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अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता से क्यों खुश है पाक, भारत की समझिए टेंशन

अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता से क्यों खुश है पाक, भारत की समझिए टेंशन
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काबुल। अफगानिस्तान में शांति के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच जो शांति समझौता हुआ है उसने कई सवाल खड़े किए हैं। भारत के लिहाज से कतर में हुए इस समझौते में कुछ भी नहीं है। शांति समझौता अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जालमे खालिलजाद और तालिबान के कमांडर मुल्ला अब्दुल गनी बरादार के बीच हुआ है। समझौते के वक्त अमेरिकी रक्षा मंत्री माइक पॉम्पियो और विदेश मंत्री मार्क एस्पर भी मौजूद रहे। इसमें तालिबान की तरफ से जो बयान दिए गए वह भारत के लिए चिंताजनक हैं।

इस समझौते पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में शांति और सुलह की हर प्रक्रिया में सहभागी है। साथ ही उम्मीद जताई है कि अफगानिस्तान आतंकवाद को खत्म करने में उचित कदम उठाएगा।

तालिबान के प्रतिनिधि अब्दुल्लाह बिरादर ने समझौते में मदद के लिए पाकिस्तान का नाम तो लिया, लेकिन भारत का कोई जिक्र नहीं था। अब्दुल्लाह बिरादर ने अफगानिस्तान में राष्ट्रपति अशरफ गनी का भी नाम नहीं लिया। इस समझौते में अफगानिस्तान सरकार की सक्रिय भागीदारी ना होने के कारण पहले से चिंता जताई जा रही थी।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के कुछ दिनों बाद हुए समझौते से ऐसा लग रहा था, इसमें भारत की भूमिका भी कुछ ना कुछ होगी ट्रंप ने दिल्ली में इसका संकेत भी दिया था, शायद इसी के बाद अमेरिका ने भारत से भी शांति समझौते में अपना प्रतिनिधि भेजने का अनुरोध किया है।

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कतर में हो रहे समझौते के लिए वहां भारत के राजदूत पी कुमारन को वहां मौजूद रहने को कहा। साथ ही विदेश सचिव हर्षवर्धन सिंगला को काबुल जाने का फरमान जारी किया गया, जिस समय दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर दस्तखत हो रहे थे श्रींगला काबुल में अफगान सरकार के साथ भारतीय हितों की बात कर रहे थे।

शांति समझौते पर दस्तखत से पहले पॉम्पियो ने कहा अगर अफगानिस्तान के सभी पक्षों ने इस पर अमल नहीं किया तो यह रद्दी का ढेर बन कर रह जाएगा। इसके बाद तालिबान प्रतिनिधि अब्दुल्लाह बिरादर ने अपने संबोधन में जिस तरह की भाषा का जिक्र किया वह 90 के दशक के तालिबान एप्रोच से बिल्कुल भी अलग नहीं था। बिरादर ने कहा कि इस्लामी मूल्यों की रक्षा के लिए अफगानिस्तान में सभी को एकजुट हो जाना चाहिए वह बार-बार कट्टर इस्लामी व्यवस्था की बात कर रहे थे।

अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत अरबों रुपए खर्च कर चुका है। इस वक्त भी कई विकास कार्य चल रहे हैं। भारत को आशंका है कि तालिबान के हाथ में सत्ता आने के बाद वह इन विकास कार्यों को बंद करा सकता है। भारत अफगानिस्तान में महिला सुरक्षा और उनके अधिकारों की भी बात करता रहा है। वहीं तालिबान हमेशा से महिलाओं पर अत्याचार का समर्थन करता रहा है। वह महिलाओं पर कई तरह की बंदिशें लगाने की बात करता रहा है। तालिबान 16 साल की लड़की की शादी का समर्थन करता है। समझौते में महिलाओं की आजादी का कोई जिक्र नहीं है।

तालिबान के साथ पाकिस्‍तान के अच्‍छे संबंध हैं। इस डील के बाद पाकिस्‍तान अपने आतंकी शिविर अपने देश से हटाकर अफगानिस्‍तान भेज सकता है। साथ ही दुनिया को दिखा सकता है कि वह आ‍तंकियों को पोषण नहीं दे रहा है। इससे वह आसानी से एफएटीएफ की ग्रे लिस्‍ट से बाहर आ जाएगा। इसके अलावा तालिबानी आतंकी अफगानिस्‍तान में पूरी तरह से कब्‍जा करने के जम्मू कश्‍मीर की ओर रुख कर सकते हैं।

इस मौके पर अमेरिकी रक्षा मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा, 'अगर तालिबान इसी तरह से शांति बहाली की ओर बढ़ता रहा तो अमेरिका 14 महीने के भीतर सारे सैनिकों को वापस बुला लेगा।' उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान ने सुनिश्चित किया है कि वह अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों को पनाह नहीं देगा। शांति बहाली के लिए तालिबान ने अल-कायदा और अन्य विदेशी आतंकवादी समूहों के साथ अपने संबंधों को खत्म करने में रुचि दिखाई है।

घोषणा में कहा गया कि शनिवार को हस्ताक्षर होने के 135 दिन के भीतर आरंभिक तौर पर अमेरिका और इसके सहयोगी अपने 8,600 सैनिकों को वापस बुला लेंगे। इसमें कहा गया कि इसके बाद ये देश 14 महीने के भीतर अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लेंगे।

Updated : 29 Feb 2020 3:34 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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