
छात्रवृत्ति नहीं मिलने पर अधिकारियों के चक्कर लगा रहे विद्यार्थी
|सत्र देर से शुरू होने से अटकी प्रदेशभर के पैरामेडिकल छात्रों की छात्रवृत्ति
प्रदेश के विभिन्न संस्थान जो पैरामेडिकल कोर्स संचालित करते हैं, उनके विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति पर संकट गहरा गया है। सत्र देरी से शुरू होने की वजह से ऑनलाइन पोर्टल पर छात्रवृत्ति की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो पा रही है। इस कारण विद्यार्थी परेशान हैं। जीवाजी विश्वविद्यालय के पैरामेडिकल संस्थान के विद्यार्थी इस समस्या को लेकर कुलसचिव प्रो. राकेश कुशवाह के पास भी पहुंचे थे। उन्होंने उच्च शिक्षा विभाग को पत्र भेजकर समस्या के समाधान का आश्वासन दिया था।
क्यों आई परेशानी
पैरामेडिकल काउंसिल द्वारा सत्रों की मान्यता देरी से जारी किए जाने की वजह से यह परेशानी पैदा हुई है। हुआ यूं कि पैरामेडिकल काउंसिल ने सत्र 2023-24 की मान्यता वर्ष 2025 में जारी की थी। इसी के अनुसार फरवरी तक प्रवेश चलते रहे। इसके बाद सत्र 2024-25 की मान्यता सितंबर में दी गई और प्रवेश भी उसी अवधि में हुए।
अब समस्या यह है कि छात्रवृत्ति वर्तमान सत्र के आधार पर दी जा रही है, जबकि ये विद्यार्थी पिछले सत्र के हैं। ऐसे में यदि विद्यार्थी छात्रवृत्ति फॉर्म में पुराना सत्र भरते हैं, तो प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं।विद्यार्थी इस असमंजस में फंस गए हैं और अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं। इनमें कुछ विद्यार्थी आर्थिक रूप से इतने कमजोर हैं कि वे छात्रवृत्ति की उम्मीद पर ही कोर्स करने आए थे। ऐसी स्थिति में ये विद्यार्थी कोर्स छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।
अभी तक सुधार नहीं, नए सत्र की मान्यता भी जारी नहीं
इस प्रक्रिया में अब तक कोई सुधार नहीं हुआ है। वर्तमान सत्र की मान्यता भी पैरामेडिकल काउंसिल ने जारी नहीं की है। ऐसे में इस सत्र के विद्यार्थियों के सामने भी यही परेशानी आने की आशंका है।
10 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों पर संकट
प्रक्रिया की इस गड़बड़ी की वजह से प्रदेश के लगभग 10 हजार विद्यार्थी संकट में हैं। जीवाजी विश्वविद्यालय में ही बीपीटी, बीएमएलटी और डीएमएलटी के इन दो सत्रों के 220 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। वे अपनी पढ़ाई छोड़कर छात्रवृत्ति के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाने पर मजबूर हैं।
इनका कहना है
“यह समस्या कोर्स समय पर संचालित न होने की वजह से आई है। पैरामेडिकल काउंसिल को अपने सत्र समय पर संचालित करने संबंधी आवश्यक कदम उठाने चाहिए।”
- प्रो. नवनीत गरुड़, समन्वयक, पैरामेडिकल संस्थान, जीवाजी विश्वविद्यालय