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#YTC2018: भारत की पहचान है ज्ञान-परंपरा, भारत ने तर्क से जीती है लड़ाइयां

#YTC2018: भारत की पहचान है ज्ञान-परंपरा, भारत ने तर्क से जीती है लड़ाइयां
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भोपाल।चिंतनशील युवाओं के बौद्धिक समागम 'यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव' में शनिवार को मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि भारत की पहचान उसकी ज्ञान-परंपरा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह देश महात्मा गांधी, भगवान बुद्ध और स्वामी विवेकानंद का है। इसकी नींव वसुधैव कुटुम्बकम पर रखी गई है। भारत में किसी भी समस्या का समाधान विचारों के मध्य संवाद से आता है। वहीं, राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने भी राष्ट्रीयता की संकल्पना के संबंध में कहा कि भारत की पहचान उसके भूगोल से नहीं, अपितु विचार से है। भारत एक विचार है। प्रो. सिन्हा ने कहा कि भारत की विशेषता है कि हमने सदैव तर्क के आधार पर ही अपनी लड़ाइयां जीती हैं। तर्क के आधार पर ही भारत का विचार दुनिया में आगे बढ़ा है। दो दिवसीय यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव का आयोजन यंग थिंकर्स फोरम और राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। इस समामग में प्रदेशभर से लगभग 300 युवा हिस्सा ले रहे हैं। इस अवसर पर राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार और कॉन्क्लेव के सह संयोजक आशुतोष ठाकुर भी उपस्थित रहे।


यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव के उद्घाटन समारोह की अध्यक्ष कर रहीं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि अनुशासन युवाओं का सबसे बड़ा गुण है। युवाओं को धैर्य, संयम और साहस की शिक्षा लेनी चाहिए। इसके साथ ही उन्हें संगठनात्मक एवं बौद्धिक नेतृत्व के गुण को भी विकसित करना चाहिए। युवाओं को बौद्धिक रूप से मजबूत बनना चाहिए। यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन में युवाओं को बहुत सीखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि यदि हमें दुनिया में आगे बढऩा है, तो नये-नये प्रयोग करने पड़ेंगे। उन्होंने युवाओं द्वारा किए जा रहे सकारात्मक कार्यों का उल्लेख किया। इस अवसर पर उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) 'प्रेरणा' की सराहना की। यह वृत्तचित्र खरगौन में संचालित आस्था ग्राम संस्था के कार्य को दिखाया गया है, जो सभी प्रकार के दिव्यांग बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए समर्पित है। राज्यपाल ने बताया कि वह आस्था ग्राम में गईं हैं। वहाँ जो भी जाएगा, उसे समाज में ऐसे ही कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। लगभग 250 वर्ष पहले की भारतीय शिक्षा व्यवस्था का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि धर्मपाल जी की पुस्तक 'द ब्यूटीफुल ट्री' में यह बताया गया है कि 700 से अधिक जनसंख्या पर गाँव में एक पाठशाला थी। अंग्रेजों के सर्वे में यह तथ्य सामने आए हैं। यह पाठशाला समाजकेंद्रीत थी। यहाँ पढ़ाने के लिए एक पंडित की नियुक्ति की जाती थी, जो सबको एक साथ पढ़ाते थे, लेकिन इसके बदले में किसी प्रकार का मानदेय नहीं लेते थे। उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति समाज स्वत: ही करता था। इन पाठशालाओं में ज्ञान के साथ-साथ संस्कार भी दिया जाता था। भारत को पूरी तरह जीतने के लिए अंग्रेजों ने इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया।

राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा में बदलाव स्वतंत्रता मिलते ही तत्काल हो जाना चाहिए था, लेकिन यह बीड़ा किसी ने नहीं उठाया। अब तक अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था चली आ रही है। अब एक साथ बदलाव करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि जब तक हमारी सोच में बदलाव नहीं आएगा, हम यह नहीं जानेंगे कि सही क्या है और गलत क्या है? तब तक हम एक साथ बदलाव नहीं कर सकते। लेकिन, तब तक हमें छोटे-छोटे बदलाव करते रहना होगा।

यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव के उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता एवं विचारक प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि जब व्यक्ति का वर्तमान कमजोर होता है तो वह अपनी विरासत में अपनी छवि देखता है और अपनी कमजोरी को विरासत की समृद्धि में छिपा लेता है। हमारे वेद-उपनिषद में क्या कहा गया है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि हम आज क्या कह रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमें अपने भविष्य को बनाने के लिए अपने इतिहास का अध्ययन करना चाहिए।


प्रो. सिन्हा ने इतिहास के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इतिहास विस्मृत करने के लिए नहीं है, स्मृति के लिए होता है। अब तक ऐसा इतिहास पढ़ाया गया, जो हमें विस्मृति देता है। भारत के विभाजन की घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश को सिर्फ 1947 में नहीं बाँटा गया, बल्कि भारत उसके पहले और बाद में भी विभाजित हुआ है। 1962 में हमने अपनी जमीन खोई। 1937 में बर्मा भारत से अलग हुआ। उन्होंने बताया कि हमारे इतिहास में यह जिक्र नहीं है कि बर्मा किस प्रकार भारत से अलग हुआ। बर्मा को अलग करने के लिए जब जनमत कराया गया, तब 51 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा था कि वह भारत के साथ रहना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास को योजनापूर्वक धूल-धूसरित कर दिया गया है। जिस भारतीय को अपने इतिहास का सही ज्ञान नहीं है, वह भारत का निर्माण नहीं कर सकता। राष्ट्र को जानने के लिए सबसे पहले प्रत्येक भारतीय को यह जानना होगा कि वह कौन है?

राज्यसभा सांसद प्रो. सिन्हा ने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए बताया कि गांधीजी ने कहा था कि अंग्रेजी की किताबों का अनुवाद करने वाले कभी भी भारत का निर्माण नहीं कर सकते। हमें अपनी ज्ञान-परंपरा में उपलब्ध शास्त्र पढऩे होंगे और नये शास्त्र रचने होंगे।

उन्‍होंने कहा कि भारत का युवा नये और मौलिक विचार को प्राप्त करना चाहता है। उन्होंने कहा कि न थकने वाला और न हारने वाला युवा ही भारत को आगे बढ़ा सकता है। भारतीयता के संबंध में उन्होंने कहा कि भारत में जो भोग के उद्देश्य से आए, उन्होंने कभी इस देश को अपना नहीं माना। भारत ने भी उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया। जो भारतीय बनकर आएगा, उसे हम स्वीकार करेंगे और जो अभारतीय बनकर आएगा, उसे बाहर कर देंगे।

'ब्रेकिंग इंडिया' विषय पर प्रख्यात लेखक अरविन्दन नीलकंदन ने कहा कि हमारी बाकि पहचान राष्ट्रीय पहचान से ऊपर नहीं होनी चाहिए। एक भारत के लिए राष्ट्रीय पहचान को प्राथमिकता देना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि भारत के सभी पंथों को एक साथ आना चाहिए, उन सबके हृदयों की धड़कन देश की एकता के लिए होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पूर्व में सभी भारतीय भारत की अखण्डता के लिए प्रार्थना करते थे। भारत में महिलाओं की स्थिति के संबंध में उन्होंने बताया कि भारत में राजा की पत्नी के लिए 'राजी' की जगह 'रानी' शब्द का उपयोग किया जाता था। रानी का अर्थ है, जिसके पास राज्य करने का अधिकार हो। जबकि राजी शब्द सिर्फ राजा की पत्नी तक ही सीमित है। उन्होंने बताया कि भारतीयों को बाँटने के लिए विभिन्न प्रयास हुए हैं। इनमें से एक प्रयास हर्बट रिसले ने किया। रिसले ने तो भारतीयों को नाक बनावट के आधार पर ही बाँट दिया। श्री नीलकंदन ने कहा कि भारतीय इतिहास के कई उदाहरणों के माध्यम से युवाओं को असली भारत के बारे में जानकारी मिल सकती है।

'भारतीय शिक्षा में उपनिवेशवाद' विषय पर चर्चा करते हुए प्रख्यात लेखक संक्रांत सानु ने कहा कि अंग्रेजी हमारे पिछड़ेपन की भाषा है। जब तक अंग्रेजी रहेगी, हम पिछड़े रहेंगे। जबकि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस में चीन अमेरिका से आगे निकल गया है। चीन अपनी भाषा में कार्य करता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में अंग्रेजी पढऩे के बजाय अंग्रेजी थोपी जा रही है। उन्होंने कहा कि जो देश अपनी भाषा में कार्य कर रहे हैं, वह तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। अंग्रेजी हमारे पिछड़ेपन की भाषा है।

'शहरी नक्सलवाद और बौद्धिक आतंकवाद' विषय पर चर्चा के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता मोनिका अरोरा ने कहा कि शहरी नक्सलवाद के सामने दो समस्याएं हैं, एक मोदी सरकार और दूसरा सोशल मीडिया। जब मुख्यधारा का मीडिया चुप होता है तो सोशल मीडिया बोलता है। उन्होंने कहा कि मीडिया से लेकर सरकारें तक सभी मानवाधिकारों के हित में नहीं बल्कि नक्सलवाद के समर्थन में बोलते हैं। रामजस कॉलेज में नारे लगाए गए थे- 'कश्मीर मांगे आज़ादी, बस्तर मांगे आज़ादी'। उन्होंने बताया कि कॉलेज के 70 प्रतिशत छात्रों को नहीं पता होगा बस्तर कहाँ है? उन्होंने कहा कि नक्सलवादी और माओवादी अभिव्यक्ति की आजादी के लिए तब आवाज उठाते हैं, जब वे विपक्ष में आते हैं।

इसके साथ ही प्रख्यात फिल्मकार और अर्बन नक्सलिज्म एंड इंटलेक्चुअल टेरर पुस्तक के लेखक विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि हमारा सिस्टम इतना जर्जर हो चुका है कि खुद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम भी आ जाएं तो वह भी सत्य सामने नहीं ला सकते। उन्होंने याकूब मेनन का केस लडऩे वाले लोगों पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि याकूब के लिए 3 बजे कोर्ट खुलवाने वाले वकीलों को फीस कहाँ से मिलती है? इस सत्र की अध्यक्षता उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने की।

यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव में पहले दिन विभिन्न थिंक टैंक के प्रतिनिधियों के साथ युवा प्रतिभागियों ने चर्चा की। कॉन्क्लेव में युवा प्रतिभाओं ने अपनी कला का प्रदर्शन भी किया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में देश की सांस्कृतिक विविधता की झलक दिखाई दी।

Updated : 12 Aug 2018 2:57 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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