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शरीर में टीबी न करें नजरअंदाज, वरना प्रभावित हो सकती है आंख...
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शरीर में टीबी न करें नजरअंदाज, वरना प्रभावित हो सकती है आंख...

Swadesh Digital
|
23 Aug 2024 11:30 AM IST

दृष्टि में धुंधलापन, प्रकाश संवेदनशीलता, सिरदर्द, चमक, आंख की लाली जैसे लक्षण होने पर फौरन दिखाएं आंख विशेषज्ञ को। दो महीने तक टीबी की दवा खाई तो आंखों में रोशनी नहीं रही, समय पर सही जांच और इलाज करवाने से बच सकती है आंख।

अतुल मोहन सिंह लखनऊ। शरीर में क्षयरोग या तपेदिक (टीबी) हो तो उसे नजरअंदाज न करें। इससे आपकी आंखें भी प्रभावित हो सकती हैं। आपकी दृष्टि में धुंधलापन, प्रकाश संवेदनशीलता, सिरदर्द, चमक, आंख की लाली जैसे लक्षण होने पर आंख विशेषज्ञ को फौरन दिखाएं। समय पर सही जांच और इलाज करवाने से आपकी आंख बच सकती है। लखनऊ के अर्जुनगंज निवासी रामपाल को फेफड़े की टीबी हो गई। दो महीने तक दवा खाई तो आंखों में रोशनी नहीं रही। डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि टीबी का बैक्टीरिया आंखों में भी पहुंच चुका है। डॉक्टर की सलाह पर छह महीने जमकर दवा खाई। टीबी तो ठीक हो गई, लेकिन आंखों में रोशनी नहीं आई। रामपाल तो महज एक मिसाल भर है, ऐसे मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। टीबी की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के केस फेफड़ों की टीबी के केस की तुलना में एक तिहाई हैं। रिपोर्ट बताती है कि फेफड़े की टीबी के उत्तर प्रदेश में बीते साल कुल 3,41,444 आए जबकि इसी दौरान एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के 1,12,268 से अधिक केस प्रदेश में पाए गए हैं।

शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती टीबी

बाल और नाखून के अलावा टीबी शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। फेफड़े और आंत की टीबी तो पकड़ में आ जाती है पर शरीर के अन्य हिस्सों में हुए संक्रमण का पता बहुत देर से चलता है। दिमाग, हड्डी, स्पाइन, जेनाइटल अंगों के साथ आंखों की टीबी (इंट्राऑकुलर टीबी) तेजी से बढ़ रही है। आँख की टीबी की पहचान न हो पाना डॉक्टरों के लिए चुनौती बना हुआ है। अगर किसी की दृष्टि में धुंधलापन, प्रकाश संवेदनशीलता, सिरदर्द, चमक, आंख की लाली जैसे लक्षण हैं तो उसे फौरन आंख विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए। ये टीबी के लक्षण हो सकते हैं। समय से इलाज न हो पाने पर आंखों की रोशनी जा सकती है। यहां तक की आंख पूरी तरह खराब भी हो जाती है। अगर विशेषज्ञ की बात मानकर जांच व इलाज करा लिया जाए तो इन समस्याओं से बचा जा सकता है।

- डॉ.शैलेंद्र भटनागर, राज्य टीबी अधिकारी

- डॉ.शैलेंद्र भटनागर, राज्य टीबी अधिकारी

हर माह आ रहे पांच से छह टीबी के मरीज

आँख की टीबी किसी भी उम्र और किसी भी लिंग में हो सकती है। आंखों की टीबी के कुछ मरीज हैं जिनकी पहचान हो पाती है जबकि जागरूकता और डायग्नोसिस के अभाव में बहुत से मरीजों की पहचान नहीं हो पाती है। सबसे बड़ी चुनौती इन रोगियों में टीबी की दवा का शुरू करना है, क्योंकि चिकित्सकों को टिशु पॉजिटिव साक्ष्य की जरूरत होती है। यह केवल रोगी की आंख से नमूना लेने से ही संभव होगा जो आमतौर पर अत्यंत आवश्यक होने तक नहीं किया जाता है। इसलिए मरीजों का इलाज डॉक्टर अपने क्लीनिक अनुभव और दूसरे टेस्ट के आधार पर करते हैं। कभी-कभी जब चिकित्सक टीबी की दवा शुरू करने से इनकार करते हैं तो नेत्र रोग विशेषज्ञों को रोगी के हित में दवा शुरू करना पड़ता है। उनकी प्रैक्टिस में हर माह पांच से छह मरीज आंखों की टीबी के आ रहे हैं।

- डॉ.इंद्रनिल साहा, सीनियर परामर्शदाता, सीतापुर नेत्र चिकित्सालय

- डॉ.इंद्रनिल साहा, सीनियर परामर्शदाता, सीतापुर नेत्र चिकित्सालय

नेत्रों में टीबी से सर्वाधिक है दिव्यांगता का खतरा

कई केस में फेफड़ों की टीबी न होने पर भी आंखों में टीबी हो रही है। इसके लिए जरूरी है कि मरीज की स्क्रीनिंग करने के साथ पीसीआर जांच कराई जाए। शुरुआती लक्षण को कंजेक्टिवाइटिस समझ कर इलाज होता है, जबकि इसमें आंखों में दिव्यांगता का खतरा सर्वाधिक है। मोतियाबिंद, ग्लूकोमा के बाद अंधता की प्रमुख वजह यह है। जिन्हें टीबी है, उनकी आंखों में टीबी का खतरा अधिक होता है। कई बार व्यक्ति को टीबी का संक्रमण नहीं होने पर भी आंखों की टीबी होती है।

- डॉ.अंजुम मझारी, विभागाध्यक्ष, कॉर्निया एंड रिफ्रैक्टिव सर्जरी, इंदिरा गांधी नेत्र चिकित्सालय, लखनऊ

- डॉ.अंजुम मझारी, विभागाध्यक्ष, कॉर्निया एंड रिफ्रैक्टिव सर्जरी, इंदिरा गांधी नेत्र चिकित्सालय, लखनऊ


BY - अतुल मोहन सिंह

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