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प्रीतम से प्रीति की विवशता और कैडर की पीड़ा!"

प्रीतम से प्रीति की विवशता और कैडर की पीड़ा!
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अपराध:वैमनस्यता फैलाना,महिलाओं एवं धार्मिक प्रतीकों के प्रति अभद्र भाषा।

आरोपी :प्रीतम सिंह लोधी

पूर्व व्रत:ग्वालियर एवं शिवपुरी जिले के विभिन्न थानों में हत्या के प्रयास,मारपीट,लूट जैसे 36संगीन अपराधों में नामजद।

विशिष्ट उपलब्धि:जिलाबदर औऱ रासुका।

सम्प्रति: भाजपा के वरिष्ठ नेता। 2013 एवं 2018 में पिछोर विधानसभा से भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार रहे।नगर निगम ग्वालियर में भाजपा टिकट पर बहु पार्षद एवं 2022में भी उमीदवार।

ग्वालियर। इसे भाजपा का वैशिष्ट्य कहें या वैचारिक स्खलन की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति। यह पीड़ा आज दिनभर भाजपा के एक बड़े वर्ग में अनऔपचारिक रूप से अभिव्यक्त होती रही।प्रीतम सिंह लोधी का एक विवादित बयान आज दिन भर प्रदेश में चर्चा और आक्रोश का वायस बना रहा। भाजपा नेता प्रीतम सिंह लोधी ने शिवपुरी जिले के खरेह गांव में कल जो बयान दिया है, वह सनातन आस्था वाले सामाजिक जीवन में किसी भी रूप में स्वीकार योग्य नही है। इसे कहते हुए ग्वालियर के एक वरिष्ठ नेता ने अपनी पीड़ा को उड़ेलते हुए कहा कि प्रीतम लोधी ने संवाद की मर्यादाओं को न केवल तार तार किया बल्कि हमारी पार्टी को भी कटघरे में खड़ा कर दिया जिसके नेता होने के दम्भ में उन्होंने यह सब कुछ बोला है। पार्टी को जीवन के चार दशक देनें वाले यह नेता आगे जोड़ते है कि कथा वाचकों से लेकर पांडित्य कर्म को जिस टुच्चायाई अंदाज में प्रीतम लोधी ने लांछित किया है उसे देख सुनकर फूल सिंह बरैया ब्रांड नेता भी भी शरमा जाएं।

जनसंघ के जमाने से पार्टी के लिए मतदान केंद्र के बाहर टेबिल पर बैठने वाले शिवपुरी के रमेश भाई कहते है कि" दुःखद यह नही है कि प्रीतम सिंह ने कथा भागवत औऱ पांडित्य कर्म को बिना आधार सार्वजनिक रूप से लांछित औऱ अपमानित किया है।दुःखद तो मप्र में भाजपा की राजनीतिक विवशता इस पूरे घटनाक्रम में अधोरेखित हुई है।"वस्तुतःकोई भी राजनीतिक दल अपनी लोकछवि की कीमत पर किसी को भी अधिस्वीकृत नही दे सकता है। बकौल रमेश भाई भागवतकारों से लेकर पुरोहितों को खुलेआम गाली देनें वाले प्रीतम सिंह जैसे हिस्ट्रीशीटर के मामले में भाजपा का स्टैंड असंदिग्ध रूप में जनमानस के बीच संदेह पैदा कर रहा है। कमोबेश इसी पीड़ा को व्यक्त करते हुए पार्टी की आईटी सेल से जुड़े यशवंत कहते है कि क्या सोशल मीडिया के इस दौर में लाखों लोग प्रीतम के प्रवचनों को नही सुन रहे है ?फिर पार्टी को किस साक्ष्य की आवश्यकता है ?अपने विचार सम्पन परिवार में ऐसे घिनोने और निकृष्ट संभाषण करने वाले नेताओं की क्या आवश्यकता है ?क्यों प्रथम दृष्टया प्रीतम को पार्टी से बाहर का रास्ता नही दिखाया गया?क्या दीनदयाल परिसर में आकर उनके माफीनामे से उनके द्वारा किये गए इस पापकर्म से मुक्ति मिल जायेगी?बेशक चुनावी राजनीति के जातिगत गणित में प्रीतम की रणनीतिक माफी क्षम्य हो लेकिन समाज के जिस धरातल पर आज की भाजपा खड़ी है ,वहां इसे कोई भी क्षम्य नही मान सकता है। 2014 में अमेरिका से आकर बनारस में मोदी जी के चुनाव में काम करने आशुतोष ने अपनी फ़ेसबुक वाल पर लिखा है "सवाल यह है कि दुनियां के सबसे बड़े दल औऱ कार्यालय वाले इस दल को आखिर प्रीतम जैसे वैचारिक रूप से कंगाल औऱ असभ्य नेताओं की आवश्यकता क्या आन पड़ी है?" "क्या 50 फीसदी मतदाताओं औऱ हर पांचवे घर को भाजपाई बनाने वाली पार्टी को अपने उस कैडर पर भरोसा नही जिसका वैचारिक अधिष्ठान संस्कार और भारतबोध की प्रतिबद्धता से सराबोर है।"

विदिशा निवासी एक भाजपा कार्यकर्ता के स्टेटस पर लिखी पंक्ति काबिलेगौर है- "अनाधिकार सलाह यही है कि प्रीतम जैसे फिदायीन दस्ते पालने पोसने से बेहतर है चुनावी राजनीति में एक दो नही बीसियों हार गर्व के साथ स्वीकार की जाए।"

Updated : 25 Aug 2022 6:19 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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