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हरदोई गजेटियर में उल्लेख…
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कासगंज के सोरों में जन्मी थीं 'होलिका', हरदोई में 'दहन': हरदोई गजेटियर में उल्लेख…

Swadesh Editor
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13 March 2025 9:11 PM IST

हरदोई: राजस्थान के लोकदेवता राजा इलोजी से होलिका करती थी अटूट प्रेम, फाल्गुन की पूर्णिमा को होना था पाणिग्रहण, हिरण्यकशिपु के अंहकार ने दहन कराया l

ब्रजेश 'कबीर', हरदोई। होलिका कश्यप ऋषि और दिति की पुत्री और हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष की बहन थी। हिरण्याक्ष का वध विष्णु ने वराह स्वरूप धारण कर कासगंज जनपद के सोरों (सूकर क्षेत्र) में किया था। पौराणिक संकेतों और अनुश्रुतियों अनुसार, होलिका का जन्म हिरण्याक्ष के सोरों पर राज्य के समय हुआ था। वराह अवतरण के बाद हिरण्याक्ष से सोरों और आसपास का भूभाग वराह के नेतृत्व में देवताओं ने छीन लिया। भाई हिरण्यकशिपु हरदोई (तात्कालिक अनुश्रुत नाम हरिद्रोही) को राजधानी बना राज्य करने लगा।

‘कन्नौज का इतिहास’ के लेखक इतिहासकार आनन्द स्वरूप मिश्र के अनुसार, हरदोई के प्रहलाद चौरा घाट, उसके पुत्र विरोचन के नाम पर बसा गांव विरेचमऊ तथा हरदोई गजेटियर में उल्लेख है, इसे राजा हरनाकुश (हिरण्यकशिपु) ने बसाया, से इसकी पुष्टि होती है। हालांकि अनुश्रुतियों में नरसिंह अवतार और हिरण्यकशिपु का वधस्थल झांसी के समीप का ही एक खेड़ा भी माना जाता है। इस कथा का स्यालकोट के समीप होना भी मानते हैं। किन्तु हिरण्याक्ष के सोरों पर शासन के विषय में एकमत हैं।

आनन्द स्वरूप मिश्र के उलट कासगंज के इतिहासकार अमित तिवारी होलिका का जन्म ही नहीं, दाह भी सोरों नगर में मानते हैं। इनके अनुसार विष्णुपुराण और पद्मपुराण के अनुसार, लाखों वर्ष पूर्व सतयुग में मैया होलिका का जन्म सोरों में ही हुआ था। महर्षि कश्यप और उनकी दूसरी पत्नी दिति की तीन संतान में पुत्र हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष व पुत्री होलिका का सन्दर्भ मिलता है। होलिका को ब्रह्मा से अग्नि में न जलने का वरदान था। इसी कारण होलिका प्रतिदिन अग्निस्नान करती थी।

वाराह अवतार ले विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध किया, हिरण्यकशिपु उनका सबसे बड़ा शत्रु बन गया। उसने राज्य में विष्णु आराधना प्रतिबंधित कर दी। किंतु, हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद विष्णु का अखंड भक्त हो गया। यह जान हिरण्यकशिपु की क्रोधाग्नि भड़क गई। उसने बहन होलिका को आदेश दिया, वह प्रहलाद को गोद में बैठा, अग्नि में बैठ जाय। भाई के आदेश से विवश होलिका भतीजे प्रह्लाद को गोद में ले प्रज्ज्वलित अग्नि में बैठ गयी। कहते हैं, होलिका की चूनर प्रहलाद पर आ गई और होलिका भस्म हो गई। हालांकि, इस कथा और होलिका के अंतस का दूसरा पक्ष भी है, जिससे कम ही वाकिफ होंगे।

होना था जिस वेदी पर बहन का प्रेम विवाह, भाई ने उसी अग्निकुंड में बैठने को किया विवश

पौराणिक कथाओं पर गौर करें तो निकल कर आएगा, अग्नि की उपासक होलिका खलनायिका नहीं थी। उसे हिरण्यकश्य ने विवश किया था प्रह्लाद को लेकर प्रचंड अग्नि में बैठने को। धमकी दी थी, उसी दिन (फाल्गुन की पूर्णिमा) होने वाले होलिका का प्रेम विवाह को नहीं होने देगा। होलिका का राजस्थान के लोकदेव (कामदेव के स्वरुप) राजा इलोजी से प्रेम विवाह होना था।

फाल्गुन की पूर्णिमा को होलिका की बारात आनी थी। हिरण्यकशिपु को इस विवाह पर आपत्ति थी और पुत्र प्रह्लाद से अत्यधिक खिन्न था। बारात आने से ठीक पहले हिरण्यकशिपु ने होलिका से कहा, प्रहलाद को लेकर उसके विवाह के अग्निकुण्ड में बैठ जाये, अन्यथा उसका विवाह नहीं होने देगा।

होलिका को भतीजे प्रहलाद से अत्यधिक स्नेह था। साथ ही राजस्थान के लोकदेवता राजा इलोजी से भी अत्यधिक प्रेम था। होलिका दोनों में किसी को खोना नहीं चाहती थी। इसलिए होलिका ने स्वयं की इहलीला समाप्त करने का निर्णय लिया। बुआ ने अग्निकुण्ड में प्रहलाद को अपना अग्निरोधी कवच प्रदान कर दिया। इस कारण अग्नि की उपासक होलिका जल गयी और प्रहलाद सुरक्षित बच गया।

प्रेयसी वियोग में आजन्म कुंआरे रहे इलोजी आज भी जीवित, निकलती बारात, पूजती बांझ स्त्रियां

जिस समय होलिका का दाह हो रहा था, उसी समय इलोजी ने बारात के साथ सोरों में प्रवेश किया। विवाह के अग्निकुण्ड में भस्म प्रेयसी होलिका की राख देख इलोजी चीत्कार उठे और अपने वस्त्रों को फाड़ डाला। होलिका की अवशेष भस्म दोनों हाथों से शरीर पर मलने लगे। होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी का यह दुखांत था। प्रेयसी वियोग में विचलित निढाल इलोजी की बारात राजस्थान लौट गयी। होलिका के वियोग में आजीवन अविवाहित रहे इलोजी होलिका की भस्म शरीर पर लपेटे रहे। किवदंती आज भी राजस्थान के लोकदेवता इलोजी को जीवित मानती हैं। प्रतिवर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के समय राजस्थान के कुछ भूभाग में इलोजी की बारात निकलती है और बांझ स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए देवता इलोजी की पूजा करतीं हैं।

172वां होलिका दहन हुआ हरदोई सिटी में

हरदोई। जनपद में होलिका दहन उत्सव परंपरागत रूप में मनाया गया। सिटी में सबसे पुरानी (इस वर्ष 172वीं) दुलीचंद चौराहा की होलिका का सुबह से देर शाम तक मारवाड़ी महिलाओं ने पूजन अर्चन किया। विशेषकर नव विवाहिताओं में पहली होलिका पूजा विधि विधान से की और होलिका माता से जीवन साथी से अमर प्रेम का वर मांगा। रात 10:45 बजे मंत्रोच्चार के मध्य होलिका दहन हुआ। इस मौके पर भारी जनसमूह उपस्थित रहा और होलिका माता का गगनभेदी जयघोष किया।

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