Home > विदेश > यूएन में अटलजी का वह हिंदी भाषण जिसके बाद वे पहले ऐसे भारतीय बने

यूएन में अटलजी का वह हिंदी भाषण जिसके बाद वे पहले ऐसे भारतीय बने

बहुत पुरानी है 'वसुधैव कुटुंबकम' की परिकल्पना

यूएन में अटलजी का वह हिंदी भाषण जिसके बाद वे पहले ऐसे भारतीय बने
X

मैं भारत की जनता की ओर से राष्ट्र संघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं। महासभा के इस 32वें अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्र संघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुन: व्यक्त करना चाहता हूं। जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल छह मास हुए हैं। फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुन: प्रतिष्ठित हो गए हैं। इस भय और आतंक के वातावरण में हमारे लोगों को घेर लिया था वह दूर हो गया है। ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे यह सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा। अध्यक्ष महोदय 'वसुधैव कुटुंबकम' की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के अब साकार होने की संभावना है।

सफलताएं और असफलताएं केवल मानवीय गरिमा और न्याय के मापदंड से मापी जानी चाहिए

यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं, आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है। अंतत: हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से मापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज वस्तुत: हर नर, नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की आश्वस्ती देने में प्रयत्नशील हैं। अफ्रीका में चुनौती स्पष्ट है। प्रश्न यह है कि किसी जनता को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ रहने का अनपरणीय अधिकार है या रंगभेद में विश्वास रखने वाला अल्पमत किसी विशाल बहुमत पर हमेशा अन्याय और दमन करता रहेगा। नि:संदेह रंगभेद के सभी रूपों का जड़ से उन्मूलन होना चाहिए। हाल में इजराइल ने वेस्ट बैंक और गाजा में नई बस्तियां बसाकर अधिकृत क्षेत्रों में जनसंख्या परिवर्तन करने का जो प्रयत्न किया है संयुक्त राष्ट्र को उसे पूरी तरह अस्वीकार और रद्द कर देना चाहिए। यदि इन समस्याओं का संतोषजनक और शीघ्र ही समाधान नहीं होता तो इसके दुष्परिणाम इस क्षेत्र के बाहर भी फैल सकते हैं।

मानव के कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान में नहीं रहेंगे पीछे

यह अति आवश्यक है कि जिनेवा सम्मेलन का शीघ्र ही पुन: आयोजन किया जाए और उसमें पीएलओ को प्रतिनिधित्व दिया जाए। अध्यक्ष महोदय भारत सब देशों से मैत्री चाहता है और किसी पर प्रभुत्व स्थापित नहीं करना चाहता। भारत न तो आणविक शस्त्र शक्ति है और न बनना ही चाहता है। नई सरकार ने अपने असंदिग्ध शब्दों में इस बात की पुनर्घोषणा की है हमारे कार्य सूची का एक सर्वस्पर्षी विषय जो आगामी अनेक वर्षों और दशकों में बना रहेगा वह है मानव का भविष्य मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे।

Updated : 17 Aug 2018 12:24 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top