सत्ता का तिलिस्म: बाहरी दिल्ली की दो दर्जन सीटें

हरियाणा के नेता निभाएंगे हार-जीत में भूमिका क्षेत्रीय दल की ताल ठोकने की तैयारी

सत्ता का तिलिस्म: बाहरी दिल्ली की दो दर्जन सीटें
X

नई दिल्ली। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने चुनावी समीकरण बदलकर जिस तरह अप्रत्याशित जीत हासिल की, उसका प्रभाव अब दिल्ली में देखा जा रहा है। जहां छोटे-छोटे दल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बड़ी पार्टियों की वैशाखी पर सवार होकर बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहते हैं। गठबंधन सरकारों के गठन के दौरान कभी-कभी एक-दो सीटों वाली पार्टियां भी अच्छा खासा सौदा कर लेती हैं। कभी-कभी तो छोटे-छोटे दलों के पास सत्ता की चाबी ही हाथ लग जाती है। इसको देखते हुए हरियाणा की जजपा, आरपीआई, बसपा जदयू जैसी पार्टियां दिल्ली में अपना विकल्प तलाश रही हैं। जजपा अध्यक्ष व दिल्ली के प्रभारी व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला भाजपा अध्यक्ष एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। माना जा रहा है कि कुछ सीटों पर जजपा की भाजपा के साथ बात बन सकती है। वैसे केंद्र सरकार में राज्यमंत्री रामदास अठावले की आपीआई को भी भाजपा के कोटे से चार सीटें मिलने की चर्चा है।

दिल्ली राज्य की एक तिहाई विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर हरियाणा की भाषा-संस्कृति, माहौल, व्यापारिक कामकाज और राजनीति का सीधा असर पड़ता है। बाहरी दिल्ली की अधिकतर सीटें हरियाणा की वजह से प्रभावित हैं। बदलते राजनीतिक परिदृश्य में इन सीटों की हार-जीत दिल्ली की सरकार गठन में अहम भूमिका अदा कर सकती है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर खुद इस चुनाव में खसे सक्रिय बताए जाते हैं। संगठन ने पूर्व मंत्री व जाट नेता ओम प्रकाश धनखड़ पर भी भरोसा जताया है। हरियाणा कोटे के दोनों केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर, राव इंद्रजीत सिंह गुर्जर, पूर्व मंत्री चैधरी बीरेंद्र सिंह, और सभी आठ सांसदों को दिल्ली में उतारने की योजना है। भाजपा दिल्ली की कई सीटों पर उनकी हिस्सेदारी के मुताबिक भागीदारी देने की योजना पर काम कर रही है। हालांकि भाजपा के कई जाट नेता नहीं चाहते कि दुष्यंत को साथ लिया जाए, पर हाईकमान की रणनीति दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा सीटें की है। लिहाजा न चाहते हुए भी जजपा के साथ तालमेल की पींगें बढ़ाई जा रही हैं।

भाजपा की चाल को भांपते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी की हरियाणा टीम को दिल्ली में उतारने का फैसला किया है। आप पार्टी के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष पंडित नवीन जयहिन्द अपनी टीम की कई बैठकें ले चुके हैं। वहीं कांग्रेस की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने कमान संभाली है। हुड्डा के दिल्ली निवास पर सोमवार को हुई हरियाणा नेताओं की बैठक में दिल्ली जिताने की पहल की गई है। बताया जा रहा है कांग्रेस दिल्ली में सक्रिय रह चुकीं कुमारी सैलजा, किरण चैधरी, रणदीप सिंह सुरजेवाला, कैप्टन अजय सिंह यादव, दीपेंद्र सिंह हुड्डा को उतारने वाली है।

दिल्ली में वैसे तो लंबे समय से कांग्रेस और भाजपा का ही अस्तित्व रहा है लेकिन 2012 में अन्ना आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी ने चमत्कारी प्रदर्शन करते हुए दोनों ही शीर्ष पार्टियों को सत्ता से दूर कर दिया। कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार पंद्रह साल शासन किया। भाजपा 1993 में सत्ता में आने के बाद 22 सालों से सत्ता से दूर बनी हुई है। दिल्ली में महाराष्ट्र, हरियाणा फिर झारखंड में जिस तरह क्षेत्रीय पार्टियों ने राज्यों में न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, बल्कि सत्ता में भी हिस्सेदारी की। इस लिहाज से ये दल चाहते हैं कि एक-दो सीट जीतकर वे दिल्ली में भी सत्ता का रास्ता ढ़ूंढ़ सकते हैं।

हरियाणा के नेता दिल्ली की दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर अपना दमखम दिखाकर पार्टी को जीत की दहलीज तक पहुंचा सकते हैं। इनमें दिल्ली का बवाना, मुंडका, नजफगढ़, पालम, छतरपुर, बदरपुर, नागलोई, मटियाला, बादली, नरेला, बुराड़ी, रिठाला, किराड़ी और उत्तम नगर, आदि ऐसी सीटें हैं जिन पर हरियाणा के लोगों की खासी भूमिका समझी जाती है। ये सीटें रिंग रोड के इलाके में आती हैं। इन सीटों पर हरियाणा के लोग हार-जीत में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

Updated : 13 Jan 2020 4:30 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top