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नक्सलियों ने फिर भेजा शान्ति वार्ता का प्रस्ताव, सरकार पर अनुकूल माहौल बनाने का दबाव
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Naxal Peace Talk Proposal: नक्सलियों ने फिर भेजा शान्ति वार्ता का प्रस्ताव, सरकार पर अनुकूल माहौल बनाने का दबाव

Deeksha Mehra
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9 April 2025 9:50 PM IST

Chhattisgarh Naxal Peace Talk Proposal : रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में हिंसा को रोकने के लिए माओवादियों ने एक बार फिर शांति वार्ता का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) उत्तर-पश्चिम सब जोनल ब्यूरो की ओर से जारी बयान में संगठन ने शांति वार्ता के लिए तैयार होने की बात कही है, लेकिन इसके लिए अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी सरकार पर डाली है। इस बयान में बस्तर में हो रही हिंसा और हत्याकांड को तत्काल रोकने को प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य बताया गया है।

इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया छत्तीसगढ़ दौरे से ठीक पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) केंद्रीय समिति ने तेलुगु में शांति वार्ता का प्रस्ताव पेश किया था। अब उत्तर-पश्चिम सब जोनल ब्यूरो ने हिंदी में नया बयान जारी कर इस मुद्दे को आगे बढ़ाया है।

इस बयान में दावा किया गया है कि पहले के प्रस्ताव में अनुकूल माहौल बनाने की मांग को छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा ने ठुकरा दिया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार अपनी मौजूदा नीति- जिसमें आत्मसमर्पण को प्राथमिकता दी जा रही है- पर अडिग रहना चाहती है। माओवादियों ने आत्मसमर्पण नीति को समस्या के पूर्ण समाधान के रूप में पेश करने पर भी आपत्ति जताई है।

शांति वार्ता के लिए शर्तें

माओवादी नेतृत्व ने कहा कि शांति वार्ता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए कुछ वरिष्ठ साथियों से विचार-विमर्श और स्थानीय नेतृत्व की राय लेना जरूरी है। हालांकि, चल रहे 'कगार' अभियान के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा। संगठन का तर्क है कि वार्ता को सफल बनाने के लिए सरकार को अभियान रोकना होगा और अनुकूल माहौल बनाना होगा, जो उसकी जिम्मेदारी है।

इसके अलावा, माओवादियों ने विकास विरोधी होने के आरोपों को साजिश करार दिया और शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, कुपोषण जैसे जन सरोकारों के समाधान पर जोर दिया। कुछ गलतियों के लिए जनता से माफी मांगते हुए, उन्होंने जल-जंगल-जमीन से विस्थापन और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं का विरोध भी जताया।

माओवादियों ने देश के जनवादी प्रेमियों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनपक्षधर पत्रकारों और शांति वार्ता समिति के सदस्यों से अपील की है कि वे अनुकूल माहौल बनाने की मांग का समर्थन करें। संगठन ने बस्तर से नेतृत्व के दूसरे राज्यों में भागने की अफवाहों को भी खारिज किया, इसे मानसिक युद्ध का हिस्सा बताते हुए कहा कि यह सामान्य तबादला प्रक्रिया है।

उदाहरण के तौर पर, उन्होंने एसजेडसीसी सदस्य कामरेड रेणुका उर्फ चैते का हवाला दिया, जो अस्वस्थता के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटीं और जनता के लिए जान कुर्बान कर दी।

माओवादी कैडर के बीच सुरक्षा बलों के अभियानों से पैदा हुई आपाधापी को स्वीकार करते हुए, संगठन ने उत्तर-पश्चिम सब जोन के पार्टी कमेटियों, कमांडों और कमांडरों से शांति वार्ता के लिए गतिविधियां चलाने और सतर्कता बरतने की अपील की।

साथ ही, मीडिया और पुलिस अधिकारियों के उकसाने वाले बयानों से प्रभावित न होने की सलाह दी। अंत में माओवादियों ने सुरक्षाबल के जवानों से भी अपील की कि वे उन्हें दुश्मन नहीं मानें और शांति वार्ता के प्रयास का समर्थन करें, साथ ही गोलीबारी से बचें।

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