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42 करोड़ के घोटाले में जेडी पर मेहरबानी क्यों?

42 करोड़ के घोटाले में जेडी पर मेहरबानी क्यों?
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विशेष संवाददाता भोपाल

दिसम्बर 2015 से जुलाई 2018 के बीच आबकारी विभाग के इंदौर कार्यालय में हुए 42 करोड़ के घोटाले में दोषी माने गए अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय जांच चल रही है। वहीं ठेकेदारों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है। लेकिन इस घोटाले में प्रथम दृष्टया दोषी संयुक्त संचालक (वित्त) एस.आर.मौर्य को न केवल आरोपियों की सूची से मुक्त रखा गया है, बल्कि उन्हें इस घोटाले के जांच दल में भी शामिल किया गया है। जेडी की लापरवाही अथवा संलिप्ता प्रत्यक्ष नजर आने के बावजूद न तो भाजपा सरकार ने इन्हें दोषी माना और न ही कांग्रेस की सरकार इन्हें दोषी मान रही है।

उल्लेखनीय है कि इंदौर के ठेकेदारों द्वारा दिसम्बर 2015 से जुलाई 2018 के बीच शराब समूहों के ठेके लेने के लिए कोषालय में जो चालान जमा कराए थे, उन चालानों पर उल्लेखित राशि को पेन से बढ़ाकर कई गुना अधिक कर विभाग के साथ धोखाधड़ी की। जुलाई 2018 में जब यह गड़बड़ी इंदौर आबकारी कार्यालय में पकड़ में आई तब घोटाला उजागर हुआ। खास बात यह है कि कोषालय में जमा राशि और विभाग को प्राप्त हो रही राशि के सत्यापन से संबंधित दस्तावेज 'दौजी' का सत्यापन कोषालय अधिकारी को करना होता है। लेकिन विभाग द्वारा इस अवधि में 'दौजी' कोषालय को भेजी ही नहीं गई। 'दौजी' विभाग द्वारा भेजी जा रही है अथवा नहीं इसकी निगरानी की जिम्मेदारी आबकारी विभाग के संयुक्त संचालक (वित्त) की होती है। लेकिन इस तरह की गड़बड़ी लगातार ढाई साल से अधिक चलती रही। संयुक्त संचालक (वित्त) श्री मार्य की पदस्थापना के बाद उन्होंने इस महत्वपूर्ण दस्तावेज की निगरानी को जानबूझकर अनदेखा किया अथवा लापरवाहीवश ऐसा हुआ। इस बात की जांच सबसे पहले होनी चाहिए। अगर संयुक्त संचालक ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करते तो दिसम्बर 2015 में अथवा श्री मौर्य की पदस्थापना के बाद ही यह गड़बड़ी उजागर हो सकती थी। लेकिन तत्कालीन संयुक्त संचालक (वित्त) आर.एस.चौहान और वर्तमान संयुक्त संचालक (वित्त)एस.आर.मौर्य दौनों ने ही इसे नजरअंदाज किया। और वर्तमान संयुक्त संचालक एस.आर मौर्य को तत्कालीन आबकारी आयुक्त अरुण कोचर ने इस घोटाले के लिए गठित जांच दल में शामिल कर दिया। इस तरह इस घोटाले में प्रत्यक्ष रूप से दोषी नजर आ रहे संयुक्त संचालक श्री मौर्य को न केवल विभाग के अधिकारियों ने बल्कि सरकार ने भी संरक्षण दे रखा है।

उल्लेखनीय है कि आबकारी विभाग में तीन सालों में हुए 42 करोड़ रुपए के इस घोटाले में कई शराब ठेकेदारों के लगभग 42 करोड़ रुपए के फर्जी चालान आबकारी विभाग के पास जमा किए। इस आधार पर उन्हें शराब के ठेके मिलते रहे, जबकि शासन के खजाने में यह पैसा पहुंचा ही नहीं। इस तरह शासन को लगभग 42 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया गया। इस मामले में तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे, सहायक जिला आबकारी अधिकारी धर्मेन्द्र सिंह सिसोदिया, सुखनंदन पाठक, आबकारी उप निरीक्षक कौशल्या साबनानी, मुख्य लिपिक डीएस परमार और कर्मचारी अनमोल गुप्ता के अलावा गड़बड़ी करने वाले ठेकेदारों को इस मामले में आरोपी माना गया। वहीं मुख्यालय में राशि के मिलान संबंधी दस्तावेज 'तौजी' की निगरानी की जिम्मेदारी संभालने वाले संयुक्त संचालक (वित्त) एस.आर.मौर्य को आरोपियों की सूची में ही शामिल नहीं किया गया। हालांकि अब तक आबकारी विभाग घोटाले की राशि में से आधे से अधिक वसूल कर चुका है लेकिन लगभग 19 करोड़ की राशि अब भी वसूली जाना शेष है। विभाग का कहना है कि फर्जी चालान की बची हुई राशि वसूलने के लिए ठेकेदारों की संपत्ति कुर्क करने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

इन ठेकेदारों पर हुई थी प्राथमिकी

अविनाश सिंह मण्डलोई/विजय श्रीवास्तव (एमजी रोड समूह), राजेश जायसवाल (जीपीओ चौराहा समूह), योगेन्द्र जायसवाल (तोपखाना समूह), राहुल चौकसे (देवगुराडिय़ा वायपास चौराहा समूह), सूर्यप्रकाश अरोरा पिता गुरुचरण अरोरा, डायरेक्टर मेसर्स मिलियन ट्रेडर्स प्रा.लि.भोपाल (कंकरिया समूह), प्रदीप जायसवाल (ड्रीमलैण्ड चौराहा समूह), जितेन्द्र शिवरामे (चोरल समूह), असप्रीत सिंह लुबाना (गबली पलासिया समूह) और दीपक जायसवाल (पलासिया समूह)

सीएजी ने शुरू की घोटाले जांच!

वर्ष 2015 से वर्ष 2018 के बीच आबकारी विभाग में हुए 42 करोड़ के घोटाले की जांच नियंत्रक महालेखापरीक्षक (सीएजी)ने शुरू कर दी है। जानकारी के अनुसार टीम ने यहां आबकारी विभाग में पिछले तीन साल में शराब दुकानों के ठेकों में हुए 42 करोड़ रुपए के फर्जी चालान घोटाले की जांच की जांच शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि टीम ने जिला कोषालय, जिला कार्यालय सहित मुख्यालय से भी दस्तावेज मांगे हैं। माना जा रहा है कि इस घोटाले में आरोपी शराब ठेकेदारों के साथ-साथ विभागीय और कोषालय के अधिकारियों की भी मिली भगत रही है।

इनका कहना है

'विभागीय 'तौजी' की निगरानी संयुक्त संचालक (वित्त) स्वयं नहीं करते, उनके अधीनस्थों को करनी होती है। चूंकि विभाग में लेखा शाखा के वह वरिष्ठतम अधिकारी हैं इसलिए उन्हें जांच दल में रखा गया है।'

-मनु श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव

वाणिज्यिक कर विभाग मप्र शाासन

Updated : 1 March 2019 8:07 AM GMT
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Naveen Savita

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