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सबसे जुदा था गायक मोहम्मद रफी का अंदाज

उमेश शुक्ल

सबसे जुदा था गायक मोहम्मद रफी का अंदाज
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किसी शायर ने कभी एक लाइव प्रोग्राम के दौरान यह कहा था... जमीं से फलक तक जिसकी परवाज है, वही जिसपे हिंद को नाज है, सभी से जुदा जिसका अंदाज है मो. रफी की वो आवाज है। आज जब उसे याद करता हूं तो वे पंक्तियां अत्यंत जीवंत लगती हैं। रफी साहब की आवाज आज भी करोड़ों दिलों पर राज कर रही है। जो कभी श्रोताओं को रोमांस से भर देती थी तो कभी भक्ति और कभी दर्शन और आध्यात्मिकता के सागर में गहराई तक उतार देती थी।

मो. रफी को एक बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। एक बार बेस्ट नेशनल सिंगर अवार्ड. और छह बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। सन 1967 में भारत सरकार ने पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा। उन्होंने गायकी के 35 साल के कॅरियर में ंिहंदी समेत विभिन्न भाषाओं में हजारों गीतों को स्वर दिया। उन्हें हिंदी गीतों का स्वर सम्राट के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने हिंदी के अलावा असमी, कोंकणी, भोजपुरी, उडिय़ा, बांग्ला पंजाबी, मराठी, सिंधी, गुजराती, तेलुगु, मगही, मैथिली और उर्दू में लिखे गीत भी गाए।

मो. रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के अमृतसर जिले के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ। उनके पिता का नाम हाजी अली मोहम्मद था। रफी अपने छह भाइयों में सबसे छोटे थे। रफी के गायन की शुरुआत एक फकीर के सान्निध्य में हुई। रफी के पिता लाहौर में व्यवसाय करते थे। रफी के बड़े भाई के एक मित्र ने गायन के प्रति उनके लगाव को देखा तो परिजनों को उन्हें बंबई भेजने की सलाह दी। सन 1944 में बंबई पहुंचे। वहां रफी ने उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवनलाल मटटू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत के गुर सीखे। वैसे रफी ने 13 साल की उम्र में ही अपनी गायकी का जलवा लाहौर में बिखेर दिया था। सन 1941 में श्याम सुंदर के निर्देशन में पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए जीनत बेगम के साथ युगल गीत गाकर पाश्र्व गायन के क्षेत्र में कदम बढ़ाया। यह फिल्म सन 1944 में रिलीज हुई। इसी वर्ष लाहौर स्थित आल इंडिया रेडियो के केंद्र में गायन के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया।

बालीवुड में सन 1945 में उन्होंने फिल्म गांव की गोरी के लिए 'अजी दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसीÓ गीत गाकर पदार्पण किया। यह मौका उन्हें श्याम सुंदर की सिफारिश के आधार पर ही मिला। श्याम सुंदर ने जीएम दुर्रानी से कहकर उन्हें यह अवसर दिलवाया। तब रफी भिंडी बाजार क्षेत्र में रह रहे थे। कवि तनवीर नकवी ने उनकी मुलाकात अब्दुर राशिद खान, महबूब खान और अभिनेता नजीर से करवाई। सन 1945 में रफी दो फिल्मों मे प्रविष्ट हुए। फिल्म लैला मजनू के लिए 'तेरा जलवा जिसने देखा वो तेरा हो गयाÓ गाया। नौशाद के निर्देशन में कई फिल्मों के लिए गीत गाए। मेरे सपनों की रानी रूही-रूही केएल सहगल के साथ फिल्म शाहजहां के लिए सन 1946 में गाया। इसी साल उन्होंने महबूब खान की फिल्म अनमोल घड़ी के लिए 'तेरा खिलौना टूटाÓ और सन 1947 में नूरजहां के साथ युगल गीत 'यहां बदला वफाÓ फिल्म जुगनू के लिए गाया। विभाजन के बाद रफी ने भारत में ही रहने का निर्णय लिया। सन 1949 में रफी ने नौशाद की खातिर फिल्म चांदनी रात, दिल्लगी और दुलारी, श्याम सुंदर के लिए बाजार और हुस्नलाल भगतराम के लिए मीना बाजार फिल्म के गीत गाए। रफी की गायकी का अंदाज केएल सहगल और जीएम दुर्रानी से खासा प्रभावित था। सन 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद हुस्नलाल भगतराम. राजेंद्र कृष्ण और रफी ने काफी मशक्कत कर 'सुनो सुनो ऐ दुनियावालो बापूजी की अमर कहानीÓ गीत तैयार किया। यह गीत गाने के लिए रफी को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने आवास पर आमंत्रित किया। इसी वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें सिल्वर मेडल देकर नेहरूजी ने सम्मानित किया।

रफी ने सन 1950 में फिल्म बेकसूर के लिए 'खबर किसी को नहीं वो किधर देखते हैÓं और सन 1956 में हम सब चोर हैं फिल्म के लिए 'हमको हंसता देख जमाना जलता हैÓ गीत गाया जो सराहा गया। किस्मत या यूं कहें कि दैवयोग से रफी को नौशाद का भरपूर सहयोग मिला। रफी से पहले नौशाद के फेवरिट सिंगर तलत महमूद थे। सन् 1952 मे रिलीज हुई इस फिल्म के गीत 'ओ दुनिया के रखवालेÓ और 'मन तड़पत हरि दर्शन को आजÓ को खूब ख्याति मिली। रफी ने नौशाद के लिए 149 गाने गाए जिसमें से 81 एकल थे। सन 1960 में रफी ने मुगल ए आजम के लिए ऐ मोहब्बत जिंदाबाद गीत में भी स्वर दिया।

कालांतर में वे एसडी बर्मन के संपर्क में आए। बर्मन ने देवानंद और गुरुदत्त के लिए रफी के स्वर का उपयोग किया। रफी ने सन 1957 में प्यासा, सन 1959 में कागज के फूल. सन 1963 में तेरे घर के सामने, सन 1965 में गाइड और सन 1973 में अभिमान फिल्म के गीत गाए। बाद में रफी का संपर्क श्ंाकर.जयकिशन से हुआ। इन सबकी साझीदारी ने फिल्म जगत को नायाब गीत दिए। ये सभी हिट साबित हुए। शंकर.जयकिशन की जोड़ी ने रफी का प्रयोग अभिनेता शम्मी कपूर और राजेंद्र कुमार के लिए किया। जो छह फिल्म फेयर अवार्ड रफी को मिले उनमें से तीन शंकर.जयकिशन के निर्देशन में गाए गीतों पर ही थे। रफी ने शंकर..जयकिशन के लिए 341 गीत गाए। इनमें से 216 एकल गीत थे।

मो. रफी को पहला फिल्म फेयर अवार्ड गीतकार रवि के निर्देशन में गाए गाने पर मिला। फिल्म का नाम था चैदहवीं का चांद। सन 1968 में रवि के निर्देशन में फिल्म नीलकमल के गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा तुझको सुखी संसार मिलेÓ के लिए रफी को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। रफी ने संगीतकार मदन मोहन के निर्देशन में सन 1950 में फिल्म आंखें के लिए 'हम इश्क में बर्बाद हैं बर्बाद रहेंगेÓ गीत गाया। इसके बाद तेरी आंखों के सिवा, ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, और तुम जो मिल गए हो... आदि गीत गाए।

रफी ने ओपी नैयर के लिए भी अनेक गीत गाए। नैयर ने आशा भोंसले और रफी से कई युगल गीत गवाए। रफी ने इनके निर्देशन में नया दौर, तुम सा नहीं देखा और कश्मीर की कली समेत कई फिल्मों के गीत गाए। रफी ने नैयर के निर्देशन में 157 गीत गाए जिनमें से 56 एकल थे। संगीतकार लक्ष्मीकांत.प्यारेलाल के साथ भी उनकी खूब जमी। इनके लिए रफी ने सन 1964 में फिल्म दोस्ती के लिए चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे गीत गाया जिसे फिल्म फेयर अवार्ड मिला। रफी ने इनके लिए 369 गीत गाए जिनमें से 186 एकल थे। सन 1974 में रफी ने 'तेरी गलियों में ना रखूंगा कदम आज के बादÓ गीत से खूब वाहवाही बटोरी। उन्होंने सन 1977 में फिल्म हम किसी से कम नहीं के गीत 'क्या हुआ तेरा वादाÓ....पर राष्ट्रीय और फिल्म फेयर अवार्ड जीता। रफी ने ऋ षि कपूर अभिनीत फिल्म लैला मजनू के गीतों से भी खूब प्रसिद्धि पाई। उन्होंने बैराग, अमर अकबर एंथोनी, अपनापन. सरगम, सुहाग, कुर्बानी, दोस्ताना, द बर्निंग ट्रेन, नसीब. अब्दुल्ला, शान, आशा, आप तो ऐसे ना थे, जमाने को दिखाना है आदि फिल्मों के गीतों से श्रोताओं पर अमिट छाप छोड़ी।

31 जलाई 1980 को सुबह 10.50 बजे काल के पंजों ने उस आवाज को सदा के लिए खामोश कर दिया।

(लेखक बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी में कार्यरत्त हैं।)

Updated : 21 Dec 2019 11:30 PM GMT
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