Home > राज्य > मध्यप्रदेश > भोपाल > आसवकों ने पड़ोसी राज्यों से खरीद मप्र में परोसी शराब

आसवकों ने पड़ोसी राज्यों से खरीद मप्र में परोसी शराब

आसवकों ने पड़ोसी राज्यों से खरीद मप्र में परोसी शराब
X

लुटता रहा खजाना, मौन रहे अधिकारी...

विशेष संवाददाता भोपाल

मध्यप्रदेश के जिन सभी आसवकों को आबकारी विभाग ने ठेके दिए, वर्ष 2012-13 से 2016-17 तक की अवधि में देशी मदिरा के निर्माण के लिए सात आसवकों ने 27.80 प्रतिशत परिशोधित स्पिरिट का आयात किया। स्पिरिट की इस मात्रा के संबंध में आसवकों ने सिर्फ बॉटलर के रूप में कार्य किया।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में देशी मदिरा के सील बंद बोतलों में प्रदाय हेतु सरकार सिर्फ प्रदेश के आसवकों को ही मौका देती है। राज्य शासन ने वर्ष 2011-12 से राज्य के आठ आसवकों को देशी मदिरा बनाने और देशी मदिरा की निविदा प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी है। इस तरह अन्य प्रदेशों की तरह मप्र सरकार ने मदिरा प्रदाय के लिए अन्य राज्यों को टेंडर प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाता। इसका लाभ उठाकर प्रदेश के सभी 51 जिलों में देशी मदिरा के प्रदाय का ठेका आठों आसवकों ने बांट लिए। इससे सरकार के खजाने को नुकसान यह हुआ कि आसवकों ने गुटबाजी कर प्रदाय क्षेत्र वाले जिले आपस में बांट लिए और सरकार को शराब राजस्व की उचित दरें नहीं मिल सकीं। चूंकि प्रत्येक आसवक के पास कई-कई जिलों में मदिरा प्रदाय के ठेके थे, इस कारण आसवनियों में आपूर्ति योग्य पर्याप्त मात्रा में शराब निर्माण यह नहीं कर सके। यहां विभाग को चाहिए था कि देशी मदिरा की आपूर्ति में प्रतिस्पर्धी दरों को प्राप्त करने के लिए विभाग को बॉटलर जैसे अन्य प्रतिभागियों को अनुमति देनी चाहिए कि जो मप्र में देशी मदिरा की बोतलबंदी इकाईयों को स्थापित कर सकें। इस पर राज्य शासन ने लेखापरीक्षा को जवाब दिया कि चूंकि खुदरा अनुज्ञप्तिधारक सीधे आसवकों से देशी मदिरा खरीदते हैं, राज्य शासन खुदरा विक्रेताओं को देशी मदिरा की आपूर्ति के मूल्य में अंतर्निहित तर्कसंगतता में शामिल नहीं है।

तो स्थानीय उद्योग होते प्रोत्साहित

विभागीय स्पष्टीकरण पर लेखापरीक्षा ने तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा कि शासन का उद्देश्य केवल देशी मदिरा की बोतल भराई तक ही सीमित प्रतीत होता है और परिशोधित स्पिरिट के उत्पादन के पक्ष में नहीं है, क्योंकि आसवक-सह-बोटलर ने अन्य राज्यों से परिशोधित स्पिरिट आयात की। यदि शासन राज्य में देशी मदिरा के प्रदाय के लिए केवल राज्य में स्थित देशी मदिरा की बोतल भराई इकाई को बोली लगाने की अनुमति देता तो स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

शराब महंगी, लेकिन फायदा सिर्फ ठेकेदारों का

अन्य राज्यों की तुलना में मप्र में आसवकों द्वारा की गई शराब की महंगी कीमत से राज्य शासन को कोई लाभ नहीं होता है। पड़ौसी राज्यों राजस्थान और उत्तर प्रदेश ने मध्यप्रदेश की तुलना में प्रति पीएल आबकारी शुल्क अधिक एकत्रित किया, जबकि खुदरा विक्रेताओं को मिलने वाला खुदरा मूल्य राजस्थान की तुलना में मप्र से अधिक रहा। यहां विभागीय लापरवाही यह भी रही कि आसवकों द्वारा राज्य के उपभोक्ताओं को विक्रय हेतु दी गई दरों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए विभाग ने देशी मदिरा की लागत का आंकलन नहीं किया।

Updated : 11 Feb 2019 7:15 PM GMT
author-thhumb

Naveen Savita

Swadesh Contributors help bring you the latest news and articles around you.


Next Story
Top