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भीमा कोरेगांव मामला : महाराष्ट्र सरकार के दस्तावेजों पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाये सवाल, कल भी होगी सुनवाई

पांचों आरोपित की नजरबंदीि गुरुवार तक बढ़ाई गई

भीमा कोरेगांव मामला : महाराष्ट्र सरकार के दस्तावेजों पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाये सवाल, कल भी होगी सुनवाई
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नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। भीमा कोरेगांव मामले में पांच लोगों की गिरफ्तारी के मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि ये बात पूरी तरह साफ होनी चाहिए कि विरोध और सरकार के खिलाफ साजिश दोनों अलग-अलग बातें हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने जो डॉक्यूमेंट दिया है, उसमें कई यूनिवर्सिटी, सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के नाम हैं । क्या ये सब सरकार के खिलाफ षड्यंत्र में शामिल हैं? इस मामले पर कल यानी 20 सितम्बर को भी सुनवाई जारी रहेगी। तब तक पांचों लोगों की नजरबंदी (हाउस अरेस्ट) जारी रहेगी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि आपके पास इन पांच लोगों के खिलाफ तथ्य हैं? तब महाराष्ट्र सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट का काम सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है न कि केवल इन पांच लोगों की।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कामरेड प्रकाश को भेजे गए जिस पत्र की बात कही जा रही है, वह पत्र पूरी तरह से काल्पनिक है। पूर्व में महाराष्ट्र पुलिस ने कहा था कि प्रोफेसर साईं बाबा ही कामरेड प्रकाश है। साईं बाबा 2007 से जेल में है। ऐसे में पुलिस कैसे कह सकती है कि गिरफ्तार किए गए एक्टिविस्टों ने ही कामरेड प्रकाश को पत्र लिखा।

सिंघवी ने कहा कि वरवरा राव नामचीन कवि हैं। वह 79 साल के हैं। इस मामले की कार्रवाई ठीक वैसी ही है, जैसे कि आप किसी का नाम खराब करो और फिर उसे फांसी पर लटका दो। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस केस की जांच की निगरानी करनी चाहिए।

सिंघवी ने कहा कि आरोपितों के खिलाफ पुलिस ने सारे सबूत झूठे गढ़हम ये नहीं कह रहे हैं कि हम कानून से ऊपर हैं। हम कानून के तहत कोर्ट की निगरानी में मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं।

वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि इस मामले में कई गई गिरफ्तारियां और छापेमारी अवैध हैं। यह एकदम फिट केस है, जिसे कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के लिए भेजा जा सकता है। आनंद ग्रोवर ने कहा कि पुलिस ने उक्त गिरफ्तारियों में तय कानूनी प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया है। एक ही मामले में दूसरी एफआईआर करना गलत है।

पिछले 17 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम पुणे पुलिस के सबूत देखेंगे। अगर सबूत बनावटी लगे तो हम केस निरस्त कर देंगे। सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने सबूत देखने का आग्रह किया था।

सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ये याचिका ऐसे लोगों ने दायर की है, जिनका इस केस से कोई सरोकार नहीं है और न ही उन्हें केस के बारे में पता है। इस पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि यह केवल सरकार के खिलाफ अलग विचार रखने का मामला नहीं है। इन्हें इस वजह से कतई गिरफ्तार नहीं किया गया है। इनके पास से आपत्तिजनक सामग्री बरामद की गई है। इनके खिलाफ ठोस सबूत भी मिले हैं। जांच के बाद इन्हें गिरफ्तार किया गया है। इनसे देश की शांति को खतरा है। केंद्र सरकार की ओर से एएसजी मनिंदर सिंह ने याचिका का विरोध किया था। केंद्र ने कहा था कि इस याचिका पर सुनवाई के कोई कानूनी आधार ही नहीं है।

याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा था कि मामले की एसआईटी या कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए। सिंघवी ने कहा कि हम केवल मामले की स्वतंत्र जांच चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है, इसलिए हम सीधे सुप्रीम कोर्ट आये हैं। कुछ केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी स्वतंत्र जांच का आदेश अपनी निगरानी में दिया है। हम भी वही चाहते हैं। सिंघवी ने कहा था कि कुछ ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं कि यह केस प्रधानमंत्री की हत्या के षड्यंत्र का है जबकि एफआईआर में इसका कोई जिक्र नहीं है। अगर मामला उक्त गंभीर आरोप से संबंधित है तो इस मामले में सीबीआई या एनआईए द्वारा जांच क्यों नहीं कराई जा रही?

पहले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने पुणे पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर को मीडिया में जाने के लिए फटकार लगाई थी। कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस के वकील से कहा था कि असिस्टेंट कमिश्नर से कहिए कि हमने इसे गंभीरता से लिया है।

पिछले पांच सितम्बर को महाराष्ट्र सरकार ने हलफनामा दायर कर भीमा कोरेगांव मामले में गौतम नवलखा समेत पांच लोगों को पुलिस हिरासत में भेजने की मांग की थी। महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि ये लोग समाज में हिंसा और अराजकता फैलाने की खतरनाक योजना का हिस्सा हैं। उनकी गिरफ्तारी ठोस सबूतों के आधार पर हुई। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा। फिलहाल पांच लोग हाउस अरेस्ट में हैं ।

महाराष्ट्र पुलिस ने सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सबूत सौंपा। महाराष्ट्र पुलिस ने आग्रह किया कि उन्हें देख कर कोर्ट फैसला ले। महाराष्ट्र पुलिस ने कहा कि अब तक बरामद लैपटॉप, पेन ड्राइव से मिली सामग्री से साफ है कि ये पांच लोग माओवादी साज़िश का हिस्सा हैं। बड़े पैमाने पर अराजकता फैलाने की कोशिश में जुटे थे ।

पिछले 29 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा था कोर्ट ने कहा कि विचारों का मतभेद हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है,अगर इसे खत्म कर दिया जाएगा तो वाल्व फट जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी गिरफ्तार लोगों को राहत देते हुए उन्हें जेल भेजने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि सभी अपने घर में हाउस अरेस्ट रहेंगे। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से छह सितम्बर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था ।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एफआईआर में गिरफ्तार किये लोगों का नाम तक नहीं है। अगर इस तरह लोगों को गिरफ्तार किया गया तो लोकतंत्र ही खत्म हो जाएगा। तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि इसीलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं। वकील राजीव धवन ने कहा था कि उनमें से कुछ लोगों ने हमारा सहयोग किया है। हमने उनकी फंडिंग की है। अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया तो उसके बाद कल हमारी भी गिरफ्तारी होगी। वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उसके बाद हमारी भी गिरफ्तारी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ क्या आरोप हैं, इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हां।

एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि अभियुक्तों में से कुछ पहले जेल में रहे हैं। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वे प्रोफेसर हैं। उनका कहना है कि उनका विरोध दबाया जा रहा है।

जिन लोगों को गिरफ्तार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अपने घर में नजरबंद किया गया है उनमें गौतम नवलखा, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरिया और वरनोन गोंजालवेस शामिल हैं ।

Updated : 19 Sep 2018 7:50 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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