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राजस्थान विधानसभा चुनाव : वसुंधरा की जीवटता रोमांचकारी, भाजपा ने चलाई जोर की आंधी

राजस्थान विधानसभा चुनाव : वसुंधरा की जीवटता रोमांचकारी, भाजपा ने चलाई जोर की आंधी
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नई दिल्ली/जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव का प्रचार बुधवार को थम गया। शुक्रवार को वहां मतदान होगा। सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि वो फिर से सत्ता में वापसी कर रही है तो कांग्रेस की नजर में यह भाजपा की विदाई वेला है। कुछ ही दिन पहले राजस्थान में मीडिया हाइप बना कि कांग्रेस एक तरफा जीत की ओर अगसर है और भाजपा को भारी नुकसान होगा। लेकिन सप्ताहभर के अंतराल में ही वसुन्धरा राजे ने इस अंतर को मानो पाट दिया है। वसुंधरा के इस बार के माइक्रो प्रबंधन की दाद देनी होगी जिसके चलते कांग्रेस बैकफुट पर आई है। राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की जिस तरह रार ठनी हुई है उससे अध्यक्ष राहुल गांधी की संगठनात्मक क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। तभी प्रचार के अंतिम दिन टोंक विधानसभा की चर्चा खासी सुर्खियों में रही। यहां अंत तक हार-जीत के समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आ रहे हैं। कोई भी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि इस सीट पर कौन विजेता बनेगा? इस सीट पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री यूनुस खान आमने-सामने हैं।

पांच साल पूरे करने वाली भाजपा की वसुंधरा सरकार के खिलाफ यू ंतो एंटी इनकंबेंसी फेक्टर जोर मार रहा है लेकिन भाजपा का दावा है कि पार्टी इस नफा-नुकसान को संभाल लेगी। केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की वसुंधरा राजे सरकार के विकास कार्यां को लेकर मतदाताओं तक पहुंचेंगे तो लोगों को समझ आएगा। क्योंकि कांग्रेस नाहक ही लोगों को भ्रमित कर रही है। इसके इतर, कांग्रेस मौजूदा सरकार के खिलाफ रोजगार, किसानों की बदहाली और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में सरकार पर हमलावर है। लेकिन इसके बावजूद उसकी प्रबंधन क्षमता में कहीं न कहीं चूक भी नजर आ रही है। बसपा ने राज्य में कोई 190 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, ये उम्मीदवार वोट कटवा सिद्ध होते हैं या मतदाता इन्हें नजरंदाज करते हैं इसका फिलहाल अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है। इसके अलावा दर्जनों निर्दलीय उम्मीदवार भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। फिर कांग्रेस और भाजपा दोनों के विद्रोही उम्मीदवार भी खेल बिगाड़ने में जोर लगा रहे हैं।

गुजरात और कर्नाटक के बाद लगता है कांग्रेस रणनीतिकार फिर एक बार उसी गलती को दोहराने की राह पर हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद पार्टी के स्टार प्रचारक हैं। उनको कब, कितना और कैसे उपयोग में लाया जाए। इसका अंत तक पता नहीं चला। और न ही कोई रणनीति समझ में आई। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी को अक्टूबर माह में ही पूरे राजस्थान के दौरे पर लगाया गया जबकि भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की ऊर्जा अंतिम क्षणों के लिए बचाकर रखी। ठीक उसी तरह जिस तरह प्रतियोगिता में कोई धावक अंतिम क्षणों में बाजी जीतने के लिए पूरा जोर लगा देता है। यही कारण है कि शुरू के दिनों में अपनी बढ़त बना चुकी कांग्रेस की बाद में धार कुंद होती चली गई। जबकि भाजपा के स्टार प्रचारकों ने आंधी लाकर रख दी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमितशाह का उपयुक्त समय पर भाजपा ने उनका लाभ लिया। तकनीकी लड़ाई में कांग्रेस यहां पीछे रह गई। इन दिनों में वसुंधरा का चुनावी अंदाज भी देखते बना है। इस बीच टांक विधानसभा में चर्चा पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भूमिका को लेकर भी जोर पकड़ रही है। नाथद्वारा विधानसभा सीट से 2008 में कद्दावर नेता सीपी जोशी को मात्र एक वोट से हरवाकर गहलोत ने सत्ता के समीकरण बदलकर रख दिए थे। 2008 में उनके ही करीबी रहे कल्याण सिंह ने उन्हें मात्र एक वोट से पराजित कर दिया था। तब जोशी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे।

सीपी जोशी की परंपरागत विधानसभा सीट नाथद्वारा और सचिन पायलट की टांक सीट में कुछ जमीनी अंतर है। इस बार टांक विधानसभा पर सबकी नजरें टिक गईं हैं। पिछले 46 वर्षां में पहली बार कांग्रेस ने यहां अल्पसंख्यक उम्मीदवार नहीं उतारा है तो कांग्रेस की तरफ से 38 साल बाद पहली बार भाजपा ने इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। लगभग दो लाख मतदाताओं वाली सीट पर 60 हजार मुस्लिम मतदाता लंबे समय से मुस्लिम उम्मीदवार को जिताते आ रहे हैं। कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत वाले कद्दावर नेता सचिन पायलट उम्मीदवार हैं तो भाजपा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बाद यूनुस खान को नंबर दो की हैसियत वाला नेता माना जाता है। यूनुस खान अब तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट क्या नई इबारत लिख पाएंगे। जीत के समीकरण अपने पाले में ले जा पाएंगे? यह लाख टके का सवाल है पर 30 गुर्जर हजार मतदाता हैं जो सचिन पायलट के प्रबल पक्षधर हैं। इसके अलावा 35 हजार अनुसूचित जाति व 15 हजार माली वोट इस सीट को जिताने हराने में खासी भूमिका प्रदान करते हैं। बताते हैं कि माली समाज के 15 हजार वोट अशोक गहलोत के मुट्ठी में हैं वे जहां जिस ओर इशारा कर दें हवा उसी ओर पलट जाती है। देखना है कि 11 दिसंबर को गहलोत क्या गुल खिलाते हैं?

Updated : 12 Dec 2018 4:12 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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