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372 सालों से सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है कुल्लू दशहरा
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372 सालों से सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है "कुल्लू दशहरा"

स्वदेश डेस्क
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5 Oct 2022 7:19 PM IST

प्रधानमंत्री प्रोटोकॉल तोड़ भीड़ में घुसे

कुल्लू। बुरे पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयदशमी या दशहरा के उत्सव के साथ, शक्ति का नौ दिवसीय उत्सव देश के सभी हिस्सों में समाप्त हो गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के अन्य हिस्सों के विपरीत, भारत में एक ऐसा राज्य है जो अपने नवरात्रि समारोह की शुरुआत तब करता है जब देश के बाकी हिस्सों में त्योहारों का समापन हो रहा होता है।हम बात कर रहे हैं 'कुल्लू दशहरा महोत्सव' की, जो "विजय दशमी" से शुरू होता है। यह पर्व दशहरे के दिन से शुरू होकर एक सप्ताह तक चलता है। आज विजयादशमी के पावन पर्व पर कुल्लू में ये उत्सव शुरू हो गया है। इस वर्ष कुल्लू वासियों के लिए गर्व का विषय यह रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस देव महाकुंभ के साक्षी बने ओर उन्होंने भगवान रघुनाथ जी के दर्शन किए।


उत्सव का इतिहास -

इस उत्सव की शुरुआत 16 वीं और 17वीं शताब्दी में मानी जाती है। जब इस कुल्लू घाटी में राजाओं का शासन था।एक कथा के अनुसार तत्कालीन राजा राजा जगत सिंह ने अपने श्राप को मिटाने के लिए एक ब्राह्मण की सलाह पर भगवान रघुनाथ की मूर्ति को अपने सिंहासन पर स्थापित किया।ऐसा माना जाता है कि अपने शासन काल में एक दिन राजा को कुल्लू के एक पुजारी के बारे में पता चला जिसके पास कीमती मोती थे। अपने लालच में उसने किसान को मोती सौंपने या फिर फांसी पर लटकाने का आदेश दिया। पुजारी ने यातना और अपमान के डर से अपने और अपने परिवार के साथ अपने घर में आग लगा दी और राजा को शाप दिया। अपराध और आत्म-घृणा से, राजा जगत सिंह ने मतिभ्रम करना शुरू कर दिया। ब्राह्मण की आत्मा उसे सताती रही।

अंत में, कृष्ण दत्त की सलाह पर, राजा ने अयोध्या से भगवान रघुनाथ की एक मूर्ति प्राप्त की। अयोध्या से लाई गई इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और तभी से उसने अपना जीवन और पूरा साम्राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया .इसके बाद, भगवान रघुनाथ को घाटी के शासक देवता घोषित किया गया, तभी से यहां दशहरा पूरी धूमधाम से मनाया जाने लगा।

उत्सव की विशेषता -

  • उत्सव की शुरुआत लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ की पावन सवारी को मोटे मोटे रस्सों से खींचकर होती है।
  • भगवान राम के साथ अन्य देवताओं को भी नगर भ्रमण पर ले जाया जाता है।
  • यहां के दशहरे में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाते हैं।
  • यहां काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच जानवरों की बलि दी जाती है।
  • दशहरे उत्सव के अंतिम दिन नदी किनारे लकड़ी की सांकेतिक लंका का दहन किया जाता है।
  • रथ में भगवान राम के साथ माँ सीता और भीमसेन की पत्नी हिडिंबा को बैठाया जाता है।
  • रथ को एक से दूसरी जगह ले जाया जाता है, जहां यह रथ 6 दिन तक ठहरता है।
  • उत्सव के 6ठें दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आकर मिलते हैं जिसे 'मोहल्ला' कहते हैं। सारी रात लोगों का नाच-गाना चलता है।
  • 7वें दिन रथ को व्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंकादहन का आयोजन होता है।

प्रधानमंत्री प्रोटोकॉल तोड़ भीड़ में घुसे -


इस वर्ष इस उत्सव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया है। भगवान रघुनाथ जी की शोभायात्रा रथ मैदान पहुंची व पुजारियों द्वारा भगवान रघुनाथ जी को रथ पर विराजमान किया गया।इस दौरान पीएम मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर रघुनाथ जी के रथ तक पहुंचे और उनका आशीर्वाद लिया।यहां कुल्लुवी परंपरा के अनुसार रघुनाथ जी के कारदार दानवेंद्र सिंह द्वारा बागा व कुल्लुवी टोपी भेंट प्रधानमंत्री को भेंट की गई।मोदी कुल्लू दशहरा उत्सव में शामिल होने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। कुल्लू में 47 मिनट रुकने के बाद मोदी दिल्ली लौट गए।


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