Home > देश > सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित अपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए 11 स्पेशल कोर्ट नाकाफी

सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित अपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए 11 स्पेशल कोर्ट नाकाफी

सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित अपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए 11 स्पेशल कोर्ट नाकाफी
X

नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित अपराधिक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 11 स्पेशल कोर्ट सभी केसों की सुनवाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आप बताएं कि क्या आप और स्पेशल कोर्ट का गठन कर सकते हैं ।

पिछले 12 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और संबंधित हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से पूछा था कि उनके यहां सांसदों और विधायकों के खिलाफ कितने आपराधिक मुकदमे लंबित है? क्या इन सभी मुकदमों को सुप्रीम कोर्ट के दिये पुराने फैसले के मुताबिक स्पेशल कोर्ट को ट्रांसफर किया जा चुका है ।

केंद्र ने कोर्ट को बताया था कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन को लेकर राज्यों का रवैया काफी लचर है । केंद्र ने कहा कि सिर्फ 11 राज्यों से जानकारी मिली है। आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल जैसे 10 राज्यों में एक-एक और दिल्ली में दो विशेष कोर्ट है । पिछले 30 अगस्त को केंद्र सरकार के अधूरे जवाब पर सुप्रीम कोर्ट ने असंतोष जताया था। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार की तैयारी अधूरी है। 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि जनप्रतिनिधियों के मुकदमों के निपटारे के लिए कितने स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट बने हैं? कोर्ट ने पूछा कि सांसदों औऱ विधायकों के खिलाफ कितने केस लंबित हैं ?

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि अगर लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो सुप्रीम कोर्ट को आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा था कि जो उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले होते हैं, उनके जीतने की उम्मीद बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों से ज्यादा होती है। उन्होंने कहा था कि कोर्ट संसद को परमादेश नहीं दे सकता है तो वो निर्वाचन आयोग को परमादेश जारी करे। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा था कि चुनाव लड़ने की चाहत रखने वाले आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की तस्वीर या होर्डिंग उसी तरह लगवा देनी चाहिए जैसे सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी जारी की जाती है। नौ अगस्त को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि कानून बनाना संसद का काम है। कोर्ट के आदेश से कानून को नहीं बदला जा सकता है जबकि याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राजनीतिक दल अपराधियों को बाहर करने पर गंभीर नहीं हैं।


Updated : 10 Oct 2018 9:42 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top