एस 400 डील को लेकर भारत ने कहा - अमेरिकी दबाव में रूस से यह समझौता रद्द नहीं होगा
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नई दिल्ली। भारत अमेरिकी दबाव में रूस से एस-400 समझौता रद्द नहीं करेगा। देश की सुरक्षा जरूरतों और रूस से अरसे पुराने संबंधों के मद्देनजर भारत एयर डिफेंस मिसाइल खरीद मामले में अमेरिकी आपत्ति के बावजूद उसे समझाने का प्रयास करेगा।
जापान के ओसाका में जी-20 सम्मेलन के दौरान 28-29 जून को मोदी-ट्रंप के बीच मुलाकात होनी है। इसके पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्री पोंपियो भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। उनकी यात्रा के दौरान रूस से रक्षा समझौते का मुद्दा उठ सकता है।
सूत्रों ने बताया कि भारत रूस के साथ स्वतंत्र रक्षा संबंधों को अमेरिका के साथ अपने बढ़ते सामरिक संबंधों में रोड़ा नहीं मानता। भारत अमेरिका को यही समझाने का प्रयास लगातार कर रहा है कि दोनों देशों के बीच रक्षा व रणनीतिक संबंध बहुत मजबूत दिशा में हैं। बहुध्रवीय कूटनीतिक संबंधों की दुनिया में एक देश का दूसरे देश से संबंध किसी अन्य देश के लिए बाधक नहीं हो सकता।
भारत अमेरिका के साथ अपना रक्षा व्यापार लगातार बढ़ा रहा है। कई नई खरीद परियोजनाओं पर बात चल रही है। रक्षा व्यापार 18 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। इस साल के अंत में दोनों देशों का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास भी प्रस्तावित है। जिसमें तीनों सेनाएं हिस्सा लेंगी। भारत का मानना है कि रूस के साथ पहले से तय किए गए सौदों को रद्द करना किसी के हित में नहीं है। भारत अभी भी रूस के साजो सामान पर बड़ी मात्रा में निर्भर है। अमेरिका चाहता है कि भारत उसके साथ रणनीतिक संबंधों के विस्तार के चलते रूस से अपने सामरिक सहयोग को सीमित करे। लेकिन यह अचानक नहीं हो सकता।
जानकारों का कहना है कि रूस के साथ रक्षा व्यापार पहले की तुलना में कम हुआ है और अमेरिका के साथ कई गुना बढ़ा है। लेकिन अमेरिका का मानना है कि अगर भारत रूस से एस-400 जैसी अत्याधुनिक एयर डिफेंस मिसाइल खरीदता है तो उसकी अमेरिका से स्वाभाविक खरीद क्षमता पर असर पड़ेगा।
गौरतलब है कि एस-400 रूस का सबसे आधुनिक मिसाइल रक्षा तंत्र है। पिछले साल रूस के साथ इस समझौते पर दस्तखत हुए थे। इसे अमेरिका के थाड सिस्टम से भी बेहतर माना जाता है। यह परमाणु क्षमता वाली 36 मिसाइलों को एक साथ नष्ट कर सकता है। यह चार सौ किलोमीटर की दूरी तक और 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक किसी भी मिसाइल या एयरक्राफ्ट को मार गिराने में सक्षम है। भारत के लिए यह समझौता मील का पत्थर माना जा रहा है। पड़ोसी देशों से खतरे के मद्देनजर भारत के लिए यह समझौता काफी अहम है।
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