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जनजातीय समाज अपने परंपरागत ज्ञान से उनकी सहायता कर सकता है : उपराष्ट्रपति

- ऐतिहासिक स्थल रामनगर में दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव का शुभारम्भ किया

जनजातीय समाज अपने परंपरागत ज्ञान से उनकी सहायता कर सकता है : उपराष्ट्रपति
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मण्डला। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि जनजातीय समुदायों के पास, पीढ़ियों के अनुभव से प्राप्त वह ज्ञान और विद्या है जिसका इस्तेमाल भविष्य के लिए स्थाई, समावेशी और प्रकृति के अनुकुल विकास सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।

मध्यप्रदेश के मंडला जिले में स्थित ऐतिहासिक स्थल रामनगर में दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव का शनिवार को उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने शुभारम्भ किया। इस दौरान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं, प्रदूषित पर्यावरण से त्रस्त विश्व अब प्रकृति के अनुकुल स्थाई विकास के रास्ते खोज रहा है। ऐसे में जनजातीय समाज अपने परंपरागत ज्ञान से उनकी सहायता कर सकता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि दशकों में वामपंथी अतिवादी समूहों द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में हिंसा और आतंक फैला कर, वहां विकास रोकने का काम किया गया है। माओवादी हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। विकास के लिए शांति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में सरकारें वामपंथी हिंसा को रोकने में सफल हो रही है तथा स्थानीय समुदाय से बातचीत कर उनकी अपेक्षाओं का यथा संभव समाधान निकाल रही है। इस संदर्भ में उन्होंने असम में हाल के बोडो समझौते को एक सराहनीय कदम बताया।

नायडू ने शनिवार को यहां कहा कि आदिवासी संस्कृति को कायम रखना और जनजातियों का विकास करना हमारा कर्तव्य है और यह हमारा संवैधानिक दायित्व भी है। उन्होंने कहा कि भारत का मूल निवासी आदिवासी ही है। आदिवासियों से हमें प्रकृति के साथ जीवनयापन करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

उन्होंने कहा कि गोंडवाना साम्राज्य की ऐतिहासिक धरोहर रामनगर में आना उनके लिए सौभाग्य की बात है। आदिवासी संस्कृति को जीवित रखने और उससे युवाओं को परिचित कराने के लिए आदिवासी महोत्सव का आयोजन प्रारंभ किया गया है। यह एक अच्छा प्रयास है इसके माध्यम से आदिवासी शिल्प, संगीत, कला व संस्कृति आदि का प्रदर्शन किया जाता है। आदिवासी संस्कृति को जीवित रखने के लिए केवल सरकारी प्रयास ही काफी नहीं है, बल्कि इसमें समाज का भी योगदान होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन में, जन्म देने वाली माँ, जन्मभूमि, मातृभाषा और देश को कभी नहीं भूलना चाहिए। जनजातीय वर्ग ही समाज का वह वर्ग है जो प्रकृति को माता के रूप में पूजता है। यह जनजातीय परंपरा हम सभी के लिए अनुकरणीय और प्रेरणास्पद है। आधुनिक होते समाज में अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के साथ ही आदिवासियों को शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष ध्यान देना चाहिए। शिक्षा से ही समाज में जागृति व उन्नति आती है।

उपराष्ट्रपति आशा व्यक्त की कि गौंड़ साम्राज्य की यह ऐतिहासिक धरती जनजातियों की भाषा, संस्कृति और जीवन पद्धति को संजोकर रखने एवं उनके आर्थिक विकास में भागीदार बनेगी। कार्यक्रम के पूर्व उन्होंने गौंडवाना साम्राज्य के शहीद राजाओं को पुष्प अर्पित कर श्रृद्धांजलि दी। अपने उद्बोधन के बाद उन्होंने जनजातीय नृतक दल व उपस्थित जनसमुदाय से मिलकर अभिवादन किया। कार्यक्रम के अंत में उपराष्ट्रपति द्वारा स्वरोजगार और आपदा राहत के हितग्राहियों को प्रतीकात्मक रूप से हितलाभ का वितरण किया।

आदिवासी महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर केन्द्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटैल ने आदिवासी संस्कृति, धरोहर व उनके विकास के साथ शिक्षा व उन्नति पर जोर दिया। महोत्सव में केन्द्रीय जनजातीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर राज्यसभा सदस्य संपतिया उईके, जिला पंचायत अध्यक्ष सरस्वति मरावी, विधायक देवसिंह सैयाम, कलेक्टर डॉ. जगदीश चन्द्र जटिया, एसपी दीपक कुमार शुक्ला, आईजी केपी वेंकटेश्वर राव, डीआईजी आरएस डेहरिया सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी, गणमान्य नागरिक एवं बड़ी संख्या में आमजन उपस्थित थे।

Updated : 15 Feb 2020 4:21 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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