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मध्यप्रदेश
Neelkantheshwar Mandir

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Neelkantheshwar Mandir: विदिशा का नीलकंठेश्वर मंदिर, राजा भोज के बेटे उदयादित्य से जुड़ा है इतिहास, आक्रांताओं ने भी किया था आक्रमण

Gurjeet Kaur
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30 March 2025 12:19 PM IST

मध्यप्रदेश। परमार राजाओं ने लंबे समय तक शासन किया। उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर हमें हमारी कला और संस्कृति की समृद्ध विरासत की याद दिलाते हैं। बदकिस्मती से विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के चलते अब कई मंदिर, शिलालेख पहली जैसी स्थिति में नहीं है लेकिन जो बचे हैं वे आज भी कला और संस्कृति के प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

ऐसी ही एक विरासत है विदिशा जिले में उदयपुर में। आज यह एक छोटा सा स्थान है लेकिन इतिहास में इसका बहुत अधिक महत्त्व था। उदयपुर नीलकंठेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण परमारा राजा उदयादित्य द्वारा करवाया गया था। वह महान राजा भोज (1010-1050 ई।) के पुत्र थे। उन्हीं के नाम पर इस क्षेत्र का उदयपुर। हुआ। इस मंदिर को उदयेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

मध्य भारत में सटीक रूप से दिनांकित मंदिरों को देखना मुश्किल है लेकिन उदयेश्वर मंदिर कुछ में से एक है, जिसकी सटीक तिथि है। मंदिर पर उत्कीर्ण दो शिलालेखों में 1059 से 1080 के बीच परमारा राजा उदयादित्य के दौरान मंदिर के निर्माण का रिकॉर्ड है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्विद्यालय के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी बताते हैं - '945 साल पहले, विदिशा जिले में उदयपुर का नीलकंठेश्वर मंदिर का निर्माण पूरा हुआ था। शिलालेख के अनुसार सन 1080 में 30 मार्च को इसका निर्माण पूरा हुआ। इसे बनने में 21 साल लगे थे। यह हमारे कला प्रिय और सृजनशील पूर्वजों की महान विरासत है।'

विशाल मंदिर का निर्माण :

परमार शासक भगवान शिव के उपासक थे। इसी के चलते राजा भोज के बेटे विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर अपने समय में भव्यता और विशालता का प्रतीक था। आंशिक रूप से यह मंदिर खजुराहो के मंदिर से मेल खाता है लेकिन इसकी अपनी विशेषताएं हैं।

मंदिर की खासियत :

मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है। यहां सूर्य की पहली किरण महादेव को स्पर्श करती है। मंदिर की दीवारों और शिखर पर भगवान विष्णु, देवी दुर्गा, भगवान गणेश समेत तमाम देवी - देवताओं की प्रतिमा उकेरी गई है। मंदिर के मुख्य द्वारा को गंगा और यमुना का देवी स्वरुप सुसज्जित करता है। मंदिर के शिखर के थोड़ा नीचे मानव स्वरुप की प्रतिमा है। इसे मंदिर का मुख्य शिल्पकार या राजा भोज के बेटे उदयादित्य की प्रतिमा माना जाता है।

मलिक काफूर ने किया था हमला:

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, इस मंदिर पर अलाउद्दीन खिलजी के सिपहसलार मलिक काफूर ने आक्रमण किया था। उसने मंदिर की प्रतिमाओं को तोड़कर इसे ध्वस्त करने का प्रयास किया था हालांकि वह ऐसा करने में सफल नहीं हो पाया। इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सन 1775 में तत्कालीन भेलसा के सूबा खांडेराव अप्पाजी द्वारा की गई थी। इसके बाद यह मंदिर ग्वालियर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत हो गया। आजादी के बाद यह ASI के संरक्षण में है।

मंदिर का रहस्य :

ऐतिहासिक होने के साथ - साथ यह मंदिर रहस्यमयी भी है। मान्यता है कि, यहां हर सुबह पट खोलने पर शिवलिंग पर एक फूल चढ़ा मिलता है। मंदिर में रात के समय प्रवेश वर्जित है। यह फूल कैसे मंदिर में आता है या इसे कौन चढ़ाता है यह एक राज है।

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