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वेदों और गीता के व्याख्यानों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे डॉ. दिवाकर विद्यालंकार

साहित्यकार डॉ. दिवाकर विद्यालंकार का निधन

वेदों और गीता के व्याख्यानों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे डॉ. दिवाकर विद्यालंकार
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ग्वालियर, न.सं.। देश के जाने-माने वरिष्ठ साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. दिवाकर विद्यालंकार का सोमवार की रात्रि को दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया। वह 84 वर्ष के थे और वह पिछले कुछ समय से दिल की बीमारी से ग्रसित थे और अस्वस्थ चल रहे थे। दिल्ली में उपचार के दौरान अंतिम सांस ली। उनके एक बेटा और एक बेटी है। दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनका जाना ग्वालियर-चंबल संभाग ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अपूर्णीय क्षति है।

डॉ. विद्यालंकार की हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा पर थी अद्भुत पकड़

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. दिवाकर विद्यालंकार शहर के ही नहीं बल्कि देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद् थे। हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने जो अमिट छाप छोड़ी है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके बारे में बताया जाता है कि हिन्दी व संस्कृत पर उनकी जितनी अच्छी पकड़ थी, उससे कहीं अधिक अंग्रेजी पर उनकी पकड़ थी। वेद, पुराण व श्रीमद् भगवत गीता के श्लोक व पंक्तियां उन्हें कंठस्थ थीं। अपने भाषणों की शुरूआत वे वेद व गीता के आख्यानों से ही करते थे। साहित्य व शिक्षा का कोई भी बड़ा मंच उनके बिना अधूरा माना जाता था। डॉ. विद्यालंकार अपने भाषणों व पंक्तियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने के साथ ही ज्ञान की एक नई ऊर्जा का संचार कर देते थे। बताते हैं कि शहर में जब किसी बुजुर्ग व वरिष्ठजन की उठावनी होती थी और उन्हें बुलाया भी नहीं जाता था तो भी वह बिना बुलाए ही वहां पहुंच जाते और एक घंटा बैठकर गीता दर्शन व वेदों के ऊपर आख्यान देते थे। डॉ. विद्यालंकार के साथ लम्बे समय तक साहित्य की एक नई पटकथा गढऩे वाले वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश तोमर बताते हैं कि डॉ. विद्यालंकार हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी व भारतीय दर्शन के पुरोधा थे। महाविद्यालयों में हिन्दी के आचार्य रहते हुए उन्होंने नगरों में नए-नए रचनाकारों को गढ़ा, उनसे पाण्डुलिपियां लिखवाईं, उन्हें प्रोत्साहित किया और हिन्दी व संस्कृत को बढ़ाने में एक अलग छाप छोड़ी। उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों व आलेखों की समीक्षा की, जो आज ग्रंथ बन सकती हैं। डॉ. विद्यालंकार के असमय निधन से आज समीक्षा के क्षेत्र में ग्वालियर शून्य की स्थिति में पहुंच गया है। वह मध्य भारत शिक्षा समिति के वरिष्ठ सदस्य के साथ-साथ साहित्य व शिक्षा जगत से जुड़ी संस्थाओं से भी जुड़े रहे। उन्होंने सैकड़ों पुस्तकों व आलेखों की समीक्षा करने के साथ ही बड़े-बड़े मंचों से हिन्दी व संस्कृत को बढ़ाने के लिए आख्यान दिए।

हरि के द्वार से निकलकर ग्वालियर में रम गए

हरि के द्वार यानि हरिद्वार में जन्मे डॉ. विद्यालंकर की शुरूआती शिक्षा गुरुकुल में हुई। हिन्दी में स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 60 के दशक में महाविद्यालयीन शिक्षा में बतौर हिन्दी के आचार्य पद पर उनका चयन हुआ और देश की हृदय स्थली मध्यप्रदेश को कर्मभूमि बना लिया। शुरूआती समय में उन्होंने पन्ना व छतरपुर सहित अन्य जिलों में महाविद्यालयीन छात्रों को हिन्दी की अविरल धारा में पिरोया और गढ़कर मातृभाषा को आचरण में उतारने की शिक्षा दी। इसके बाद वह तानसेन की नगरी ग्वालियर आए और यहां की मिट्टी में रम कर रह गए। वे एमएलबी महाविद्यालय में प्राचार्य के पद से सेवानिवृत हुए।

उनका जाना साहित्य के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति: तोमर

डॉ. विद्यालंकार के असमय निधन पर केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा है कि वे श्रेष्ठजन, वुद्धिजीवी और अच्छे वक्ता थे। भाषा पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी। भारतीय दर्शन और पौराणिक आख्यानों का उपयोग वे अपने व्याख्यानों में इतनी सरलता से करते थे कि लोग मंत्रमुग्ध हो उठते थे। इस तरह यूं उनका चले जाना सचमुच मेरे लिए तथा ग्वालियर अंचल के लिए अपूरणीय क्षति है। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर ने ट्वीट करते हुए अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की और कहा कि डॉ. दिवाकर विद्यालंकार जी का देवलोक गमन, यह ग्वालियर के विद्वत समाज के लिए विभीषिका से कम नहीं है। विषय कोई भी रहा हो, मास्टर चाबी आदरणीय विद्यालंकार जी ही होते थे। शास्त्रोक्त ज्ञान, भाषा का सम्मान, संस्कृति अभिमान, अंत: तेज ऐसा कि व्याख्यित करने को शब्द नहीं। रिक्तता कभी नहीं भरेगी।

साहित्य सभा में श्रद्धांजलि सभा आज

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. दिवाकर विद्यालंकार और वरिष्ठ समाजसेवी व साहित्य सभा के वरिष्ठ सभाषद मुरारीलाल माहेश्वरी के निधन पर मध्य भारतीय हिन्दी साहित्य सभा भवन दौलतगंज में 11 दिसम्बर बुधवार को सायं छह बजे से श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा।

Updated : 10 Dec 2019 11:31 PM GMT
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