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1984 के दोषियों को सजा के बाद दंगों की जांच में नया मोड़

एसआईटी जांच में गवाही बढ़ा सकती है कई कांग्रेसी नेताओं की मुश्किलें

1984 के दोषियों को सजा के बाद दंगों की जांच में नया मोड़
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नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। पटियाला कोर्ट ने 84 के दंगों के दो दोषियों को सजा सुनाकर जांच प्रक्रिया को नया मोड़ दे दिया है। मंगलवार को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जांच प्रक्रिया में कांग्रेस की जवाबदेही पर सवाल उठाए तो प्रतिक्रिया सिख समुदाय में भी तल्ख होकर उभरी है। बुधवार को दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ;डीएसजीपीसीद्ध ने प्रसाद के बयान का खुलकर समर्थन किया। सिख समुदाय में दिल्ली से लेकर अमृतसर तक इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि जांच प्रक्रिया आगे बढ़े और एसआईटी को हर संभव मदद दिलवाई जाए। सिख समुदाय इसके लिए गवाही प्रक्रिया को धार देने में जुट गया है। डीएसजीपीसी के सलाहकार कुलमोहन सिंह ने कहा है कि गवाही ठीक तरह से हो जाए तो दंगों के बड़े दोषी भी बच नहीं पाएंगे। इशारा कांग्रेस नेता सज्जन कुमार से लेकर जगदीश टाइटलर और मौजूदा मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की ओर है। बताते हैं रकाबगंज में तब कमलनाथ ने भीड़ को उकसाया था। दो दाषियों को सजा के बाद उक्त तीन नेता सिख समुदाय के निशाने पर आ गए हैं। सिख समुदाय को न्याय से कम कोई कीमत मंजूर नहीं। कुलमोहन सिंह ने कहा, ''हमें मदद नहीं बल्कि न्याय चाहिए''। माना जा रहा है कि एसआईटी के लपेटे में कमलनाथ की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

मंगलवार को प्रसाद का इशारा ही काफी था, उन्होंने कमलनाथ का नाम लेते कहा कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। प्रसाद ने इशारों ही इशारों में पूछा आखिर क्या कारण था कि पंजाब का प्रभार मिलते ही नाथ बैकफुट पर आ गए थे। इस पर कुलमोहन सिंह की दलील है कि तब कमलनाथ रकाबगंज से भीड़ को उकसा रहे थे। 84 के दंगों के साक्ष्य और सबूत जुटाना बाकई कठिन कार्य है क्योंकि चश्मदीद गवाह अब उम्रदराज हो गए हैं। कोई 80 के पार है तो कोई 90 के। उन्हें समाज के न्याय के लिए प्रेरणा दी जा रही है। इन सबके बीच एक बात साफतौर पर निकलकर आ रही है कि गवाहों को ढूढू़-ढूंढ़कर एसआईटी के पास गवाही के लिए लाया जाता है तो कमलनाथ सहित सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालांकि एक अन्य कांग्रेसी नेता एचकेएल भगत की भी कथित भूमिका बताई जाती है लेकिन उनकी मृत्यु के बाद वे अब अतीत बन गए हैं। जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार को तो चुनाव के लिए टिकटें तक दे दी गई थीं लेकिन विरोध के स्वर मुख हुए तो टिकट काटनी पड़ी थी।

कुलमोहन सिंह कहते हैं कांग्रेस ने पांच-पांच बार जांच प्रक्रिया को टलवाया। कांग्रेसी नेताओं ने गवाहों को डरवाया-धमकाया गया। आयोग बदले। सरकारें बदली तो नए सिरे से जांच आयोग बिठाए गए पर परिणाम सालों के बाद भी अधर में लटके रहे। अब एसआईटी ने उम्मीदें दिखाई हैं। सिख समुदाय के प्रतिनिधि और भाजपा सचिव आरपी सिंह ने भी इस मामले में सक्रियता बढ़ाई है।

गौरतलब है कि 13 जून 2016 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने कमलनाथ को पंजाब और हरियाणा का प्रभारी नियुक्त किया तो कमलनाथ ने अपने बढ़े हुए कदमों को वापस खींच लिया था। तब 84 के दंगों में उभरे विवाद के चलते उन्होंने देर रात पंजाब के प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने सोनिया गांधी को पत्र में लिखा, '' मैं आग्रह करता हूं कि मुझे पंजाब में मेरे पद से मुक्त किया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो कि पंजाब से असल मुद्दों से ध्यान नहीं भटके''। तब सोनिया गांधी ने उनका इस्ताफा मंजूर कर लिया और वे हरियाणा के प्रभारी बने रहे। हालांकि भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा लगातार उन पर निशाना साधते रहे कि कमलनाथ के इस्तीफे से यह साबित होता है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेसी नेताओं का हाथ रहा था, तभी तो कमलनाथ को मौके की नजाकत को देखते हुए इस्तीफा देना पड़ा था।

मदद नहीं इंसाफ चाहिए: कुलमोहन सिंह

कांग्रेस ने न्याय प्रक्रिया में पांच बार बाधा डाली। जांच समितियां बदली। सिख समुदाय को 35 साल तक गुमराह किया। अब जब एसआईटी ने दोषियों को सजा सुनाई तो कांग्रेस अपनी करनी पर आंख चुरा रही है। हमारा मानना है कि गवाही ठीक से हो तो कई कांग्रेसी नेता जेल की सलाखों के पीछे होंगे। सिख समुदाय मदद नहीं इंसाफ चाहता है।

Updated : 30 Nov 2018 3:00 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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