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प्रदेश में धड़ल्ले से जारी है रेत उत्खनन, फिर भी रेत की कमी

तस्कर पड़ोसी राज्यों में भेज देते हैं 23 मिलियन टन रेत, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

प्रदेश में धड़ल्ले से जारी है रेत उत्खनन, फिर भी रेत की कमी
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भोपाल। यह जानकर हैरानी होगी की मप्र की नदियों में सालाना करीब 62 मिलियन टन रेत का खनन होने के बाद भी यहां रेत की कमी बनी रहती है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार मप्र में हर वर्ष 49.14 मिलियन टन रेत की मांग होती है, लेकिन 39 मिलियन टन रेत की ही आपूर्ति हो पाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि 23 मिलियन टन रेत आखिर कहां जाती है। केंद्रीय सांयिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश के करीब 9 राज्य ऐसे हैं जहां के निर्माण उद्योग रेत की कमी का सामना कर रहे हैं। उनमें मप्र भी शामिल है।

पड़ोसी राज्यों में जा रही अवैध रेत

मप्र खनिज विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश में 1,266 रेत की खदाने हैं जिनमें खनन होता है। इनमें से 106 खदाने नर्मदा बेसिन में हैं और 1106 दूसरी नदियों में। लेकिन खनन कारोबार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि प्रदेश की सभी 207 नदियों में रेत का अवैध खनन हो रहा है। इन नदियों से सालाना 62 मिलियन रेत निकाली जा रही है। इसमें से 23 मिलियन रेत पड़ोसी राज्यों में अवैध रूप से पहुंचाई जा रही है। सबसे अधिक रेत उत्तर प्रदेश, फिर महाराष्ट्र और राजस्थान भेजी जा रही है। इस कारण मप्र में रेत की मांग पूरी नहीं हो पा रही है।

मिलती है मुंह मांगी कीमत

देश में निर्माण उद्योग की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नदी की रेत का महत्व बढ़ता जा रहा है। रेत की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होने के कारण इसकी कीमत भी स्थाई नहीं रहती है। इसलिए अलग-अलग राज्यों और अलग-अलग शहरों में रेत की कीमतों में अंतर होता है। इसी का फायदा उठाने के लिए रेत की कालाबाजारी होती है। देश में मप्र की नदियों की रेत को निर्माण कार्य के लिए बेहतर माना जाता है। इसलिए इसकी डिमांड पड़ोसी राज्यों में अधिक होती है। महाराष्ट्र और राजस्थान में तो यहां की रेत की मुंह मांगी कीमत दी जाती है। सूत्र बताते हैं कि पड़ोसी राज्यों में रेत की मांग की आपूर्ति करने के लिए संगठित तरीके से माफिया जुटा हुआ है।

अन्य राज्यों में मांग-आपूर्ति में अंतर

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार देश भर में निर्माण क्षेत्र 2010 से 2016 के बीच 6 फीसदी कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट से बढ़ा है। लेकिन बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त रेत नहीं है। 2017-18 में, खान मंत्रालय (एमओएम) ने 14 प्रमुख रेत उत्पादक राज्यों का सर्वेक्षण किया। इसके अनुमान हरियाणा, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश को छोडकऱ बाकी सभी राज्यों में रेत की मांग और आपूर्ति में अंतर है।

अवैध खनन का कारण

मार्च में सरकार ने खान मंत्रालय के सर्वेक्षण के आधार पर रेत खनन फ्रेमवर्क शुरू किया। इस फ्रेमवर्क ने उन कारणों की पहचान की, जिनके चलते राज्य अवैध रेत खनन से निपटने में असफल रहे। 14 राज्यों में से 11 ने पिछले तीन से चार वर्षों में छूट नियमों को बदल दिया है। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और तेलंगाना ने अपनी रेत की कीमतों को अधिसूचित किया हुआ है, लेकिन शेष राज्यों में यह अस्थिर बनी हुई है जहां मांग-आपूर्ति का अंतर बाजार मूल्य निर्धारित करता है। इसी बाजार मूल्य का फायदा उठाने के लिए मप्र में माफिया रेत का अवैध खनन करवाते हैं। मप्र में सबसे ज्यादा अवैध खनन मुरैना, भिंड, दतिया, ग्वालियर, शिवपुरी, सतना, कटनी, अशोकनगर, छतरपुर, पन्ना, सीहोर, रायसेन, नरसिंहपुर और दमोह में हो रहा है। ये वे इलाके हैं, जहां से रसूखदार नेता निर्वाचित होते आए हैं।

राज्य मांग आपूर्ति

(मिलियन (मिलियन टन

टन प्रतिवर्ष) प्रतिवर्ष)

गुजरात 70 58

उत्तराखंड 59.1 पर्याप्त

राजस्थान 56 36

तमिलनाडु 53.71 18.36

उत्तरप्रदेश 45 18

मध्यप्रदेश 49.14 39

आंध्रप्रदेश 32 10

कर्नाटक 30 24

तेलंगाना 22.5 13.23

पंजाब 16 11.5

हरियाणा 8.5 9.8

सरकार की शह पर नर्मदा सहित सभी नदियों में रेत का अवैध खनन हो रहा है। माफिया इतना निडर है कि खनन रोकने पर वह जान लेने को तैयार हो जाता है। यह सब शासन-प्रशासन की शह पर हो रहा है।

-अजय सिंह, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष

Updated : 11 Aug 2018 12:38 PM GMT
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स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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