परिधान के क्षेत्र में विश्वसनीयता के झंडे गाड़े हैं टीटी गारमेंट
मानव जीवन को चार अवस्थाओं में विभक्त किया गया है ।
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मानव जीवन को चार अवस्थाओं में विभक्त किया गया है। जिसके तहत प्रत्येक अवस्था के लिए 25 साल निर्धारित किए गए हैं। 25 साल का सफर तय करने में जिस धैर्य व संकल्प की जरूरत होती है, उसे मिसाल के तौर पर देखा जाता है। हम बात कर रहे हैं टीटी गारमेंट की। यह अपने आप में जाना पहचाना ब्रंड है जो 25 साल से लोगों के दिलों में विश्वास का पर्याय बना हुआ है। 25 साल की इस निष्कंटक यात्रा का श्रेय देश की जनता को देते हुए टीटी गारमेंट के चेयरमैन डॉ रिखब जैन ने कहा कि यह अपने आप में अकल्पनीय है कि 25 वर्ष के इतने लंबे सफर में कोई एक भी भी शिकायत न रही और न कोई नोटिस कागजात का अवसर आया। उन्होंने बताया कि 64 वर्षों की इस अनुभव यात्रा में बीएसई, एनएसई, सेबी, एमसीए और टी टी ब्रांड के करोड़ों ग्राहकों को हमें विश्वास व सहयोग हमेशा मिला है। उनका कहना है कि इस दौरान उन्होंने किसी तरह की लापरवाही या सिद्धांतों से समझौता नही किया। शेयर मार्केट के साथ लेनदेन पूर्णतया पारदर्शिता व नियमानुसार रही। श्री जैन ने बताया कि वे किस तरह पढ़ाई के दिनों से हौजरी व्यापार से जुड़ गए थे। एमबीए, चार्टेड एकाउंट, कंपनी सेक्रेटरी के कोर्स किए।
अनुभव प्राप्त करने के बाद उनके परिवार ने निर्यात के क्षेत्र में हाथ फैलाए। जल्द ही यह व्याापार चैकेस्लोवाकिया, पोलेंड, आदि पूर्वी यूरोप के देशों में विस्तार पा गया। और टी टी लेबल लगाना शुरू किया। चूंकि कोलकाता से यात्रा आरंभ हुई थी लेकिन नक्सलवाद के चलतउन्होने दिल्ली में मार्केटिंग कार्यालय स्थापित किया। प्रारंभ में पूंजी तीन लाख रुपए की थी और इसके एवज में चालीस लाख की बिक्री थी। लेकिन जल्द ही इसने विस्तार पाया। सफलता की सीढिय़ां चढ़ते देख 1978 में तिरुपति टैक्स्निट लिमिटेड के नाम से कंपनी अस्तित्व में आ गई। और इसके लिए गाजियाबाद में कंपनी की निटिंग फैक्टरी और गारमेंट फैक्टरी लगाई गई। इसके कुछ वर्षों बाद वर्ष 1982 में उन्होंने प्रोडक्शन फ्रेंचाइजीज बनाने का क्रम भी चलाया गया। इस पहल का नतीजा यह रहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में कई लोग फे्रंचाईजी बन गए।
विज्ञापन में रेडियो, टीवी, अखबार, सिनेमा आदि प्रमुख रूप से माध्यम बने। जिसके चलते टीटी गारमेंट देखते ही देखते लोगों की निगाहों में आ गया। नित नए-नए सोपानों पर चढ़ते देख कंपनी के अधीनस्थ अधिकारियों ने पब्लिक इश्यू बनाकर ब्रांड को आगे बढ़ाने का सुझावा दिया। श्री जैन बताते है कि उन्हें इसके लिए महात्मा गांधी, कबीर, संत थिरू व्लूवर इस व्यवसाय के प्रमुख प्रेरणास्रोत रहे हैं । 1978 में कंपनी का टर्नओवर एक करोड़ का हो गया था। 1982 तक आते टर्न ओवर ने छलांग मारते हुए 32 करोड़ तक पहुंचाया। व्याापार की इस यात्रा में श्री रिखब जैन ने उन बैंकों का भी आभार जताया जिन्होंने आगे बढऩे के लिए मजबूत स्तंभों की भांति लगातार संबल प्रदान किया। जिनमें ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स, पंजाब नेशनल बैंक प्रमुख हैं। इनके शीर्ष अधिकारियों ने लगातार मार्गदर्शन किया।
सफल्ता के इस सोपान में 1879 में टीटी का एक चैरिटेबिल ट्रस्ट भी अस्तित्व में आया। 1992 से बीकानेर में एक मैटरनिटी अस्पताल, जनरल आपीडी, बहुत ही जनहितकारी तरीके से चलाई जा रही है। भगवान महावीर विकलांग समिति, वीरायतन, तिरुपति अन्नक्षेत्र में तथा अनेक एनजीओ, को निरंतर अनुदान देते रहते हैँ। छात्रों को छात्रवृतित्तयां दी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि इन सब कार्यों के पीछे उनके अटल व कभी न बदलने वाले सिद्धांत रहे हैं। यही कारण है कि इन सब मजबूत सिद्धांतों के चलते अनेक बार आर्थिक मंदी, मोनेटरी क्राइसिस, विद्युत आपूर्ति की कमी, यार्न एक्सपोर्ट, मानव शक्ति की कमी के बावजूद हमने हर समस्याओं तूफानों के सामने रहने के समय कंपनी अडिग रही। आप सुनकर हैरान रह जाएंगे कि कंपनी के सभी कर्मचारी नशामुक्त जीवन यापन करते हैं।
शाकाहारी भोजन, सभी का पसंदीदा भोजन है। उन्होंने अपनी पालिसी का प्राकट्य करते हुए कहा कि रतन टाटा, रामकृष्ण जी बजाज, की नीतियां आदर्श रही हैं। अपनी सफलता के लिए कंपनी के कर्मचारियों के सहयोग व श्रम को आधार मानते हुए श्री रिखब जैन कहते हैं कि उन्हें करोड़ों ग्राहकों, स्वजनों, परिजन, मित्र, शेयर होल्डर, दलाल, निवेशक, बैंक संस्थान, सरकार, श्रमिक, उपभोक्ता, नता समाज सबका सहयोग मिला है। उन्होंने सवाल उठाया क्या बिना स्नेह, आशीर्वाद के कोई कार्य सफल हो सकता है? कंपनी का इस समय टर्न ओवर 750 करोड़ रुपए का है जिसको आगे एक हजार करोड़ का लक्ष्य पार करना है। कंपनी में संभावनाएं बनी हुई हैं।
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