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कमलाराजा अस्पताल पर बढ़ा भार बिरलानगर एमबीएसयू में ताले

सिविल सर्जन नहीं दे रहे ध्यान चिकित्सक भी परेशान

कमलाराजा अस्पताल पर बढ़ा भार बिरलानगर एमबीएसयू में ताले
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ग्वालियर। मुरार जिला अस्पताल के सिक न्यू बोर्न यूनिट (एसएनसीयू) के बंद हो जाने के बाद अब कमलाराजा चिकित्सालय के एसएनसीयू में भार बढ़ता जा रहा है। एसएनसीयू में क्षमता से तीन गुना अधिक नवजात शिशु भर्ती हैं, लेकिन सिविल सर्जन इसके लिए कोई वैकल्पि व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं, जबकि बिरलानगर प्रसूतिगृह का एनबीएसयू भी बंद पड़ा हुआ है। इस कारण चिकित्सकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

दरअसल पिछले दिनों मुरार जिला अस्पताल के एसएनसीयू में शॉर्ट सर्किट होने के कारण आगजनी की कई घटनाएं सामने आई थीं, जिसकी जांच तीन दिवसीय कमेटी बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. पवन गर्ग, इंजीनियर हेमंत शर्मा एवं मनीष शर्मा द्वारा की गई थी। जांच में इंजीनियर श्री शर्मा ने कहा था कि एसएनसीयू में मानकों के हिसाब से विद्युत फिटिंग नहीं की गई है। घटिया विद्युत फिटिंग होने के कारण ही शॉर्ट सर्किट हो रहे हैं। इसी के चलते एसएनसीयू को बंद कर विद्युत फिटिंग कराई जा रही है। इस कारण अब नवाजात शिशुओं को भी सीधे कमलाराजा अस्पताल के एसएनसीयू में भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं, गत दिवस मुरैना जिला अस्पताल के एसएनसीयू में हुए फॉल्ट के कारण वहां से भी नवजात शिशुओं को केआरएच ही रैफर किया जा रहा है। इसके चलते अब केआरएच के एसएनसीयू में 30 वार्मर और 10 फोटो थैरेपी मशीन पर 113 से अधिक नवजात शिशु भर्ती हैं। इसके साथ ही ग्वालियर-चंबल संभाग के साथ-साथ शहर के निजी नर्सिंगहोम में जन्म लेने वाले गंभीर नवजात शिशु भी केआरएच भेजे जाते हैं। इस कारण यहां क्षमता से तीन गुना अधिक नवजात शिशु भर्ती हैं। वहीं भर्ती संख्या अधिक होने के कारण एक-एक बार्मर पर तीन-तीन नवजातों को भर्ती किया जा रहा है। इसके बाद भी सिविल सर्जन बिरलानगर प्रसूतिगृह के न्यू बोर्न स्टेबलाइजेशन यूनिट (एनबीएसयू) को शुरू नहीं करा पा रहे हैं, जबकि यहां छह रेडियांट वार्मर और दो फोटो थैरेपी रखी हुई हैं, जिसमें कम से कम दस बच्चों को भर्ती किया जा सकता है, लेकिन स्टाफ व चिकित्सक न होने के कारण यहां ताला पड़ा रहता है। जब इस मामले पर सिविल सर्जन डॉ. वी.के. गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने बिरलानगर के एनबीएसयू में स्टाफ भेजने की जगह यह कहते हुए मामले को टाल दिया कि एनबीएसयू और एसएनसीयू अलग-अलग होते हैं, एनबीएसयू में सिर्फ दिन में ही भर्ती किया जाता है, जबकि मुरार का एसएनसीयू जब तक ठीक नहीं होता है, तब तक मुरार के स्टाफ को एनबीएसयू में भेजकर बच्चों को भर्ती किया जा सकता है, जिससे केआरएच का भार भी कुछ हद तक कम होगा।

Updated : 18 Aug 2018 11:46 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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