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सबरीमाल मंदिर प्रकरण, पहले रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट

सबरीमाल मंदिर प्रकरण, पहले रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो सबरीमाला मंदिर मामले में दायर रिव्यू पिटीशन पर फैसला करने के बाद ही नई याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि आज हम रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करेंगे, आप पहले उन पर फैसला लेने दें। इसका मतलब है कि अगर कोर्ट रिव्यू पिटीशन को ठुकराता है, तब नई याचिकाओं को सुनवाई के लिए लिस्ट किया जाएगा ।

सबरीमाला मंदिर मामले पर करीब 40 याचिकाएं दायर की गई हैं। आज ही दोपहर बाद सुप्रीम कोर्ट रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करने वाली है।

नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि जो महिलाएं आयु पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आईं थीं,वे अयप्पा भक्त नहीं हैं। ये फैसला लाखों अयप्पा भक्तों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं और इस फैसले को वापस लिया जाना चाहिए।

नैयर सर्विस सोसायटी की ओर से केवी मोहन द्वारा दायर रिव्यू पिटीशन में कहा गया है कि संविधान पीठ का 28 सितंबर का फैसला सही नहीं है। याचिका में कहा गया है कि न तो कोर्ट और न ही विधायिका एक धर्म या अभ्यास या पंरपरा या विश्वास को सुधार सकती है। याचिका में कहा गया है कि यंग लॉयर्स एसोसिएशन केवल एक तीसरा पक्ष है । कंशियस ऑफ वुमन की याचिका में कहा गया है कि सबरीमाला देवता के भक्त कोई अलग नहीं हैं। याचिका में कहा गया है कि किसी भी धार्मिक विश्वास या प्रथाओं को चुनौती देने के लिए ये फैसला "दरवाजा खोलता" है।

पिछले 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया था । कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं के साथ काफी समय से भेदभाव होता रहा है। महिला पुरुष से कमतर नहीं है। एक तरफ हम महिलाओं को देवी स्वरूप मानते हैं, दूसरी तरफ भेदभाव करते हैं। कोर्ट ने कहा था कि बायोलॉजिकल और फिजियोलॉजिकल वजहों से महिलाओं के धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता को खत्म नहीं किया जा सकता है। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा समेत चार जजों ने कहा था कि ये संविधान की धारा 25 के तहत मिले अधिकारों के विरुद्ध है।

जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने बाकी चार जजों के फैसले से अलग फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि धार्मिक आस्था के मामले में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। मंदिर ही यह तय करे कि पूजा का तरीका क्या होगा। मंदिर के अधिकार का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा था कि धार्मिक प्रथाओं को समानता के अधिकार के आधार पर पूरी तरह से परखा नहीं जा सकता है। यह पूजा करनेवालों पर निर्भर करता है न कि कोर्ट यह तय करे कि किसी के धर्म की प्रक्रिया क्या होगी। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा था कि इस फैसले का असर दूसरे मंदिरों पर भी पड़ेगा।

Updated : 14 Nov 2018 3:43 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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