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सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में केरल सरकार अय्यप्पा भक्तों पर जुल्म ढा रही : जे. नंदकुमार

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में केरल सरकार अय्यप्पा भक्तों पर जुल्म ढा रही : जे. नंदकुमार
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नई दिल्ली / स्वदेश वेब डेस्क। प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे. नंदकुमार जी यहां कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में केरल सरकार अय्यप्पा भक्तों पर जुल्म ढा रही है। उनके धार्मिक और मानवअधिकारों का हनन कर रही है। केरल सरकार इस बात पर तुली हुई है कि किसी भी तरह अय्यप्पा मंदिर में महिलाओं का प्रवेश करा दिया जाए भले ही वह कोई भी हो जिसका हिन्दू धर्म और भक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं हो।

जे. नंदकुमार ने आज दिल्ली में केरल सरकार, राज्य की पुलिस और अर्बन नक्सल को आडे हाथों लिया । जे. नंद कुमार जी ग्रुप ऑफ इंटैलेक्चुअल और चेतना संगठन द्वारा आयोजित सेमिनार, सबरीमला भक्तों पर पुलिस अत्याचार विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के इशारे पर रेहाना फातिमा को पुलिस की वर्दी पहनाकर मंदिर में प्रवेश कराने की योजना बनाई गई थी जिसे अय्यप्पा भक्तों ने नाकाम कर दिया। जे. नंद कुमार जी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में केवल महिलाओं के अधिकार ही नहीं है, बल्कि मंदिरों के खजाने पर भी नजर रखी जा रही है।

उन्होंने केरल सरकार पर आरोप लगाया कि अल्पसंख्यकों को पूरा सहयोग और समर्थन दिया जा रहा है। हिन्दुओं के धार्मिक सांस्कृतिक और प्राचीन पूजा पद्धति को निशाने पर रखा जा रहा है। सबरीमला की पवित्र यात्रा पर धारा 144 लगाकर सरकार श्रद्धालुओं के साथ अन्याय कर रही है। जे. नंद कुमार ने यहां तक भी कहा कि हिन्दू धार्मिक मामलों में फैसला देने से पहले जजों को अपनी संस्कृति, अपने धर्म, वेद-उपनिषदों और मंदिर के प्राचीन नियमों और परम्पराओं का अध्ययन करना चाहिए । उन्होंने दावे के साथ कहा कि सबरीमाला मंदिर में किसी भी तरह महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जाता, बल्कि वहां के देवता अय्यप्पा के नियमों का पालन किया जाता है।

ग्रुप ऑफ इंटैलेक्चुअल एंड ऐकेडेमिशियन की संयोजक और सुप्रीम कोर्ट की वकील मोनिका अरोड़ा ने कहा कि हिन्दू धर्म को पश्चिमी धर्म की अवधारणा के चश्में से नहीं देखा जा सकता। अय्यप्पा मंदिर कोई पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि हजारों-लाखों भक्तों की आस्था के केन्द्र है। अय्यपा ब्रह्मचारी देवता हैं और उनके भी कुछ अधिकार और नियम हैं। यहां प्राचीन परम्पराएं लागू की गई हैं न कि कोई कुप्रथा यहां चलती है। केरल सदा से मातृप्रधान समाज रहा है। यहां की महिलाएं मंदिर में प्रवेश को लेकर कभी सुप्रीम कोर्ट नहीं गईं, बल्कि वह 50 वर्ष की आयु तक इंतजार करने को तैयार हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसल पर पुर्नविचार याचिका दायर करने वाली सुप्रीम कार्ट की वकील और चेतना संगठन की संयोजक प्रज्ञा परांडे ने कहा कि हिन्दू धर्म को एक षड्यंत्र के तहत अर्बन नक्सली और मैकाले पुत्र बदनाम कर रहे हैं। उनके निशाने पर सभी भारतीय त्यौहार और मंदिर हैं, आज अय्यप्पा है तो कल और मंदिर होंगे। अय्यप्पा भक्तों पर बहुत ज्यादा अत्याचार किए जा रहे हैं और उन के साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। प्रज्ञा परांडे ने इस बात पर दुख जताया कि कश्मीर में पत्थरबाजी करने वालों के मानवाधिकारों का मसला बुद्धजीवी उठाते हैं लेकिन अय्यप्पा भक्तों के अधिकारों पर चुप्पी साधे हुए हैं। किसी को क्या अधिकार है कि एक ब्रह्मचारी देवता को तंग किया जाए और उनके अधिकारों का हनन किया जाए। यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला पद्धति और परम्परा पर हमला है। तीन नन का रेप करने वाले बिशप को केरल सरकार गिरफ्तार नहीं करती लेकिन अय्यप्पा के तपस्वी भक्तों को कानून व्यवस्था के नाम पर गिरफ्तार कर रही है।

Updated : 30 Nov 2018 2:53 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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