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भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा कम्प्युटरीकरण बर्बाद किए 20 करोड़

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा कम्प्युटरीकरण बर्बाद किए 20 करोड़
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ऑनलाइन हो जाती मदिरा की बिक्री तो चौपट हो जाता घूसखोरी का धंधा....

विनोद दुबे भोपाल

आबकारी विभाग में पसरे भारी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के जिस पवित्र उद्देश्य से शिवराज सरकार ने वर्ष 2007 में विभाग के कम्प्युटरीकरण की प्रक्रिया आरंभ की थी, विभाग के घूसखोर अधिकारियों ने इस प्रक्रिया को धरातल पर नहीं उतरने दिया। 2.05 करोड़ के ठेके पर कंपनी को 44 सप्ताह के भीतर कम्प्युटरीकरण की प्रक्रिया पूरी करनी थी, लेकिन 11 साल बाद भी यह पूर्ण नहीं हो सकी है। कम्पनी की इस लेट-लतीफी से अभिभूत अधिकारियों ने न तो नियमानुसार 20.50 लाख की शास्ति अधिरोपित की और न ही निष्पादन की सुरक्षा निधि 25 लाख रुपये जब्त कर 10 साल तक कम्पनी से अनुबंध ही समाप्त किया। बताया जा रहा है कि विभाग के 20 करोड़ रुपये बर्वाद हो जाने के बाद विभाग ने पुरानी कंपनी से अनुबंध तो समाप्त कर दिया। लेकिन वसूली की कार्रवाई नहीं की।

आबकारी विभाग के प्रदेश मुख्यालय ग्वालियर से लेकर राजधानी में स्थित मंत्रालय तक लम्बे समय से किस कदर भ्रष्टाचार पसरा रहा। इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि विभाग में भलें अधिकारी बदलते रहे हों, लेकिन भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध किसी ने कार्रवाई नहीं की। यह अधिकारी न केवल भ्रष्टाचार में स्वयं संलिप्त रहे बल्कि भ्रष्टाचारियों के संरक्षक भी बने रहे। तत्कालीन प्रदेश सरकार ने मई 2007 में विभाग में भ्रष्टाचार समाप्त करने और शासकीय प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से राज्य आबकारी विभाग के एकीकृत कम्प्युटरीकरण का कार्य 14.89 करोड़ में अनुमोदित किया था। कम्प्युटरीकरण के लिए हार्डवेयर के क्रय और स्थापना का कार्य मार्च 2012 में पूरा हो गया था। इसके बाद सॉफ्टवेयर विकास का कार्य अब तक पूरा नहीं हो सका है। इस कारण हार्डवेयर पर खर्च किया गया 16.50 करोड़ रुपये का खर्च निरर्थक रहा। मेसर्स सीएमसी लिमिटेड को परामर्शदाता-सह-सॉफ्टवेयर विकासकर्ता का ठेका 2.05 करोड़ रुपये में दिया गया था। यह कार्य कुल 44 सप्ताह में पूरा होना था और सितम्बर 2015 तक कम्पनी को 83.25 लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया गया। इस बीच कम्पनी सीएमसी के कार्य पर निगरानी हेतु जून 2010 में एक दल भी नियुक्त किया गया। मई 2017 तक परामर्श दल को विभाग ने 2.16 करोड़ का भुगतान कर दिया। इस तरह सॉफ्टवेयर के विकास की लागत से अधिक राशि निगरानी एवं सलाहाकार दल को भुगतान कर दी गई। इसके बावजूद अब तक कम्प्युटरीकरण कार्य पूरा नहीं हो सका। यहां खास बात यह रही कि अनुबंध शर्तों के अनुसार समय पर काम पूरा नहीं करने पर विभागीय अधिकारियों ने न तो सुरक्षा निधि 25 लाख रुपये को जब्त करने की कार्रवाई की और न ही नियमानुसार 45.47 लाख रुपये की शास्ति ही अधिरोपित की। इस तरह विभाग द्वारा कम्प्युटरीकरण कार्य पर अब तक करीब 20 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, इसके बावजूद यह कार्य पूरा नहीं हुआ।

दस साल क्यों अटकाया कम्प्युटरीकरण

आबकारी विभाग में कम्प्युटरीकरण का मतलब है कि अगले दिन से ही ठेकेदारों की काली कमाई और अधिकारियों के कमीशन पर अंकुश लग जाना। आबकारी विभाग में कम्प्युटरीकरण हो जाने पर ई-परिवहन अनुज्ञा पत्र, ई-चालान सहित अन्य सभी दस्तावेजी प्रक्रिया सार्वजनिक हो जाती। शराब ठेकेदार द्वारा कम्पनी से निकाले जाने वाले प्रत्येक वाहन की निगरानी भी ऑनलाइन की जा सकेगी। ठेकेदार का काला कारोबार ठप तो अधिकारियों का लाखों-करोड़ों का कमीशन भी बंद हो जाता। यही कारण रहे कि न तो सरकार और न ही अधिकारी कम्प्युटरीकरण प्रक्रिया में रुचि ले सके।

सेवानिवृत्ति से पहले भ्रष्टाचार का खुला खेल

कम्प्युटरीकरण जैसी प्रक्रिया को अटकाने और शराब माफिया को संरक्षण देने वाले आबकारी विभाग के कई भ्रष्ट अधिकारी सेवानिवृत्त और स्थानांतरित हो चुके हैं और कई अपनी सेवानिवृत्ति की तैयारी में हैं। आबकारी विभाग में विगत वर्षों में आयुक्त पद पर जिन अधिकारियों को पदस्थ किया गया, पदस्थापना के समय उनकी सेवानिवृत्ति के एक-दो वर्ष ही बचे थे। इस कारण इन्होंने खुलकर भ्रष्टाचार किया। नियम-कानून खूंठी पर टांगकर शराब माफिया को संरक्षण दिया। सूत्र बताते हैं कि सेवानिवृत्त हुए एक आबकारी आयुक्त इन दिनों राजधानी के एक शराब माफिया के यहां सेवाएं दे रहे हैं। सेवाकाल में इन्होंने माफिया को नियम विरुद्ध ठेके दिलाए तथा भारी गड़बडिय़ों के बावजूद संरक्षण दिया।

'मध्य स्वदेश' की खबरों पर करा रहे हैं जांच: आबकारी आयुक्त

आबकारी विभाग में कम्प्युटरीकरण सहित अन्य गड़बडिय़ों के जिन मुद्दों को 'मध्य स्वदेश' ने उठाया है, आबकारी आयुक्त रजनीश श्रीवास्तव ने उन सभी बिन्दुओं पर जांच कराने की बात कही है। श्री श्रीवास्तव की 'मध्य स्वदेश' से हुई अल्प चर्चा में यह भी बताया-


'मध्य स्वदेश'- विभागीय कम्प्युटरीकरण का कार्य कितना शेष है तथा कब तक पूरा हो जाएगा?

आबकारी आयुक्त : विभाग के कम्प्युटरीकरण की प्रक्रिया एमपी ऑनलाइन के माध्यम से चल रही है। इसी माह अर्थात फरबरी में ही यह कार्य पूरा होना है। फरवरी में ही इसका प्रजेन्टेशन भी होगा।

'मध्य स्वदेश'- ठेका कितने का था तथा अब तक कितना भुगतान हुआ है?

आबकारी आयुक्त : ठेका राशि और भुगतान की जानकारी तो अभी नहीं दे पाऊंगा? इस संबंध में हमारे संयुक्त संचालक (वित्त) बता पाएंगे।

'मध्य स्वदेश'- 44 दिन के अनुबंध के विपरीत 10 साल में भी काम पूरा नहीं करने वाली कम्पनी पर सुरक्षा निधि जब्ती और शास्ति अधिरोपण जैसी कार्रवाई नियमानुसार आखिर क्यों नहीं की गई?

आबकारी आयुक्त : पुरानी कंपनी को बदल दिया गया है। उनकी टेक्नोलॉजी भी आधुनिक नहीं थी, इस कारण अनुबंध खत्म कर दिया गया है। पूर्व में अगर कोई अनियमितता हुई है तो मैं दिखवा लेता हूँ । समाचारों के माध्यम से आप ने जो बिन्दु उठाए हैं? उनकी भी हम जांच करा रहे हैं?

Updated : 7 Feb 2019 3:42 PM GMT
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Naveen Savita

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