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अलाउद्दीन खां की मूर्ति लगाने को लेकर बढ़ा विवाद

ग्वालियर से नहीं उनका कोई नाता

अलाउद्दीन खां की मूर्ति लगाने को लेकर बढ़ा विवाद
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ग्वालियर। यह सच है कि संगीत और कला को सरहदों में नहीं बांधा जा सकता है, लेकिन भारतीय शिक्षण संस्थाओं में जब कला जगत या संगीत से जुड़े महान लोगों की प्रतिमाएं लगाई जाती हैं तो निश्चित तौर पर इसमें भारतीय या क्षेत्रीयता की झलक दिखाई देनी चाहिए। आईटीएम यूनिवर्सिटी में पूर्व पाकिस्तान में जन्में बंग्लादेशी मूल के अलाउद्दीन खां की प्रतिमा लगाए जाने का कला प्रेमियों के साथ संगीत प्रेमियों ने विरोध दर्ज कराया है।

शहर के संगीतज्ञों व कला प्रेमियों का कहना है कि ग्वालियर के तानसेन, पंडित कुमार गंधर्व सहित कई संगीतज्ञ व चर्चित हस्तियों के नाम होने के बाद भी उनकी मूर्ति लगाने की बजाय किसी विदेशी संगीतज्ञ की प्रतिमा लगाने का क्या उद्देश्य हो सकता है यह समझ से परे है। उल्लेखनीय है कि आईटीएम यूनिवर्सिटी में सुप्रसिद्ध सरोदवादक उस्ताद हाफिज अली खां साहब, ग्वालियर घराने के सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ कृष्णराव पंडित के अलावा पूर्व पाकिस्तान में जन्में बांग्लादेशी मूल के निवासी उस्ताद अलाउद्दीन खां की प्रतिमा भी लगा रहा है। कला प्रेमियों का कहना है कि विदेशी मूल के संगीतज्ञ की प्रतिमा लगाकर यूनिवर्सिटी प्रशासन कहीं न कहीं ग्वालियर से जुड़े महान संगीतज्ञों का अपमान करने का प्रयास कर रहा है। जबकि ग्वालियर संगीत का गढ़ रहा है और यह तानसेन जैसे महान संगीत की जन्म स्थली है उसके बाद भी ऐसे महान संगीतज्ञों की मूर्ति स्थापित करने की बजाय एक विदेशी संगीतज्ञ की मूर्ति लगाकर आईटीएम यूनिवर्सिटी अनावश्यक विवाद को आमंत्रित कर रहा है।

राजनीतिक फायदे के लिए अर्जुन सिंह ने खोली थी अकादमी

मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने राजनीतिक आधार पर बांग्लादेशी संगीतज्ञ उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी का गठन कर विरोध को हवा दी थी। जबकि मप्र से जुड़े कई संगीतज्ञ तानसेन, पंडित कुमार गंधर्व, उस्ताद रजब अली खां, लता मंगेश्कर, उस्ताद आमिर खां जैसी विभूतियों के नाम शामिल हैं। उनके नाम पर भी यह अकादमी खोली जा सकती थी। उस समय इसका विरोध हुआ था पर सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिए इस अकादमी का नाम अलाउद्दीन के नाम पर रखा।

ग्वालियर में हुआ था फरीदा खानुम का विरोध

ग्वालियर में पाकिस्तान की संगीतज्ञ फरीदा खानुम ने संगीत की प्रस्तुति दी थी उस समय भारी विरोध हुआ था। आयोजकों को भी विरोध का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में अलाउद्दीन खां की मूर्ति लगाने का भी बड़े स्तर पर विरोध हो सकता है।

इनका कहना है

आईटीएम यूनिवर्सिटी के चांसलर रमाशंकर सिंह अपने शोरूम को सजाने के शौकीन है। इसलिए वह लोगों कहने एवं उन्हें ओबलाइज करने के लिए संगीतज्ञों एवं अन्य लोगों की मूर्तियां लगा रहे हैं। ग्वालियर से जुड़े कई बड़े संगीतज्ञ हैं उनकी भी मूर्तियां लगाई जा सकती हैं।

-अशोक आनंद, रंगकर्मी

ग्वालियर में सबसे पहले बैजू बाबरा की मूर्ति लगनी चाहिए न कि अन्य संगीतज्ञों की। वह उस समय भारत के सर्वश्रेष्ठ गायक थे। यह खुशी की बात है कि कृष्णराव पंडित एवं हाफिज अली की मूर्ति लगा रहे हैं पर अलाउद्दीन खां की मूर्ति लगाने की बात समझ से परे है। अलाउद्दीन खां का ग्वालियर से कोई वास्ता नहीं है। वह मैहर बाबा के नाम से जाने जाते थे इनका ग्वालियर से कोई लेना-देना नहीं है। उनकी जगह पर ग्वालियर के किसी हस्ती की लगाते तो बहुत अच्छा होता।

-ईश्वरचंद्र करकरे, संगीतज्ञ

यूनिवर्सिटी में तीन महान विभूतियों की मूर्तियां लगाई जा रही हैं, जिसमें अलाउद्दीन खां की मूर्ति भी शामिल हैं। जब मप्र में उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी चल रही है और वह देश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर के संगीतज्ञ थे। ऐसे में विवि परिसर में उनकी मूर्ति लगाना कहां गलत है।

-अनिल माथुर

जनसंपर्क अधिकारी, आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर

Updated : 12 July 2018 1:53 PM GMT
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