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राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विवि में उत्पादन का परीक्षण शुरु…
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जर्मन शुगर बीट से तैयार होगी शकर और एथिनॉल: राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विवि में उत्पादन का परीक्षण शुरु…

Swadesh Digital
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10 Jan 2025 5:46 PM IST

चंद्रवेश पांडे, ग्वालियर। देश में शकर और डीजल की बढ़ती खपत को देखते हुए उसके विकल्प तलाशे जा रहे हैं। जिसको लेकर सरकार लगातार काम कर रही है। इसी के चलते अब जर्मन की शुगर बीट ( हेडल और गस्टिया नाम की दो) फसलों पर देश में काम शुरु किया गया है।

जिनका उत्पादन कराकर देखा जा रहा है कि यह किस्में भारत की जलवायु को सपोर्ट करती है या नहीं। या यूं कहा जाए कि भारत की जलवायु में इनका उत्पादन बेहतर होगा अथवा नहीं। इसके लिए देश के अलग अलग कृषि विश्वविद्यालयों में इन किस्मों का उत्पादन करके देखा रहा है।

ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भी इन फसलों के उत्पादन को लेकर काम करना शुरु कर दिया है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में गन्ने के स्थान पर इन किस्मों की मदद से शकर और एथिनॉल तैयार किया जाएगा।

यह कंपनी करा रही परीक्षण -

केडब्ल्यूएस कंपनी एक प्लांट ब्रीडिंग कंपनी है जो मक्का, चुकंदर, अनाज, सब्जियां, रेपसीड और सूरजमुखी के लिए बीज का उत्पादन और बिक्री करती है। यह कंपनी दुनियाभर में बिक्री के आधार पर चौथे नंबर पर है। यह कंपनी एक परिवारिक स्वामित्व वाली कंपनी है इसका मुख्यालय जर्मनी के आइनबेक में है।

कंपनी का नाम क्लेन वान्जलेबेनर साटजुच्ट से लिया गया है जिसका मतलब क्लेन वान्जलेबेन से बीज प्रजनन है। यह कंपनी ही भारत में शुगर बीट की किस्मों की उत्पादन को लेकर परीक्षण करा रही है। यदि उत्पादन ठीक रहा तो आने वाले समय में यह किस्म किसानों को भी उपलब्ध कराई जाएगी।

यह होगा फायदा -

अभी देश में गन्ने की मदद से शकर तैयार की जाती है। गन्ने का उत्पादन प्रति हेक्टेयर तकरीबन 500 से 700 क्विंटल होता है। जबकि इसमें शुगर कंटेंट 7 से 10 फीसद पाए जाते हैं। जबकि जर्मनी से आए हेडल और गस्टिया नाम की किस्मों की पैदावार भी 500 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होने की संभावना है। लेकिन इसमें शुगर कंटेंट 15 से 16 फीसद पाया जाता है।

इस किस्म की मदद से एथिनॉल भी बनाया जा सकता है जो डीजल की खपत को कम करने में सहायक होगा। इसके अलावा इस किस्म का चारा जो बचता है वह जानवरों के भोजन के लिए उपयोग होगा क्योंकि इसके चारे में प्रोटीन और मिनरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।

इन स्थानों पर किया जा रहा उत्पादन :

गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, के अलावा ग्वालियर कृषि कालेज, इंदौर और मंदसौर में उत्पादन का काम किया जा रहा है। अलग अलग स्थानों पर तकरीबन डेढ़ -डेढ़ बीघा जमीन में इन किस्मों को बोया गया है।

इनका कहना है -

“जर्मन शुगर बीट का उत्पादन करके देखा जा रहा है । यदि सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले सालों में जर्मन शुगर बीट से शकर और एथिनॉल किसान तैयार करेंगे।” - डॉ संजय शर्मा, डायरेक्टर रिसर्च, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर

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