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केजरीवाल के कारनामों के खिलाफ भाजपा का पोल-खोल अभियान

शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के नाम पर केवल छलावा: विनय सहस्त्रबुद्धे दिल्ली सरकार के स्कूल बन गए आप पार्टी के कार्यकर्ताओं की कमाई का जरिया

केजरीवाल के कारनामों के खिलाफ भाजपा का पोल-खोल अभियान
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नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने अपना जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है। दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर भाजपा के सातों सांसद व पार्टी पदाधिकारी आप पार्टी की सरकार के कारनामों को उजागर कर रहे हैं। भाजपा इस बीच दिल्ली के लोगों को जागरूक कर रही है कि वो किसी भी तरह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के छलावे में न आएं। जहां तक केजरीवाल का शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरी और व्यवस्था परिवर्तन का दावा है तो भाजपा ने इसे ढ़कोसला करार दिया है। लोकनीत शोध केंद्र ;पीपीआरसीद्ध ने 917 आरटीआई के माध्यम से जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, वे चैकाने वाले हैं। केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के स्कूलों में अध्यापकों की भर्ती करने के बजाए ज्यादातर आप पार्टी के कार्यकर्ताओं को भर कर स्कूलों को आय का जरिया बना दिया है।

भाजपा सांसद व पीपीआरसी के निदेशक डा. विनय सहस्त्रबुद्धे ने केजरीवाल सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया कि वे काम कम और बातें ज्यादा करते हैं। उनके पास गिनाने के लिए बमुश्किल दो-तीन काम हैं, जिनके बल पर वे डींगें हांक रहे हैं। इन्हीं दो-तीन कामों पर केजरीवाल ने जनता की गहरी कमाई विज्ञापनों पर खर्च कर डाली।

आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर केंद्रीय विद्यालयों और दिल्ली सरकार के स्कूलों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि 2015 के मुकाबले 2019 में दसवीं परीक्षा के परिणामों में बड़ा अंतर सामने आया है। केंद्रीय विद्यालयों का पास प्रतिशत 99.59 से बढ़कर 99.99 प्रतिशत पहुंचा तो दिल्ली सरकार के स्कूलों का 95.81 से घटकर 71.58 प्रतिशत हो गया है। 2019 में 28.42 प्रतिशत दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले दसवीं कक्षा के छात्र परीक्षा में असफल रहे थे जबकि केंद्रीय विद्यालय के इसी सत्र में असफल रहने वाले छात्रों का औसत 0.21 प्रतिशत था।

विनय सहस्त्रबुद्धे के अलावा भाजपा के सातों सांसदों व दिल्ली प्रभारी श्याम जाजू ने केजरीवाल की नीतियों को जनता के साथ छलावा करार दिया है। छलावा इसलिए क्योंकि अपने चुनावी घोषणा पत्र में केजरीवाल ने 500 से ज्यादा स्कूल खोलने की बात की थी। इस अवधि में वे एक भी स्कूल नहीं खोल पाए तो फिर उनसे विश्वविद्यालय खुलवाने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? जहां तक इन विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती की बात करें तो अभी भी 51 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली हैं। वहीं दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में 88 प्रतिशत से ज्यादा अध्यापकों को भर्ती किया गया है। दिल्ली सरकार के स्कूलों में शिक्षा के स्तर भी बद से बदतर है। स्मार्ट क्लास के नाम पर बच्चों का ठगा जा रहा है। उन्हें दिवास्वप्न दिखाए जाते हैं।

नई दिल्ली से भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी कहती हैं कि दिल्ली सरकार के स्कूलों का शैक्षणिक स्तर भी नकारात्मक हो गया है। यही कारण है कि 2018-19 में कक्षा नववीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में असफल रहे छात्रों की संख्या 155436 थी, जिनमें से महज 52582 छात्रों को ही उन्हीं कक्षाओं में दाखिला मिल सका है।

पूर्व क्रिकेटर व पूर्वी दिल्ली से सांसद गौतम गंभीर कहते हैं कि केजरीवाल सरकार के निकम्मेपन का ही नतीजा है कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में खेल में रूचि रखने वाले छात्रों को प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए जगह तक मुहैया नहीं करवाई गई। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और नएं आयाम स्थापित करने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिस तरह जनता को गुमराह करने का पाप कर रहे हैं, जो निश्चय ही अक्षम्य है।

Updated : 28 Dec 2019 4:00 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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