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क्या गुल खिलाएंगे असंतुष्ट ?

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विशेष प्रतिनिधि। विभागों के बंटवारे से ऐन पहले तक कांग्रेस में जिस तरह से खींचतान मची और बड़े नेताओं की गुटबाजी सामने आई उसने प्रदेश में कमलनाथ सरकार के भविष्य पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पूर्ण बहुमत न होने के बावजूद सिर्फ संख्या बल के आधार पर महामहिम राज्यपाल ने बिना देर लगाए कांग्रेस को सरकार बनाने का न्यौता भेज दिया। महामहिम के न्यौते पर कांग्रेस ने विधायक दल की बैठक बुलाई और पर्यवेक्षकों ने विधायकों का मत जानकर दिल्ली से कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कर दिया। बताते हैं कि कुल 114 विधायकों में से मात्र 22 विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की पैरवी की। इन 22 विधायकों को सिंधिया समर्थक मानें तो इनमें से सात कैबिनेट मंत्री सिंधिया के बना दिए गए।

यानि तीन विधायकों में एक मंत्री। यह बंटवारा सम्मानजनक कहा जा सकता है। एक कांग्रेसी नेता ने बड़ी सटीक टिप्पणी कर कहा कि जनता ने इस चुनाव में न सिंधिया को वोट दिया और न दिग्विजय को। जनता ने कांग्रेस को वोट दिया। अगर सिंधिया की सभा से ही कोई जीतता तो विजयपुर से कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष और सिंधिया के खासमखास रामनिवास रावत चुनाव क्यों हार गए?

अपनों को मंत्री बनवाने की जिद और होड़ के चलते जहां दिग्विजय सिंह ने अपने पुत्र जयवर्धन सिंह और परिवार के भतीजे प्रियव्रत सिंह को जब कैबिनेट मंत्री बनवा दिया तो फिर सिंधिया जी कहां चूकने वाले थे, उन्होंने भी पीछे हटना मुनासिब नहीं समझा और दो बार जीते अपने विधायकों को भी मंत्री बनाने पर अड़ गए। अड़ा-अड़ी के चक्कर में वरिष्ठ विधायक केपी सिंह और ऐंदल सिंह का पत्ता कट गया। दोनों ही कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं और पूर्व में मंत्री रह भी चुके हैं। फिर इनके साथ ये नाइंसाफी क्यों? बिसाहूलाल सिंह भी वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं। वे भी नाराज आए। उधर सिंधिया खेमे में राजवर्धन सिंह दत्तीगांव भी मंत्री न बनाए जाने पर अपने तेवर दिखा दिए। विभागों का वितरण मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है लेकिन इस विशेषाधिकार पर भी न सिर्फ कब्जा किया गया बल्कि डकैती भी डाली गई। विभाग वितरण से ऐन पहले तक मंत्री पसंदीदा विभाग लेने पर ही जिस तरह अड़े रहे उससे इस बात की शंका है कि कल मुख्यमंत्री की भी ये कितनी सुनेंगे।

बीते पन्द्रह साल से सत्ता से दूर रही कांग्रेस के नेताओं की ये तो सिर्फ बानगी मात्र है। अभी तो और भी ज्यादा असंतोष होना है। बताते हैं कि प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता अब इस बात का दबाव बनाएंगे कि उनका पट्ठा मात्र दो-ढाई हजार से ही हारा है, वह तो जीत के बहुत निकट पहुंच गया इसलिए निगम मण्डल और आयोग में उसे पद दिया जाए। इन स्थितियों में कमलनाथ कैसे सरकार चला पाएंगे और कैसे सबको संतुष्ट कर पाएंगे। इसमें संदेह है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि कमलनाथ जी एक सीमा तक तो दबाव बर्दाश्त कर लेंगे लेकिन जब उन्हें ज्यादा लाचारी दिखाई देगी तो विधानसभा भंग करा कर सबको सड़क पर लाने का माद्दा भी रखते हैं। कहीं ऐसा हो गया तो कांग्रेस के हाथ से गई सत्ता फिर कभी वापस नहीं आएगी। बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया तो दूध को...

Updated : 5 Jan 2019 9:38 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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