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स्वदेश विशेष
नर्मदा संरक्षण हेतु विश्वविद्यालयों की भूमिका
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नर्मदा संरक्षण हेतु विश्वविद्यालयों की भूमिका

Swadesh News
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13 Sept 2025 2:27 PM IST

प्रो राकेश सिंघई

भारत के विविध परिदृश्य इसकी शानदार नदी प्रणालियों द्वारा परिभाषित होते हैं, जो हिमालय से लेकर पश्चिमी और पूर्वी घाटों तक से निकलती हैं। ये नदियाँ देश की जीवनरेखा हैं, जो इसके विशाल मैदानों को पोषित करती हैं, इसके पारिस्थितिकी तंत्रों का पालन-पोषण करती हैं और इसके लोगों को सहारा देती हैं। ये इसके भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्यों के अभिन्न अंग हैं। ये नदी प्रणालियाँ न केवल देश की स्थलाकृति को आकार देती हैं बल्कि इसकी कृषि को भी बनाए रखती हैं, पीने का पानी प्रदान करती हैं, परिवहन को सक्षम बनाती हैं और जलविद्युत उत्पादन का समर्थन करती हैं।

नर्मदा नदीभारत की पाँचवीं सबसे लंबी और पश्चिम की ओर बहने वाली सबसे लंबी नदी है। यह मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी नदी भी है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों से होकर गुजरती है और इन राज्यों में इसके महत्वपूर्ण योगदान के कारण इसे अक्सर "मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवनरेखा" कहा जाता है। नर्मदा सिंचाई, पीने और जलविद्युत के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और इसका अत्यधिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है। हिंदू पौराणिक कथाओं में इसे एक देवी के रूप में पूजा जाता है, जिसके तटों पर कई मंदिर और तीर्थस्थल हैं और मकर संक्रांति जैसे त्योहार इसके पवित्र सार का जश्न मनाते हैं।

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में अमरकंटक पठार से निकलकर, नर्मदा उत्तर और दक्षिण भारत के बीच पारंपरिक सीमा बनाती है। यह पश्चिम की ओर 1,312 किमी तक बहती है, इससे पहले कि यह गुजरात के भरूच शहर से 30 किमी पश्चिम में स्थित खंभात की खाड़ी के माध्यम से अरब सागर में मिल जाती है। नर्मदा बेसिन 21° 40' 12'' से 23° 41' 24'' N अक्षांशों और 72° 48' 36'' से 81° 45' 36'' E देशांतरों तक फैला हुआ है, जो कुल 95,959.70 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करता है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र (3,297,427.32 वर्ग किमी) का लगभग 3% है।

नर्मदा बेसिन का एक लम्बा आकार है जिसकी अधिकतम लंबाई पूर्व से पश्चिम तक 915.65 किमी और उत्तर से दक्षिण तक 236 किमी है। नदी बेसिन का ऊपरी भाग मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों से बना है, जबकि मध्य और निचले हिस्से उपजाऊ और चौड़े हैं, जो उन्हें खेती के लिए उपयुक्त बनाते हैं। बेसिन की वार्षिक जल क्षमता 45.65 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) है, जिसमें 34.50 BCM (75.57%) की उपयोग योग्य जल क्षमता है।

नर्मदा नदी के पूरे विस्तार को मुख्य रूप से उनकी भू-आकृति विज्ञान, पारिस्थितिकी और द्रविकी के आधार पर तीन उप-बेसिनों में विभाजित किया जा सकता है। प्रत्येक उप-बेसिन में मुद्दों को भी अलग-अलग संबोधित किया जाना चाहिए।

• ऊपरी नर्मदा उप-बेसिन: ≈720 किमी अमरकंटक से होशंगाबाद तक

• मध्य नर्मदा उप-बेसिन: ≈485 किमी होशंगाबाद से नवागाम तक

• निचली नर्मदा उप-बेसिन: ≈145 किमी नवागाम से खंभात की खाड़ी तक

नर्मदा नदी के जल निकासी नेटवर्क में 19 प्रमुख सहायक नदियाँ (कुल 41 सहायक नदियाँ) शामिल हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, बेसिन की कुल जनसंख्या 61,243,103 है, जिसमें 32,396,859 पुरुष (52.89%) और 30,264,244 महिलाएँ (47.11%) हैं।

नर्मदा एक दरार घाटी से होकर बहती है, जो उत्तर में विंध्य, पूर्व में मैकाल श्रेणी, दक्षिण में सतपुड़ा और पश्चिम में अरब सागर से घिरी हुई है। यह दक्कन के पठार के उत्तरी छोर पर स्थित है और मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों के प्रमुख हिस्सों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के छोटे हिस्सों को भी कवर करती है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश (1,077 किमी), महाराष्ट्र (74 किमी) से होकर गुजरती है, जिसमें मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र (39 किमी) के बीच की सीमा के साथ-साथ महाराष्ट्र और गुजरात (74 किमी) के बीच की सीमा और अंत में गुजरात (161 किमी) शामिल है। बेसिन की मुख्य विशेषताओं को तालिका 1 में सूचीबद्ध किया गया है। बेसिन 40 जिलों में फैला हुआ है, जिसमें मध्य प्रदेश के 27 जिले, गुजरात के सात जिले, छत्तीसगढ़ के चार जिले और महाराष्ट्र के दो जिले शामिल हैं।

बेसिन-पैमाने की विशेषताएँ

नर्मदा बेसिन की जनसांख्यिकीनर्मदा नदी बेसिन चार भारतीय राज्यों: छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश तक फैला हुआ है, जिनमें से प्रत्येक में विविध जनसांख्यिकीय पैटर्न हैं। इन जिलों में क्षेत्र, जनसंख्या, विकास दर और जनसंख्या घनत्व में महत्वपूर्ण भिन्नताएं हैं। छत्तीसगढ़ में, राजनंदगांव जिला, जो केवल 86.61 वर्ग किमी को कवर करता है, 17.79% की मध्यम विकास दर के साथ 1.5 मिलियन से अधिक की पर्याप्त आबादी का समर्थन करता है, जो एक घनी जनसांख्यिकीय फैलाव का संकेत देता है। 627.25 वर्ग किमी के साथ कबीरधाम, 40.71% की महत्वपूर्ण जनसंख्या वृद्धि दिखाता है, जो तेजी से विकास और बढ़ते जनसंख्या घनत्व को दर्शाता है।मध्य प्रदेश विविध जनसांख्यिकीय विशेषताओं को दर्शाता है। हरदा जिला, 32.88% की जनसंख्या वृद्धि दर और 833.15 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी के घनत्व के साथ, तेजी से शहरीकरण और संसाधनों पर संभावित तनाव पर जोर देता है। इसके विपरीत, मंडला जिला, 4,628.55 वर्ग किमी के बड़े क्षेत्र और 156.86 के कम जनसंख्या घनत्व के साथ, कम जनसांख्यिकीय दबाव का संकेत देता है। होशंगाबाद और पूर्वी निमाड़ जैसे जिले लगभग पूरी तरह से बेसिन के भीतर हैं, जो उनके भौगोलिक महत्व और बेसिन संसाधनों पर निर्भरता को रेखांकित करते हैं। नर्मदा नदी बेसिन के भीतर जनसांख्यिकीय गतिशीलता से पता चलता है कि उच्च जनसंख्या घनत्व और विकास दर वाले क्षेत्र, विशेष रूप से महाराष्ट्र के नंदुरबार और गुजरात के नर्मदा जिले में, जल संसाधनों, कृषि भूमि और शहरी बुनियादी ढांचे पर महत्वपूर्ण तनाव का अनुभव कर सकते हैं। जनसंख्या घनत्व में यह भिन्नता बेसिन भर में पर्यावरणीय प्रभाव और संसाधन प्रबंधन चुनौतियों के अलग-अलग स्तरों को दर्शाती है। नतीजतन, इन प्रभावों को प्रबंधित करने और बेसिन की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सतत विकास और संरक्षण प्रयासों के लिए अनुरूप रणनीतियाँ महत्वपूर्ण हैं।इस प्रकार, नर्मदा नदी बेसिन का यह जनसांख्यिकीय विश्लेषण विभिन्न जिलों में नदी पर निर्भरता की अलग-अलग डिग्री, शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त जनसंख्या वृद्धि और महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर प्रकाश डालता है। ये अंतर्दृष्टि नर्मदा बेसिन के सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी योजना और लक्षित संरक्षण प्रयासों को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

नर्मदा नदी संरक्षण एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है, और नर्मदा किनारे स्थित विश्वविद्यालय इसमें अकादमिक, सामाजिक एवं नीतिगत योगदान देकर प्रभावकारी पहल कर सकते हैं। इस हेतु केन्द्रीय एवं प्रदेश स्तर की सरकारों को सतत रूप से धन राशि एवं अन्य सुविधाओं का प्रबंध करना चाहिए।

नर्मदा संरक्षण के प्रमुख बिंदु

1. प्रदूषण नियंत्रण – औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज व प्लास्टिक कचरे को नदी में डालने पर सख्त रोक।

2. वृक्षारोपण और हरित पट्टी – नदी तटों पर वृक्षारोपण एवं जैव विविधता संरक्षण।

3. जल संरक्षण तकनीकें – वर्षा जल संचयन, छोटे जलाशयों का निर्माण, जल पुनर्भरण।

4. सतत कृषि पद्धति – रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खेती को बढ़ावा।

5. जनजागरूकता – स्थानीय समाज, युवाओं और छात्रों को नदी की स्वच्छता और संरक्षण में भागीदार बनाना।

6. धार्मिक गतिविधियों का प्रबंधन – पूजा सामग्री व मूर्ति विसर्जन के लिए वैकल्पिक और पर्यावरण-मित्र व्यवस्था।

7. वैज्ञानिक शोध – नदी के जल, जैव विविधता और पारिस्थितिकी पर नियमित अध्ययन और निगरानी।

नर्मदा संरक्षण कार्ययोजना

यहाँ एक सुव्यवस्थित “नर्मदा संरक्षण कार्ययोजना” का प्रारूप प्रस्तुत है, जिसे नर्मदा किनारे स्थित कोई भी विश्वविद्यालय अपना सकता है। इसमें लघु अवधि, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक लक्ष्य भी शामिल किए गए हैं।

इस दृष्टि के साथ की नर्मदा नदी को स्वच्छ, अविरल और जीवनदायिनी बनाए रखना है तथा उसके पारिस्थितिकी, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को भी संरक्षित करना है, नर्मदा के किनारे स्थित विश्वविद्यालयों को एक सामूहिक पहल करना चाहिए।

शासन एवं विश्वविद्यालयों का उद्देश्य यह बन जाना चाहिए की एक कार्ययोजना बनाई जाए जिससे नर्मदा नदी में प्रदूषण को कम करना और उसकी जल गुणवत्ता को बेहतर बनाया जाए। इसके साथ ही नदी तटों पर हरित पट्टी और जैव विविधता का संरक्षण सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। योजना का एक बड़ा लक्ष्य स्थानीय समुदाय और छात्रों को इस संरक्षण आंदोलन से जोड़ना होना चाहिए, ताकि यह केवल संस्थागत पहल न रहकर एक व्यापक सामाजिक अभियान बने। विश्वविद्यालय वैज्ञानिक शोध और तकनीकी नवाचार के माध्यम से सतत और व्यावहारिक समाधान विकसित करें, जिन्हें स्थानीय स्तर पर लागू किया जा सके। साथ ही, नर्मदा से जुड़े सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को संरक्षण आंदोलन का आधार बनाया जाए, ताकि भावनात्मक जुड़ाव के माध्यम से लोगों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।

रणनीतिक पहलें

नर्मदा संरक्षण हेतु विश्वविद्यालय कई रणनीतिक पहलों को अपना सकते हैं। सबसे पहले, विश्वविद्यालय में “नर्मदा रिसर्च एंड स्टडी सेंटर” की स्थापना की जाना चाहिए, जहाँ बहु-विषयी शोध, डाटा संग्रह और नीति सुझाव तैयार किए जाएँगे। इस केंद्र के अंतर्गत छात्रों और शोधार्थियों के लिए नर्मदा फेलोशिप प्रोग्राम भी प्रारंभ हो, ताकि युवा पीढ़ी संरक्षण से सीधे जुड़ सके।

दूसरी बड़ी पहल अंतरविषयी परियोजनाओं की होना चाहिए। इसमें पर्यावरण विज्ञान, जीवविज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, कानून, प्रबंधन और पत्रकारिता विभाग मिलकर एक साझा मंच पर कार्य करें। यह मंच जल गुणवत्ता, तटवर्ती आजीविका, सामाजिक व्यवहार और विधिक प्रावधानों पर व्यापक अध्ययन करेगा।

तीसरी पहल छात्र स्वयंसेवकों की होगी। एनएसएस, एनसीसी और इको-क्लब को मिलाकर “नर्मदा यूथ ब्रिगेड” का गठन किया जाए। यह ब्रिगेड नियमित रूप से नदी सफाई अभियान, वृक्षारोपण, स्वच्छ नर्मदा सप्ताह और जन-जागरूकता रैलियों का आयोजन करे। छात्रों को विशेष प्रशिक्षण देकर उन्हें “नर्मदा एंबेसडर” बनाया जाए, ताकि वे अपने-अपने समुदायों में संरक्षण के संदेश को फैला सकें।

चौथी पहल तकनीकी समाधान की होगी। इंजीनियरिंग और विज्ञान विभाग मिलकर अपशिष्ट जल शोधन मॉडल, बायोफिल्टर यूनिट और जल पुनर्भरण संरचनाएँ विकसित करें। साथ ही आईओटीऔर जीआईएसआधारित रियल-टाइम वॉटर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम भी तैयार किया जाए। इन समाधानों को स्थानीय निकायों के लिए पायलट प्रोजेक्ट्स के रूप में लागू किया जाए, जिसके लिए समुचित धनराशि एवं स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक सहयोग का शासन स्तर पर संकल्प हो।

पाँचवीं पहल समुदाय सहभागिता पर केंद्रित होगी। विश्वविद्यालय आसपास के गाँवों और नगरपालिकाओं के साथ साझेदारी कर सफाई और वृक्षारोपण अभियान चलाए। किसानों के लिए जैविक खेती और जल संरक्षण पर प्रशिक्षण शिविर आयोजित हों। महिला समूहों और युवा क्लबों को जोड़कर “नर्मदा मित्र मंडल” का गठन किया जाए, ताकि संरक्षण आंदोलन का सामाजिक आधार मजबूत हो।

छठी पहल शोध, प्रकाशन और सम्मेलन की हो। प्रतिवर्ष विश्वविद्यालय “नर्मदा संरक्षण राष्ट्रीय सम्मेलन” का आयोजन करे, जिसमें वैज्ञानिक, समाजसेवी, नीति निर्माता और छात्र मिलकर विचार-विमर्श करें। साथ ही एक वार्षिक शोध पत्रिका या रिपोर्ट प्रकाशित हो, जिसे सरकार को साक्ष्य-आधारित नीति सुझाव देने के लिए उपयोग किया जाए।

सातवीं पहल सांस्कृतिक और आस्था से जुड़ी होगी। विश्वविद्यालय “नर्मदा महोत्सव” का आयोजन करे, जिसमें साहित्य, लोककला, संगीत और नाट्य प्रस्तुतियाँ हों। मूर्ति विसर्जन के लिए पर्यावरण-मित्र विकल्पों का प्रचार किया जाए। इन सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों का भावनात्मक जुड़ाव संरक्षण में परिवर्तित होगा।

कार्यान्वयन रूपरेखा

इस कार्ययोजना को तीन चरणों में लागू किया जा सकता है।

लघु अवधि में नर्मदा अध्ययन केंद्र की स्थापना की जाए। छात्रों के लिए नर्मदा एंबेसडर और यूथ ब्रिगेड का गठन हो। नदी सफाई अभियान और वृक्षारोपण कार्यक्रम आरंभ किए जाएँ। इसके साथ ही प्राथमिक शोध कार्य किए जाएँ, जिनमें जल गुणवत्ता और प्रदूषण स्रोतों का सर्वे शामिल होगा।मध्यम अवधि (3–5 वर्ष) में तकनीकी समाधानों को आगे बढ़ाया जाए। आईओटी आधारित जल निगरानी प्रणाली विकसित हो और किसानों के प्रोत्साहन के लिए प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया जाए। समुदाय सहभागिता से “नर्मदा मित्र मंडल” का गठन हो, और वार्षिक सम्मेलन व शोध पत्रिका का प्रकाशन नियमित रूप से शुरू किया जाए।दीर्घकालिक (5 वर्ष से अधिक) अवधि में सतत प्रदूषण नियंत्रण मॉडल का कार्यान्वयन होना चाहिए, जिससे नर्मदा तटों पर हरित पट्टी का व्यापक विस्तार किया जाएगा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से नीतिगत अनुसंधान होतें रहें। अंततः नर्मदा संरक्षण को विश्वविद्यालय की पहचान और फ्लैगशिप प्रोग्राम के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए।

अपेक्षित परिणाम

इस कार्ययोजना के सफल क्रियान्वयन से नर्मदा के जल की गुणवत्ता में सुधार होगा। तटवर्ती क्षेत्रों में हरियाली और जैव विविधता का संरक्षण होगा। स्थानीय समुदाय और युवाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित होगी। टिकाऊ कृषि और जल प्रबंधन पद्धतियों का प्रसार होगा। सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह होगा कि विश्वविद्यालय राष्ट्रीय स्तर पर नर्मदा संरक्षण के एक मॉडल संस्थान के रूप में पहचाना जाएगा।

( लेखक : प्रो राकेश सिंघई, कुलगुरु, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर )

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