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सरकार के पास देश की अर्थव्यवस्था को लेकर कोई रोडमैप नहीं : परकला प्रभाकर

सरकार के पास देश की अर्थव्यवस्था को लेकर कोई रोडमैप नहीं : परकला प्रभाकर
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दिल्ली। मोदी सरकार में पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकला प्रभाकर ने देश की अर्थव्यवस्था को लेकर कड़ा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि देश में मंदी है। सरकार नकार रही है। रविशंकर प्रसाद कह रहे हैं कि फिल्म की टिकट बिक रही है मतलब अर्थव्यवस्था ठीक है। लेकिन सरकार के पास इसका कोई कंक्रीट जवाब नहीं है। उनका कहना है कि मौजूदा भाजपा सरकार के पास अर्थव्यवस्था को लेकर कोई रोडमैप नहीं है। एक अंग्रेजी अखबार में सोमवार को "ए लोडइस्टर टू स्ट्री द इकोनॉमी" शीर्षक से छपे उनके लेख में वित्तमंत्री के पति परकला प्रभाकर ने लिखा है कि भाजपा सरकार को नेहरू की आलोचना करने के बजाय, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के आर्थिक मॉडल से सीख लेनी चाहिए।

प्रभाकर ने कहा है कि मौजूदा भाजपा सरकार के पास कोई रोडमैप नहीं है कि गिरती अर्थव्यवस्था का कैसे संभाला जाए? उन्होंने कहा है कि प्रमुख समस्या ये है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने के विचार को भाजपा ने वर्षों से नज़रंदाज़ किया है। जनसंघ के दिनों से ही भाजपा ने नेहरू की समाजवादी राजनीति की आलोचना की। पार्टी की आर्थिक विचारधारा केवल नेहरू मॉडल के विरोध तक ही सीमित रही।

उन्होंने लिखा है कि अर्थव्यवस्था पर आएं तो भाजपा की आर्थिक नीति "नेति-नेति" यानी "ये नहीं-ये नहीं" तक सीमित रही, जबकि किसी भी मौके पर भाजपा ने अपनी "नीति" का ज़िक्र नहीं किया। उन्होंने कहा कि भाजपा की जिस नीति ने पार्टी को सरकार दी, पार्टी को भारत के राजनीतिक संवाद में केन्द्रीय भूमिका दी, उस नीति का अर्थव्यवस्था से कोई मतलब नहीं रहा है। प्रभाकर ने देश की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि 1998 से 2004 तक देश में गैर कांग्रेसी सरकार रही, लेकिन इस दौरान भी देश की आर्थिक नीति को सुधारने की दिशा में बड़े कदम नहीं उठाए गए।"पार्टी का इंडिया शाइनिंग कैम्पेन वोटरों को लुभा पाने में असफल रहा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोगों को लगने लगा कि सरकार के पास आर्थिक दर्शन और कोई फ्रेमवर्क नहीं है। इसी वजह से पार्टी की 2004 लोकसभा चुनाव में हार हुई। लेकिन प्रभाकर ने ये भी बताया है कि पार्टी के मौजूदा नेतृत्त्व को इन बातों के बारे में अच्छे से पता है। मौजूदा नेतृत्त्व ने बेहद चालाक तरीके से सरकार के अर्थव्यवस्था के एजेंडे को मौजूदा लोकसभा चुनाव के कैम्पेन के समय सामने नहीं रखा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रवाद और खांटी राजनीति को फोकस कर कैंपेन का केंद्र बनाया ।

परकला प्रभाकर ने 1991 की नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इन नीतियों की उसके बाद की सभी सरकारों – चाहे वो किसी के भी सहयोग से बनी हों – ने तारीफ की है । कांग्रेस सत्ता में आई तो नेहरू की आर्थिक चेतना को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया , लेकिन नरसिम्हा राव के साथ के बिना। यहीं पर इसका ज़िक्र भी ज़रूरी है कि कांग्रेस ने मनमोहन सिंह का सहारा लिया। उन्हें 2004 में भारत के प्रधानमंत्री का पद दिया।

प्रभाकर ने कहा है कि भाजपा नेहरू की आर्थिक नीतियों की आलोचना करती है, नेहरू के आर्थिक ढांचे का विरोध करना भाजपा ने रोका नहीं है। वक़्त रहते अगर भाजपा नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के आर्थिक एजेंडे की सहायता ले लेती या उसे अपना ही लेती, तो भाजपा को इस मोर्चे पर सफलता मिल सकती थी। लेकिन भाजपा ने अभी तक उस आर्थिक ढांचे को न तो चुनौती दी है, न तो उसे नकारा है। अगर भाजपा अभी भी आक्रामक तरीके से उस आर्थिक नीति को अपना लेती है तो यह नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धि ही होगी और देश की अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ जाएगी।

Updated : 14 Oct 2019 2:42 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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