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कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने दिखाई राहुल के प्रति एकजुटता

गहलोत बोले हार का ठीकरा किसी एक पर नहीं हम सब हैं जिम्मेदार

कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने दिखाई राहुल के प्रति एकजुटता
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नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का फैसला अटल रहेगा या वापस होगा? इस पर रहस्य और तमाम किंतु-परंतु के चलते फिलहाल मामले का पटाक्षेप अभी होता नजर नहीं आ रहा। सोमवार को कांग्रेस शासित मुख्यमंत्रियों ने राहुल गांधी के आवास पर जाकर मुलाकात की। मुलाकात के दौरान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, पंजाब के मुख्यमंत्री केप्टन अमरिंदर सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व पांडिचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायण स्वामी ने एक स्वर में राहुल गांधी से अध्यक्ष पर बने रहने का आग्रह किया। इन मुख्यमंत्रियों ने राहुल गांधी के प्रति अपनी-अपनी वफादारी की मिसाल पेश की। पार्टी में यह लाॅबी दिखाबे के लिए ही सही पर राहुल गांधी के इस्तीफे की वापसी के लिए जबर्दस्त दबाव बनाती नजर आई। लेकिन बावजूद इसके स्थिति अभी भी अनिर्णय की है। हालांकि, कांग्रेस के ही दूसरे खेमे से यह बात निकलकर आई कि महाराष्ट के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे का अध्यक्ष पद के लिए नाम आगे बढ़ाया गया है। संभवतः उनके नाम पर आम सहमति बन जाए। पार्टी में दो तरह की लाइन लेकर आखिर क्या साबित किया जा रहा है? क्या राहुल गांधी का अध्यक्ष के तौर पर वाकई कोई विकल्प तलाशा जा रहा है? या केवल दिखावा, हो-हल्ला मात्र है जिससे कि ठहरे हुए पानी में पत्थर फेंककर हलचल मचाकर पटकथा को किसी और पड़ाव पर ले जाया जा सके।

दरअसल, महाराष्ट सहित पांच राज्यों में आसन्न विधानसभा चुनावों के चलते कांग्रेस महाराष्ट में सुशील कमार शिंदे को बतौर मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करने पर विचार कर रही थी। शिंदे दलित चेहरा होने के साथ-साथ साफ-सुथरी छवि के नेता भी माने जाते हैं। उनका दावा कहीं मजबूत न हो जाए इसके लिए शिंदे विरोधी लाॅबी ने ही रणनीति के तहत उनके नाम पर हल्ला मचवाया हो ताकि लाइन में आ रहे शिंदे को हटाया जा सके।

कांग्रेस पार्टी का लंबा इतिहास है। पार्टी कई बार बुरे दौर से गुजरी, विभाजित हुई लेकिन फिर संभली और सत्ता में लौटी। किसी की क्या मजाल जो गांधी परिवार के सदस्य को चुनौती देता नजर आया हो। कमलनाथ हों या अशोक गहलोत या फिर वी नारायण स्वामी ये सब कांग्रेस की राजनीति और दस जनपथ की वफादारी के पर्याय ही हैं। तभी अशोक गहलोत राहुल गांधी से मुलाकात के बाद दावा करते नजर आए कि राहुल गांधी सभी मुख्यमंत्रियों से मिले। सभी को उन्होंने धैर्य पूर्वक सुना। वे जल्द ही निर्णय पर विचार करेंगे और पार्टी का कामकाज संभालेंगे। संकट की घड़ी में सभी राहुल गांधी के साथ खड़े हैं ऐसे में पार्टी की मिली हार की जिम्मेदारी भी सामूहिक रूप से ली जानी चाहिए। तब भला क्यों ठीकरा अकेले राहुल गांधी पर फूटे। गहलोत ने तो राहुल गांधी के 2019 के अभियान को सर्वश्रेष्ठ बताया। भाजपा की सत्ता में वापसी को वे महज सरकारी मशीनरी की मदद मानते हैं। कांग्रेस की असफलता नहीं। उनका मानना है कि 2019 में चुनाव का नतीजा कांग्रेस के कार्यक्रम, नीति व विचारधारा की हार कदापि नहीं।

एक तरफ एकजुटता की मिसाल तो दूसरी तरफ पार्टी मुख्यालय में इस्तीफे की वापसी को लेकर धरना, अनशन और भूख हड़ताल। हरियाणा और दिल्ली प्रदेश इकाई के नेताओं ने 24 अकबर रोड पर राहुल गांधी से इस्तीफा वापस लेने का आग्रह किया। प्रदेश इकाई के पदाधिकारी भी उन नेताओं को बाहर करने की मांग करते नजर आए जो पार्टी में सर्पाें की तरह कुंडी मारकर बैठे हैं। पार्टी को गुमराह करते हैं। ये वो नेता हैं जो पार्टी के लिए मैदान में जाना तो दूर कार्यकर्ताओं को ही गुमराह करते हैं।

Updated : 1 July 2019 4:30 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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