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डीयू में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' पर प्रतिबंध का कोई इरादा नहीं
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नई दिल्ली। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शनिवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में आवश्यक सेवा संरक्षण अधिनियम (एस्मा) लागू करने संबंधी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ स्पीच) पर प्रतिबंध का कोई इरादा नहीं है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमने न तो कोई प्रतिबंध लगाया है और न ही जवाहरलाल नेहरू (जेएनयू), दिल्ली विश्वविद्यालय या किसी अन्य विश्वविद्यालय में ऐसा कोई प्रतिबंध लगाने की योजना है।
मानव संसाधन सचिव आर सुब्रमण्यम ने कहा दिल्ली विश्वविद्यालय को एस्मा के तहत लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) की हड़ताल के दौरान कुछ प्रभावित छात्रों ने परीक्षा सेवाओं में हड़ताल को प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया था। हमने इसकी जांच की और उक्त सुझाव पर आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (फेडकुटा) के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्र ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार विश्वविद्यालय में विचार विमर्श और बहस की संस्कृति को समाप्त करने और शिक्षकों की आवाज को दबाने के लिए एस्मा कानून थोपने जा रही है। उन्होंने दावा किया था कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस संबंध में 4 अक्टूबर को एक कार्यदल गठित किया है। उसे 3 नवम्बर को अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।
उन्होंने कहा था कि एस्मा लागू होने से शिक्षण, परीक्षा और मूल्यांकन इसके अंतर्गत आ जाएगा। इससे कक्षा में शिक्षण कार्य भी प्रभावित होगा, शिक्षक खुल कर सरकार की गलत नीतियों पर जानकारी छात्रों के नहीं दे सकेंगे। शिक्षकों को डीयू प्रशासन और सरकार के खिलाफ बोलने अथवा विरोध प्रदर्शन तक का अधिकार नहीं होगा। ऐसे करने पर शिक्षक को बिना वारंट के गिरफ्तार करने और एक साल की सजा के साथ अर्थदंड लगाने का भी प्रावधान है।
हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया था कि विश्वविद्यालयों में केंद्रीय कर्मचारियों की सेवा नियमों को लागू नहीं किया जा रहा है बल्कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपने सर्कुलर के माध्यम से विश्वविद्यालयों को अपना आर्डिनेंस बनाने के लिए कहा है।