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कांग्रेस ने कहा - सत्ता में आए तो नागरिकता कानून नहीं करेंगे लागू

कांग्रेस ने कहा - सत्ता में आए तो नागरिकता कानून नहीं करेंगे लागू
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नई दिल्ली। दिल्ली में अभी चुनावों की तारीखों का एलान नहीं हुआ है लेकिन हर राजनीति दल ने अपनी कमर कस ली है। जहां बीजेपी सीएए और एनआरसी में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को घेर रही है। वहीं कांग्रेस ने एलान किया है अगर वह सता में आए तो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी को लागू नहीं होने देंगे। कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा है कि वह इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करेंगे। कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल को चुनौती दी है कि वह सीएए और एनआरसी को लेकर विधानसभा का सत्र बुलाए।

अजय माकन ने कहा है कि अगर वो दिल्ली विधानसभा जीतकर सत्ता में आती है तो दिल्ली में एनसीरसी और एनपीआर को (वर्तमान स्वरूप में) लागू नहीं करेगी। एनपीआर 2010 और 2020 में बहुत फ़र्क़ है। लोगों का मुख्य मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए ये सब लाया जा रहा है। वहीं दिल्ली में कार्यकर्ता बूथ सम्मेलन के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अभी-अभी प्रधानमंत्री जी सीएए को लेकर आएं। सीएए को कैबिनेट ने मंजूरी दी लोकसभा ने पारित किया और केजरीवाल, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने विशेषकर जनता का गुमराह किया और दंगे करवाने का काम किया है। सोनिया जी, राहुल जी, केजरीवाल जी आंख खोलकर देख लो परसों ही ननकाना साहिब पवित्र स्थान पर हमला करके सिख भाइयों का आतंकित करने का काम पाकिस्तान ने किया है।

आपको बता दें कि दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पाटीर् ने सत्तर में से 67 सीटें जीतीं थीं। आप की आंधी में विरोधियों के पैर उखड़ गये थे। भाजपा सिर्फ तीन सीट ही जीत पाई थी जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। पिछले चुनाव में आप को 54 प्रतिशत मत मिले थे। आप को मिले जबर्दस्त समर्थन के बावजूद भाजपा 33 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही थी। इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान हुआ था। उसे करीब नौ प्रतिशत वोट हासिल हुये थे।

इस चुनाव में आप के पास मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रूप में जाना माना चेहरा है और उसने 'अच्छे बीते पांच साल लगे रहो केजरीवाल' का नारा भी बुलंद कर दिया लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा नहीं है। पिछले चुनाव में भी भाजपा के सामने इसका संकट था। उसने अंतिम समय में भारतीय पुलिस सेवा की पूर्व अधिकारी किरन बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था लेकिन वह भाजपा की नैया पार लगाना तो दूर अपनी सीट भी नहीं बचा पायी थीं।

वर्ष 1993 विधानसभा गठन के बाद हुये पहले चुनाव में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल हुयी थी और मदन लाल खुराना के नेतृत्व में उसकी सरकार बनी जो पूरे पांच वर्ष चली हालांकि उस दौरान तीन मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1998 के चुनाव में कांग्रेस ने उसे सत्ता से बाहर कर दिया और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनी। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने अगले दोनों चुनाव जीते और शीला दीक्षित पंद्रह वर्ष तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। कांग्रेस को 2013 में करारी हार का सामना करना पड़ा था लेकिन उसके समर्थन से अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनायी थी। केजरीवाल ने 49 दिन सरकार चलाने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और करीब एक वर्ष तक दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा रहा था।

कांग्रेस ने पिछले वर्ष दिल्ली की बागडोर एक बार फिर शीला दीक्षित के हाथों सौंपी थी और वह स्वयं भी उत्तर पूर्वी दिल्ली से मैदान में उतरी थीं और मनोज तिवारी के हाथों पराजय मिली। गत जुलाई में दीक्षित की मौत के बाद पार्टी के समक्ष फिर से नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया था। करीब दो माह तक विभिन्न नामों पर चली चर्चा और खींचतान के बाद पार्टी ने वरिष्ठ स्थानीय नेता सुभाष चोपड़ा को अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर खिलाड़ी कीर्ति आजाद को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया।

Updated : 5 Jan 2020 11:17 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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