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परिवार की राजनीतिक विरासत कौन संभालेगा, शेजवलकर या अशोक

परिवार की राजनीतिक विरासत कौन संभालेगा, शेजवलकर या अशोक
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ग्वालियर। रॉयल फेमिली के बाद ग्वालियर में पहली बार राजनीतिक रूप से दो समृद्ध परिवारों के बीच लोकसभा का दंगल मतदाताओं को देखने को मिलेगा। एक ओर विवेक शेजवलकर के पास कृष्ण कृपा का आशीर्वाद है तो पिता-पुत्र दोनों को शहर का प्रथम नागरिक होने का गौरव भी उन्हें ताकत देगा। दूसरी तरफ अशोक सिंह अपने पितामह डोंगर सिंह कक्का के स्वतंत्रता संघर्ष की थाती और पिता राजेन्द्र सिंह के मंत्रित्व काल में किए गए कार्य को लेकर मतदाताओं के बीच जा रहे हैं।

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में तीन बार ही ऐसे मौके आए हैं, जब चुनाव महल की छाया से दूर लड़ा गया था। यह चुनाव जयभान सिंह पवैया-चन्द्र मोहन नागौरी, जयभान सिंह पवैया-रामसेवक सिंह गुर्जर, नरेन्द्र सिंह-अशोक सिंह के बीच का चुनाव रहा है। इन चुनावों में उम्मीदवारों के पास कोई राजनीतिक विरासत नहीं थी, लेकिन इस बार 2019 के चुनाव में दो परिवारों की राजनीतिक विरासत दांव पर आ गई है। भाजपा उम्मीदवार विवेक नारायण शेजवलकर के पीछे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक रहे स्व.नारायण कृष्ण शेजवलकर खड़े हैं। स्व. शेजवलकर ग्वालियर से दो बार सांसद चुने गए और वे एक बार राज्यसभा सदस्य भी रहे। उन्हें एक बार नगर निगम का महापौर बनने का भी सौभाग्य मिला। ऐसा ही सौभाग्य विवेक शेजवलकर को एक नहीं बल्कि दो बार मिला है। शेजवलकर अभी भी महापौर हैं। भाजपा की नामांकन सभा में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बाबूराव यानि नारायण कृष्ण शेजवलकर का जिक्र करना इस परिवार की राजनीतिक विरासत को रेखांकित कर रहा था।

अशोक सिंह के पीछे भी पिता और पितामह की शख्सियत

लगातार चौथी बार कांग्रेस से चुनाव मैदान में उतरे अशोक सिंह के साथ भी पिता और पितामह की शख्सियत जुड़ी है। अशोक के पितामह डोंगर सिंह कक्का के स्वतंत्रता संघर्ष को सब जानते हैं। पिता स्व.राजेन्द्र सिंह एक बार मध्यप्रदेश शासन में मंत्री भी रहे हैं। महल से दूर रहने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए दूसरा दरबार सदैव गांधी रोड पर इनका बंगला रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों के पास राजनीति में पैर जमाने के लिए मजबूत राजनीतिक विरासत है। अशोक सिंह लोकसभा के तीन चुनाव हार चुके हैं। इन दोनों उम्मीदवारों की खासियत यह है कि उनके चेहरे सौम्यता से सराबोर हैं। कितनी भी कठिन परिस्थिति हो इनके चेहरे पर मुस्कान देखने को मिल ही जाएगी। परिवार की राजनीतिक विरासत, चेहरे की सौम्यता व वाणी में घुली मिठास के बीच मतदाता तपन से भरी जेठ मास की 12 मई को मतदान करेंगे। ग्वालियर संसदीय क्षेत्र का मतदाता दोनों उम्मीदवारों की खासियतों पर गौर तो करेगा ही, साथ ही दिमाग में यह भी रखेगा कि देश का प्रधान किसे बनाया जाए, नरेन्द्र मोदी को या गठबंधनों की गांठ में उलझे राहुल गांधी को।

अब जोर पकड़ेगा चुनावी माहौल

नामांकन पत्र जमा होने की आखिरी तारीख निकलने के बाद अब चुनावी माहौल जोर पकड़ेगा, दोनों ओर से स्टार प्रचारकों की झड़ी लगेगी और छठे दौर के मतदान की तारीख नजदीक आते-आते देश का मानस भी लगभग साफ हो चलेगा कि हमें किस परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे वोट के पानी से सींचना है। दोनों उम्मीदवारों की लड़ाई में बसपा उम्मीदवार कितने वोट ले जाएगी, इस पर भी चुनाव का नतीजा निर्भर है। इस चुनाव में बसपा अपने परंपरागत जाटव समुदाय से कितने वोट ले पाएगी और कुशवाहा समाज का उम्मीदवार अपने सजातीय वोट में कितनी सेंध लगाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों की इस पर नजर है। एडवोकेट और अमर सिंह माहौर का दावा कांग्रेस की जीत का है तो प्रतिष्ठित व्यापारी पारस जैन कहते हैं कि उन्हें भाजपा की जीत पर पूरा भरोसा है। एक तरह से यह पूरा चुनाव ब्रांड वेल्यू के इर्द-गिर्द घूम रहा है। मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आएगी बहुत कुछ साफ हो जाएगा। (हिस/लाजपत अग्रवाल)

Updated : 24 April 2019 10:50 AM GMT
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