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लॉकडाउन के कारण खेतों में सड़ रही सब्जियां को लेकर किसानों ने दी आत्महत्या की चेतावनी

लॉकडाउन के कारण खेतों में सड़ रही सब्जियां को लेकर किसानों ने दी आत्महत्या की चेतावनी
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नई दिल्ली। कोरोना लॉकडाउन ने लोगों को घरों में कैद होने पर मजबूर किया लेकिन सबसे ज्यादा मार सब्जी उगाने वाले किसानों पर पड़ी है। बाजार में सब्जियां जा नहीं पा रही है और बिचौलिये कम दाम दे रहे हैं। यहां तक की सब्जियां खेतों में सड़ रही हैं। यूपी-बिहार, झारखंड और उत्तराखंड के अलावा एनसीआर सब जगह यही हाल है। बेहाल किसान सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं। रांची में तो 10 गांव के दर्जनों किसानों ने सरकार को पत्र लिखकर आत्महत्या करने की चेतावनी तक दे डाली है।

झारखण्ड में बाजार नहीं मिलने के कारण सब्जी उत्पादक किसान तबाह हैं। 10 गांव के किसानों ने सहकारिता पदाधिकारी को पत्र लिखकर आत्महत्या की चेतावनी दी है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि व्यापारियों को गांव तक नहीं आने देने से उनका माल बाजार तक नहीं पहुंच पा रहा है। पहले किसान अपने उत्पाद उड़ीसा, बंगाल और छत्तीसगढ़ भेजते थे। प्रतिदिन करीब 70 से 80 टन सब्जियां इन राज्यों में भेजी जाती थीं। लेकिन अभी किसानों को सब्जी लेकर दूसरे राज्यों में जाने की अनुमति नहीं है। साथ ही जो स्थानीय बाजार हैं वे भी बंद कर दिए गए हैं। सहकारिता पदाधिकारी मनोज कुमार ने बताया कि वे किसानों की समस्या का समाधान करने का प्रयास कर रहे हैं।

बिहार में सब्जी उत्पादकों की कमर टूट गई है। खेतों में फसल तैयार है लेकिन सब्जियां बाहर नहीं जाने से खेतों में सूख जा रही हैं। स्थानीय स्तर पर खपत भी कम हो रही है। सारण के किसान ठाकुर भगत व लक्ष्मण साह कहते हैं- स्थानीय स्तर पर किसी तरह थोड़ी-बहुत खपत हो रही है। ऐसी स्थिति में किसानों को सीधे नुकसान हो रहा है। सत्यनारायण सिंह कहते हैं- सरकार को सब्जी उत्पादकों के लिए कुछ उपाय करना चाहिए ताकि हम बर्बादी से बचें। भोजपुर के स्थानीय मंडियों में सब्जियां आ रही हैं पर बाहर में सप्लाई चेन पर ब्रेक लग जाने से उचित कीमत नहीं मिल पा रही है। यहां की सब्जियां रेफ्रिजरेटर वैन से राज्य के विभिन्न जिलों के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी भेजी जाती हैं। अभी ऐसा नहीं हो पा रहा है।

मेरठ जिले में 22 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन पर सब्जी का उत्पादन होता है। लॉकडाउन होने के बाद जिले की मंडियों में किसान सब्जियां लेकर पहुंच रहे हैं, लेकिन खुदरा ग्राहकों पर रोक से सब्जी कम बिक रही। वहीं, दिल्ली के आजादपुर मंडी में सब्जियों का जाना बिल्कुल बंद है। इससे सब्जी उत्पादकों को नुकसान हो रहा है। सहारनपुर के डेढ़ सौ से ज्यादा गांव में लौकी, तोरी, कद्दू, टमाटर, खीरा, भिंडी, गोभी आदि की खेती होती है। देहरादून-हरिद्वार नजदीक होने के चलते ज्यादातर सब्जी इन्हीं शहरों में जाती है। बुलंदशहर, बागपत, मुजफ्फरनगर और बिजनौर में किसानों का यही हाल है।

देहरादून हरिद्वार के आसपास के कुछ किसानों को सब्जी निकालने के लिए मजदूर और ढोने के लिए वाहन नहीं मिल पा रहे। खेतों से पूरी सब्जियां नहीं उठ रही हैं। सहसपुर के मटर उत्पादक भूदेव मुताबिक मटर पर्याप्त है, लेकिन डिमांड कम है। दून मंडी इंस्पेक्टर अजय डबराल ने कहा- किसानों को सब्जी तुड़ाई के साथ ही ढुलान में मजदूर नहीं मिलने की शिकायतें मिल रही हैं। यूएसनगर में अधिकतर किसान जनपद की सीमा से लगे यूपी बॉर्डर से भी सब्जी लेकर आते हैं,लेकिन पास नहीं होने के कारण किसान सब्जी लेकर मंडी नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस कारण उनकी सब्जियां खराब हो रही है।

गाजियाबाद में खेतों में सब्जियों की फसल खराब हो रही है। सब्जी की कटाई और समय से बाजार तक नहीं पहुंचने से किसानों के सामने आर्थिक तंगी आ गई है। मोदीनगर तहसील क्षेत्र के किसानों का कहना है लॉकडाउन के कारण लोग ट्रैक्टर और मालवाहक वाहन लेकर आने को तैयार नहीं है। ऐसे में सब्जियों की काफी फसल बर्बाद हो रही है। किसानों को नुकसान हो रहा है। क्षेत्र में करीब 25 गांवों में छोटे-बड़े किसान आलू, बैगन, मिर्च, गोभी, लौकी उपजाते है। मोदीनगर, मेरठ और साहिबाबाद की मंडी में सब्जियों की आपूर्ति होती है। भोजपुर के किसान कृष्णपाल एवं किरनपाल का कहना है कि कोरोना बंदी में टैक्टर वाले आने को तैयार नहीं हैं।

वाराणसी में स्थित पूर्वांचल की सबसे बड़ी फल और सब्जी मंडी पहड़िया में यह बेहाली साफ देखी जा सकती है। लाखों रुपये के फल रखे रखे सड़ने के कारण सड़कों पर फेंकना पड़ रहा है। कई फल औऱ सब्जी तो मवेशियों के पेट भरने लायक भी नहीं रह गए हैं। यहां से माल न सिर्फ पूर्वांचल के जिलों में जाता है बल्कि बिहार बंगाल से लेकर असम तक के कारोबारी यहां आकर माल खरीदते रहे हैं। इन्हीं व्यापारियों के भरोसे विभिन्न राज्यों से फल और सब्जी ट्रकों में भरकर यहां आता रहा है। शुक्रवार को मण्डी में एक ट्रक संतरा व एक ट्रक नीबू की आवक हुई। लेकिन खरीदार नहीं पहुंचे। मण्डी में तीन डीसीएम अनानास पहले से पड़ा था। इसकी बिक्री नहीं होने से माल पूरी तरह पककर सड़ गए। अन्य सामान को बचाने के लिए सड़े अनानास को सड़क पर फेंकना मजबूरी बन गया। कारोबारियो के अनुसार लगभग सात लाख रुपये का माल खराब हो गया है।

बीते महीने ओले-बारिश से फसल आधी रह गई फिर लॉकडाउन ने मंडियों के रास्ते बंद कर दिए। गोरखपुर, बनारस, कानपुर और लखनऊ के किसानों के लिए यह लॉकडाउन मुसीबत का सबब बन गया है। बरेली तरफ के किसान जरूर कुछ अपनी सब्जियां उत्तराखंड भेज पा रहे हैं। किसान औने-पौने दामों पर आढ़तियों को सब्जियां बेचने पर मजबूर हैं। राजपुर गांव के किसान अदालत गौड़ ने खेत में उगाए बैगन और पालक काटकर जानवरों को खिला दिए। गौड़ के साथ तमाम किसानों के खेतों में कच्चा केला, मटर, भिंडी, लौकी आदि तैयार हैं लेकिन मंडी तक वे पहुंचा नहीं सकते। देवरिया में भी रामपुर, कमधेनवा और कोन्हवलिया के सब्जी किसान पालक और गोभी काटकर पशुओं को खिला रहे हैं। खामपार के भोला ने कहा दो एकड़ में तैयार लौकी, गोभी और हरी मिर्च खरीदने एक हफ्ते से कोई व्यापारी नहीं आया। इन किसानों का कहना है-पिछले 10 दिन में शायद ही कोई किसान होगा, जिसने बाजार जाकर सब्जी बेचने की कोशिश की हो और पिटा न हो।

आगरा में 100 से ज्यादा गांवों में लौकी, शिमला मिर्च, धनिया, टमाटर, बैंगन, काशीफल, हरी मिर्च, मैथी, पालक आदि सब्जियां होती हैं। लेकिन इस समय माल की सप्लाई नहीं हो पा रही। लोकल बिक्री पर ही निर्भरता। माल सस्ता बेचना पड़ रहा। जो लौकी आठ से दस रुपये में दिल्ली जाती है। उसे लोकल में पांच रुपये में बेच कर खत्म करना पड़ रहा। इसी प्रकार शिमला मिर्च के भी 20-30 रुपये किलो की जगह काफी कम दाम मिल रहे।

Updated : 4 April 2020 5:41 AM GMT
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Swadesh Digital

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