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संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने विवेकानंद की 116वीं पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि

केन्द्रीय संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने संत स्वामी विवेकानंद की 116 पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी है।

संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने विवेकानंद की 116वीं पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि
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संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने विवेकानंद की 116वीं पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि

नई दिल्ली । केन्द्रीय संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने संत स्वामी विवेकानंद की 116 पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर ट्वीट कर कहा कि भारतीय संस्कृति के परचम को विश्व पटल पर लहराने वाले, विलक्षण प्रतिभा के धनी, प्रखर विचारक, ओजस्वी वक्ता, हमारे प्रेरणाश्रोत स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि | उल्लेखनीय है कि 1863 को कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्र था। विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुंचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत 'मेरे अमेरिकी भाइयो एवं बहनों' के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं| इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया, सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है| उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विवेकानंद ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्वभर में है। जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा- 'एक और विवेकानन्द चाहिए, यह समझने के लिए कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।' उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो से तीन घंटे ध्यान किया और ध्यानावस्था में महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।






Updated : 4 July 2018 2:55 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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