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नई दिल्ली
नेताओं के बयान खोल रहे पोल…
नई दिल्ली

बिखर चुका हैं इंडी गठबंधन!: नेताओं के बयान खोल रहे पोल…

Swadesh Digital
|
16 Jan 2025 12:51 PM IST

इंडिया गठबंधन अब बचा ही कहां है ये तो कभी का खत्म हो चुका... यह गठबंधन तो सिर्फ लोकसभा चुनावों के लिए था...यदि यह लोकसभा चुनावों तक ही सीमित था तो अब इसे भंग कर देना चाहिए...। ऐसे तमाम बयान पिछले दिनों उन नेताओं के आए हैं जो लोकसभा चुनाव के पहले बड़े जोर-शोर से बने इंडिया गठबंधन के सदस्य थे।

इन बयानों के बाद यह सवाल स्वत: ही सामने आ रहा है कि तो क्या इंडिया गठबंधन टूट चुका है या टूट की ओर अग्रसर है? परिस्थितियां तो अब यहीं बता रही हैं कि यह गठबंधन अब बचा नहीं है। दिल्ली की चुनावी जंग ने भी यह साफ कर दिया है कि गठबंधन में दरारें पड़ चुकी हैं।

आपको याद होगा कि एनडीए के मुकाबले कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों के मुखियाओं ने एकजुट होकर जब ये गठबंधन बनाया था तो लगा था कि अब मोदी की राह आसान नहीं होगी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गठबंधन को घमंडिया करार देते हुए कहा था कि यह नापाक गठबंधन है, जो केवल और केवल सत्ता हासिल करना चाहता है।

आज मोदी की यह बात अक्षरश: सच सबित होती जा रही है। लोकसभा चुनावों से पहले ही कांग्रेस की गोद में जा बैठी उद्धव ठाकरे की शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत के हालिया बयान कि अगर इंडिया गठबंधन को जिंदा नहीं रखोगे तो विपक्ष खत्म हो जाएगा ने गठबंधन में चल रही उथल-पुथल की चर्चाओं को तेज कर दिया है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी कह चुके हैं कि यदि यह गठबंधन लोकसभा चुनावों के लिए था तो इसे अब भंग कर देेना चाहिए।

वैसे भी दिल्ली के चुनावों में कोई भी दल गठबंधन धर्म का पालन तो कर ही नहीं रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी साफ कर चुके हैं कि वह कांग्रेस नहीं केजरीवाल की पार्टी का समर्थन करेंगे और खुद कांग्रेस भी गठबंधन सहयोगी आम आदमी पार्टी के खिलाफ दिल्ली चुनाव में ताल ठोक कर मैदान में आ डटी है।

कांग्रेस के बड़े नेता और सांसद राहुल गांधी भी अब केजरीवाल और उनकी पार्टी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। उधर केजरीवाल भी खुलकर कांग्रेस के विरोध में आ गए हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस-भाजपा मिले हुए हैं। ये तमाम घटनाक्रम इस बात की तरफ साफ इशारा करते हैं कि इंडिया गठबंधन में जितने भी दल जुड़े थे, वे दल-दल हो चुके हैं।

उनमें कभी कोई सामंजस्य था ही नहीं और न अब है। ये सारे दल और उनके नेता अंतरर्विरोधों से घिरे हुए थे। केवल सत्ता तक पहुंचने के उद्देश्य से वे एक हुए और सत्ता नहीं मिली तो अपनी औकात पर आ गए। यदि अंतरर्विरोध नहीं होता तो दिल्ली में गठबंधन चुनाव लड़ रहा होता।

हरियाणा में भी यही हुआ था, यहां केजरीवाल ने प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी की। यूपी में भी उप चुनावों में अखिलेश ने कांग्रेस कोई भाव नहीं दिया और दिल्ली में तो हम साफ-साफ देख रहे हैं कि ‘आप’ और कांग्रेस आमने-सामने हैं। इस सबके बाद अब यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि इंडी गठबंधन अब बिखर चुका है। गठबंधन का संयोजक कोई है नहीं, नेताओं के बीच आपसी संवाद भी नहीं, न ही कोई रणनीति है। आने वाले समय में आप देखेंगे कि गठबंधन में और बड़े पैमाने पर विवाद सामने आएंगे।

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