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डॉ. भागवत बोले- हमें फिर से सोने की चिड़िया नहीं, बल्कि शेर बनना है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत

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भारत को भारत ही रहना चाहिए: डॉ. भागवत बोले- हमें फिर से सोने की चिड़िया नहीं, बल्कि शेर बनना है

Gurjeet Kaur
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28 July 2025 8:19 AM IST

कोच्चि। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि योगी अरविंद ने कहा था कि 'सनातन धर्म का उत्थान ईश्वर की इच्छा है और सनातन धर्म के उत्थान के लिए हिंदू राष्ट्र का उदय अपरिहार्य है। ये उनके शब्द हैं, और हम देखते हैं कि आज की दुनिया को इस दृष्टिकोण की आवश्यकता है, इसलिए हमें पहले यह समझना होगा कि भारत क्या है। उन्होंने कहा कि भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है, इसका अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए, हमें बोलते और लिखते समय 'भारत' को भारत ही रखना चाहिए। 'इंडिया जो भारत है', सत्य है। लेकिन 'भारत' तो 'भारत' है।

डॉ. भागवत का मानना है कि भारत की पहचान का सम्मान इसलिए है क्योंकि 'भारत' है। उन्होंने कहा कि अगर यह आप अपनी पहचान खो देते हैं तो आपके शेष गुणों का कोई मान नहीं रहेगा, दुनिया में आपको सम्मान और सुरक्षा नहीं मिलेगी। यह एक सीधा नियम है।

डॉ. भागवत शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की ओर से आयोजित शिक्षा सम्मेलन ज्ञानसभा को संबोधित कर रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने कहा कि हमें फिर से सोने की चिड़िया नहीं बनना है, बल्कि हमें शेर बनना है। उन्होंने कहा कि दुनिया शक्ति की बात समझती है और भारत को हर दृष्टि से शक्ति संपन्न बनना होगा।

उन्होंने कहा कि विकसित भारत, विश्वगुरु भारत कभी भी युद्ध का कारण नहीं बनेगा, कभी शोषण नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि हम मैक्सिको से सायबेरिया तक गए हैं, पैदल चले हैं, छोटी नावों में गए हैं। हमने किसी के क्षेत्र पर आक्रमण करके उसे बर्बाद नहीं किया।

किसी का राज्य नहीं हड़पा, बल्कि हमने सभी को सभ्यता सिखाई। उन्होंने कहा कि आप भारतीय ज्ञान परंपरा को देखिए। परंपरा का मूल उस सत्य में है जो पूरे विश्व की एकता का सत्य है।

भारतीय शिक्षा प्रणाली केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं

डॉ. भागवत ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन में दूसरों के लिए जीने और त्याग करने की भावना भी सिखाती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो इंसान को कहीं भी, अपने दम पर जीने की क्षमता दे। शिक्षा का असली उद्देश्य केवल नौकरी ही नहीं बल्कि ऐसा होना चाहिए कि व्यक्ति आत्मज्ञान करे और कौशल के आधार पर जीवन यापन कर सके।

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