Home > अर्थव्यवस्था > दाल के दामों में हुई वृद्धि, जानें क्या है वजह

दाल के दामों में हुई वृद्धि, जानें क्या है वजह

दाल के दामों में हुई वृद्धि, जानें क्या है वजह
X

नई दिल्ली। अरहर की दाल के खुदरा दाम सौ रुपये के पार पहुंच गए हैं। पिछले एक डेढ़-दो माह में थोक भाव में आई तेजी से यह उछाल दिखा है। अगर मानसून सामान्य नहीं रहता है तो दालों खासकर अरहर के दाम फिर आसमान छू सकते हैं। अरहर दाल बाजार और मॉल में 100 से 120 रुपये किलो तक के दाम में बिक रही है। मंडी विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले दो माह में थोक दाम में करीब एक हजार रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। लेमन तुअर 5850 तक और अरहर दड़ा 7300 रुपये तक पहुंच गई है। दाल पटका 7600 से 8200 रुपये प्रति क्विंटल तक है। उनका कहना है कि मानसून सामान्य रहने की संभावनाओं से पिछले एक हफ्ते में थोक दाम थोड़ा गिरे भी हैं, लेकिन खुदरा विक्रेताओं ने दाम नहीं घटाए। विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दालों का दाम ऊंचा है। दालों के बड़े उत्पादक देश म्यांमार में भी फसल इस बार आधी रही है। उनका कहना है कि उड़द की नई फसल सितंबर में आएगी और अरहर की नई फसल तो दिसंबर-जनवरी तक नहीं आनी है, ऐसे में कीमतों में तेजी आगे भी कायम रह सकती है।

पिछले कुछ सालों से दाम में नरमी रहने के कारण किसानों ने कम रकबे में दाल की बुवाई की। रकबे के हिसाब से उत्पादन भी कम रहा और कीड़े लगने से भी काफी बड़े इलाके में फसल चौपट हो गई। इससे अरहर की पिछली रबी और खरीफ दोनों फसलों का उत्पादन प्रभावित हुआ। दिसंबर-जनवरी की महाराष्ट्र और कर्नाटक की पैदावार तो बेहद खराब रही। वहीं यूपी, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में भी उत्पादन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मानसून सामान्य नहीं रहा तो लगातार दूसरे साल दालों का फसल चक्र प्रभावित होगा। इससे उत्पादन कम होगा और अरहर समेत सभी दालों में तेजी का रुख रहेगा। महाराष्ट्र और कर्नाटक के ज्यादातर इलाके पहले ही जल संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए तो फिर वही स्थिति आ सकती है, जब अरहर के दाम 200 रुपये प्रति किलो के करीब पहुंच गए थे। इसके बाद मोजाम्बिक और अन्य देशों से दाल का भारी निर्यात करना पड़ा था।

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के बाजार में गलत समय पर हस्तक्षेप से नुकसान होता है। सरकार ने ऊंचे भाव के दौरान 90 रुपये में बाजार से दाल खरीदी और फिर नेफेड के माध्यम से 30 रुपये में बेच दी। मसूर और चना भी इस तरह सस्ता बेचा गया। इससे बाजार बिगड़ता है। दाम तेजी से नीचे गिरते हैं तो किसानों को नुकसान होता है और उछाल आता है तो वह अगले साल बंपर उत्पादन को प्रेरित होता है, जिससे फिर दाम औंधे मुंह गिरते हैं। गर्मी के मौसम में सब्जियों, दालों के दाम में तेज उछाल से खुदरा महंगाई मई में तीन का आंकड़ा पार कर सकती है। 3.1 फीसदी के साथ इसके सात माह के उच्चतम स्तर पर रहने की संभावना है, जो अप्रैल में 2.92 फीसदी रही थी। हालांकि यह आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य से काफी कम है और पहली छमाही तक चिंता की बात नहीं है। आरबीआई का अनुमान है कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई चार फीसदी के आसपास पहुंच सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च से खाद्य पदार्थों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। इस साल प्री-मॉनसून की बारिश करीब 22 फीसदी कम हुई है। मानसून में देरी से बुवाई भी देरी से होगी, जिसका आगे भी असर दिखेगा।

Updated : 11 Jun 2019 6:02 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top