
SIR को लेकर तनाव में हैं मध्यप्रदेश के कई कलेक्टर
|मतदाता सूची के कार्य में लगे 3 बीएलओ की हो चुकी है मौत
भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर प्रदेश में चल रहे विशेष गहन परीक्षण (एसआईआर) को लेकर मप्र के कलेक्टर भी तनाव में हैं। स्थिति यह है कि कलेक्टरों ने अन्य बैठकों को छोड़कर एसआईआर के कार्य को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। संभवतः यह पहली बार है जब मप्र में कलेक्टर चुनाव आयोग के किसी कार्यक्रम को लेकर इतने चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
विधानसभा चुनाव में नहीं हुए इतने परेशान
इससे पहले लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में भी कलेक्टर कभी इतनी परेशानी महसूस नहीं करते थे। जिला निर्वाचन अधिकारियों के तनाव में होने की वजह से चुनाव कार्य में लगे बीएलओ और अन्य अधिकारी भी भारी दबाव में हैं। वहीं अलग-अलग जिलों में एसआईआर कार्य में लगे 3 बीएलओ की मौत की वजह भी एसआईआर का तनाव बताया जा रहा है।
दरअसल, विशेष गहन परीक्षण (एसआईआर) को लेकर भारत निर्वाचन आयोग नियमित समीक्षा कर रहा है। एसआईआर में पीछे रह गए जिलों के जिला निर्वाचन अधिकारियों को आयोग कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दे चुका है। आयोग ने यहां तक कहा है कि काम नहीं करने वाले जिलों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा करनी पड़ेगी। आयोग की यही फटकार जिला निर्वाचन अधिकारियों को परेशान कर रही है। यदि आयोग ने किसी भी जिला निर्वाचन अधिकारी पर नकारात्मक टिप्पणी कर दी, तो वह टिप्पणी संबंधित अधिकारी के करियर पर दाग के समान होगी, क्योंकि आयोग की यह टिप्पणी उनकी सीआर (वार्षिक गोपनीय आख्या) में दर्ज हो जाएगी।
अधीनस्थ अमले को दिया लक्ष्य
आयोग की फटकार के बाद जिला निर्वाचन अधिकारियों ने अधीनस्थ अमले को एसआईआर का लक्ष्य दे दिया है। एसआईआर की सबसे निचली कड़ी बीएलओ होता है, इसलिए पूरे जिले के अधिकारियों का पूरा दबाव बीएलओ पर है। भोपाल समेत कई जिलों के जिला अधिकारी देर रात तक ऑनलाइन बैठकें कर रहे हैं। यही वजह है कि बीएलओ भारी तनाव महसूस कर रहे हैं। इस संबंध में कई बीएलओ से उनके कार्य क्षेत्र में चर्चा की गई। शहरी क्षेत्र के बीएलओ मतदाताओं को ढूंढने में ही उलझे हुए हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे बीएलओ उतना तनाव महसूस नहीं कर रहे हैं, क्योंकि गांव में अधिकांश लोगों से उनकी पहले से पहचान होती है।
आम चुनावों में जिला निर्वाचन अधिकारी इसलिए बेफिक्र रहते हैं, क्योंकि आमतौर पर आयोग ऐसी कठोर कार्रवाई नहीं करता। चुनावों में राजनीतिक दलों की शिकायतों पर अधिकारियों को बदला जाता है, जो सामान्य प्रक्रिया होती है। लेकिन एसआईआर में आयोग बाकायदा किसी अधिकारी के खिलाफ ‘नाकाबिल’ होने की टिप्पणी दर्ज कर सकता है।
परिजनों ने एसआईआर से तनाव को बताया कारण
यह बेहद दुखद है कि मप्र में अब तक 3 बीएलओ की मौत हो चुकी है। परिजनों ने मौत की वजह एसआईआर का तनाव बताया है। रायसेन जिले के मंडीदीप में मतदाता सूची दुरुस्त कर रहे बीएलओ रमाकांत पांडे की हृदयाघात से मृत्यु हो गई। इसी तरह दमोह जिले के रंजरा गांव के शिक्षक व बीएलओ सीताराम गोंड की भी मौत हो चुकी है। दमोह में ही एक अन्य बीएलओ श्यामसुंदर शर्मा की ड्यूटी के दौरान सड़क हादसे में मृत्यु हो गई। वहीं भोपाल में बीएलओ नारायण सोनी कई दिनों से लापता हैं। छोला क्षेत्र की एक महिला बीएलओ से मारपीट की घटना भी सामने आई है। परिजनों ने सभी मामलों में मौत की वजह एसआईआर का तनाव बताया है। दमोह जिला निर्वाचन अधिकारी सुधीर कोचर इस संबंध में चर्चा के लिए तैयार नहीं हैं।