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मुख्यमंत्री की कुर्सी में उलझा कांग्रेसी एकता का गणित

समर्थकों की पैरवी में फिर अटकी कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची...

मुख्यमंत्री की कुर्सी में उलझा कांग्रेसी एकता का गणित
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भोपाल/स्वदेश वेब डेस्क। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के प्रत्याशियों की पहली सूची हर हाल में 15 अक्टूबर तक घोषित किए जाने का दावा कर रही थी। जो अब तक जारी नहीं हो सकी है। प्रदेश के कांग्रेसी नेता 70-80 प्रत्याशियों की पहली सूची तैयार हो जाने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश स्तर पर कांग्रेसी नेताओं की गुटबाजी और मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा प्रत्याशियों की इस सूची आसानी से जारी होने देगी, संभव दिखाई नहीं देता।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में मीडिया से चर्चा के दौरान पहले नवदुर्गा शुरू होते ही और दूसरी बार में 24 अक्टूबर तक कांग्रेसी प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने की बात कही थी। लेकिन इस माह के अंत तक कांग्रेस की सूची जारी होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसा नहीं कि कांग्रेस के पास सभी विधानसभा क्षेत्रों में दावेदारों का अभाव है। बल्कि प्रत्येक सीट पर कई-कई दावेदार मौजूद हैं। प्रदेश नेतृत्व का कहना है कि वह प्रत्येक सीट पर ऐसे उम्मीदवार खड़े करेगे, जो कांग्रेस को जीत दिला सकें। इसके लिए भलें पीढिय़ों से कांग्रेस का झंडा पकड़ते रहे और संगठन के प्रति निष्ठावान कांग्रेसियों की इच्छा का दमन क्यों न करना पड़े। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष तो यहां तक दावा कर चुके हैं कि किसी भी सीट पर कांग्रेस को विजय दिलाने वाला प्रत्याशी अगर भाजपा से आयात करना पड़ा तो किया जाएगा। कांग्रेसियों का ऐसा मानना है कि भाजपा के 15 साल के शासनकाल के बाद जनता बदलाव चाहती है और जनता के बदलाव का विकल्प कांग्रेस हो सकती है। वहीं चिडिय़ा की आंख की तरह प्रदेश के दोनों कांग्रेसी सांसदों को इस बार सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी दिख रही है। यही कारण है कि इस बार प्रदेश के करीब आधा दर्जन कांग्रेसी गुटों में सामंजस्य बैठाने का दिखावा किया जा रहा है। इसके उलट जैसे-जैसे चुनाव की तिथि निकट आ रही है, कांग्रेसी नेताओं की एकजुटता बिखरती दिखाई दे रही है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को भरोसा है कि इस बार अगर प्रदेश के कांग्रेसी नेता एकजुट होकर चुनाव लड़ते हैं तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन सकती है। असमंजस और टकराव सिर्फ इस बात पर है कि कांग्रेस को प्रदेश में बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा। अंदरूनी तौर पर जो नाम मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित किए जा रहे हैं, उनमें सांसद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा तीसरा नाम नहीं है। हालांकि अंदरूनी तौर पर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी खुद को मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में दर्शा रहे हैं। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व इस बात से भयभीत है कि अगर कमलनाथ का नाम मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में घोषित किया तो सिंधिया और उनके समर्थक बगावती हो सकते हैं। ठीक इसी प्रकार की स्थिति सिंधिया की दावेदारी पर भी बन सकती है। ऐसा नहीं कि राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा घोषणा नहीं किए जाने के बाद भी मुख्यमंत्री पद के इन दावेदारों में कुर्सी की प्रतिस्पर्धा समाप्त हो गई है।

दोनों ही सांसद अपने-अपने समर्थकों को प्रदेश की अधिक से अधिक सीटों पर टिकट दिलाने के प्रयास में जुटे हैं। चूंकि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ तीन पीढिय़ों से कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के बहुत करीब हैं, लेकिन उनके लोकसभा क्षेत्र को छोड़ प्रदेशभर में उनके पास दावेदारी योग्य समर्थकों का अभाव है। वहीं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया इस मामले में उनसे बहुत आगे हैं। समर्थकों के अभाव के कारण कमलनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का हाथ थाम लिया है। कमलनाथ को भरोसा है कि दिग्विजय सिंह के पास प्रदेशभर में समर्थक भी हैं और वह स्वयं मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से भी दूर हैं। ऐसे में कमलनाथ प्रदेशभर में दिग्विजय सिंह के समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए जोर आजमाईश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पर्दे के पीछे से दावेदारी कर रहे नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का तीसरा गुट हालांकि चर्चाओं में नहीं है, लेकिन अपने अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए नेता प्रतिपक्ष भी भरसक प्रयास कर रहे हैं।

टिकटों की इस टकराहट के कारण ही कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम तय नहीं कर पा रही है। कांग्रेस में कई ऐसी सीटों पर भी द्वंद है जहां वर्तमान में कांग्रेस के विधायक, पूर्व विधायक अथवा बहुत कम मतों से पराजित हुए प्रत्याशियों दावेदारी है। वहीं गुटबाजी में उलझा वरिष्ठ नेतृत्व इन दावेदारों को 'परे हट, मेरा प_ा आयाÓ कहने की तैयारी कर चुके हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर तीन प्रमुख गुटों में बंटी कांग्रेस के नेताओं का प्रयास है कि किसी भी तरह वह अपने समर्थकों को टिकट दिलाकर जितवा दें। जिससे मुख्यमंत्री पद की उनकी दावेदारी पक्की हो सके। राहुल गांधी के ग्वालियर-चम्बल संभाग के प्रवास के दौरान सिंधिया द्वारा दिग्विजय और कमलनाथ गुट के समर्थकों की अनदेखी और अपने समर्थकों के माध्यम से किए गए शक्ति प्रदर्शन से भी कांग्रेसी गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है।

Updated : 24 Oct 2018 6:12 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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