कर्नाटक : येदियुरप्पा ने चौथी बार ली मुख्यमंत्री पद की शपथ
हारी बाजी जीतने में माहिर हैं 'जिद्दी' येदियुरप्पा
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- 31 जुलाई को विधानसभा में बहुमत साबित करेंगे
- मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री समेत स्वीकृत मंत्री पद 34
- तीन विधायकों को पहले ही अयोग्य घोषित किया
बैंगलुरु/वेब डेस्क। चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में सूबे की कमान संभालने वाले बीएस येदियुरप्पा चीजों को आसानी से नहीं छोड़ने के लिए जाने जाते हैं। जो लोग उन्हें जानते हैं, वे उन्हें आखिरी हद तक 'जिद्दी' बताते हैं। येदियुरप्पा किसी भी अवसर को चूकते नहीं हैं। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में देवगौड़ा, मल्लिकार्जुन खड़गे और निखिल कुमारस्वामी जैसे दिग्गजों की हार के बाद कांग्रेस-जनता दल (सेक्युलर) गठबंधन के भीतर चल रहे विरोधाभासों के बीच उन्होंने सत्ता में भाजपा की वापसी की संभावना को महसूस किया।
कांग्रेस और जद (एस) ने लोकसभा चुनाव के दौरान एक दूसरे के हितों को काटने पर काम किया जबकि राज्य सरकार में ये गठबंधन का हिस्सा थे। दोनों ही दल एक दूसरे को बोझ के रूप में देखते थे। कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार को हटाने के भाजपा के प्रयासों के कोडवर्ड 'ऑपरेशन कमल' को कम से कम छह बार पहले आजमाया गया था लेकिन जाहिर तौर पर यह अपने सातवें या आठवें प्रयास में अबकी सफल रहा।
दिलचस्प बात यह है कि कुमारस्वामी के समर्थन से येदियुरप्पा पहली बार 2007 में मुख्यमंत्री बने थे। 2008 में मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल एक झटके में समाप्त हुआ, जिसमें उनके खिलाफ गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। येदियुरप्पा ने जेल में भी एक महीना बिताया और 2011 में इस्तीफा दे दिया। वह 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में जीत के बाद तीसरी बार मुख्यमंत्री बने, क्योंकि भाजपा विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी थी। हालांकि भाजपा के पास सदस्यों की संख्या बहुमत से नौ कम थी। नतीजतन, येदियुरप्पा बहुमत साबित करने में विफल रहे और मुख्यमंत्री की कुर्सी जाती रही।
समाज कल्याण विभाग में एक छोटे से क्लर्क के रूप में करियर शुरू करने वाले येदियुरप्पा मिल मैनेजर, हार्डवेयर दुकान के मालिक और बाद में शिकारीपुरा नगरपालिका के अध्यक्ष बने। येदियुरप्पा ने कर्नाटक में पार्टी का चेहरा होने के रूप में एक लंबा सफर तय किया है। येदियुरप्पा छोटी उम्र में आरएसएस में शामिल हो गए। उसके बाद फिर तालुका और जिले में जनसंघ के नेता बने और फिर भाजपा में चले गए। उनकी वेबसाइट पर आपातकाल के दौरान उनके शिमोगा और बेल्लारी में 45 दिन तक जेल में रहने का गर्व से उल्लेख किया गया है।
येदियुरप्पा एक ग्रामीण राजनेता हैं जिन्होंने खुद को "किसान नेता" के रूप में स्थापित किया है। येदियुरप्पा के साथ काम करने वाले लोग उन्हें एक भरोसेमंद व्यक्ति के रूप में याद करते हैं, जो विचारों के साथ-साथ लोगों के लिए भी खुले हैं। कुछ लोग विपक्ष में रहने के दौरान अधिकारियों के साथ उनके टकरावपूर्ण रवैये को भी याद करते हैं। येदियुरप्पा ने राज्य में विभिन्न मुद्दों को लेकर जितनी पदयात्राएं की, लगभग सभी किसानों के कल्याण पर केंद्रित रही हैं। निस्संदेह राज्य में ऐसा कोई और भाजपा नेता नहीं है, जो येदियुरप्पा की तरह अपनी ऊर्जा, कमिटमेंट और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
कर्नाटक में येदियुरप्पा के लिए भाजपा के भीतर का सफर आसान नहीं था। एक दौर में येदियुरप्पा अनंत कुमार के साथ पार्टी में अपने को स्थापित करने के लिए जूझ रहे थे। येदियुरप्पा ने 1983 में कर्नाटक विधानसभा में पदार्पण किया तब वह भाजपा के 18 विधायकों में से थे। 1985 के राज्य विधानसभा के चुनावों में भाजपा के केवल दो विधायक थे। उस समय भाजपा के एक विधायक दूसरी तरफ चले गए और येदियुरप्पा को पार्टी का बैनर पकड़े छोड़ दिया गया। वह तब अपने नेतृत्व गुणों के लिए पहचाने जाते थे और उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
येदियुरप्पा के पास राजनीति में सफल होने के लिए सब कुछ है। वह कर्नाटक के उस लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिसका राज्य में वर्चस्व कायम है। 2012 में एक बार भाजपा ने उन्हें हल्का करने की गलती की और उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष की स्थापना की, जिसने लगभग 10 प्रतिशत वोट हासिल किए और 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया को सत्ता में आने में मदद की। बाद में येदियुरप्पा और भाजपा दोनों ने महसूस किया कि वे एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते और 2014 में एक समझौते के तहत वे एक हो गए। 76 साल की उम्र में, येदियुरप्पा अभी भी जिद्दी हैं। पार्टी हाईकमान कर्नाटक में भविष्य के लिए भले ही किसी युवा को विकल्प के रूप में तलाश रही हो लेकिन येदियुरप्पा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और न ही उन्हें कमतर किया जा सकता है। (हि.स.)
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