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Success Story of द कबाड़ीवाला’:  इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर किया ये काम..! आज देश भर में है चर्चा
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Success Story of 'द कबाड़ीवाला’: इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर किया ये काम..! आज देश भर में है चर्चा

Anjali Pandey
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18 May 2024 3:22 PM IST

Success Story: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए नहीं बल्कि यहां के युवाओं की कहानियों के लिए भी जानी जाती है।

Success Story The Kabadiwala: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए नहीं बल्कि यहां के युवाओं की कहानियों के लिए भी जानी जाती है। हम बात कर रहे हैं 'द कबाड़ीवाला' की। नाम सुन कर तो समझ ही गए होंगे। इनकी कहानी सिर्फ भोपाल के ही नहीं बल्कि देश के सभी यूथ के लिए इंस्पिरेशन है। आइए जानते हैं कौन है कबाड़ीवाला ?

क्या है आखिर कबाड़ीवाला


भोपाल के ये 2 युवा जिनके पास कभी कॉलेज की फीस जमा करने तक के पैसे नहीं थे, लेकिन बस में बैठे आया एक आइडिया ने दोनों की किस्मत बदल दी। एक दोनों मिलकर न सिर्फ लोगों की कबाड़ की समस्या को खत्म किया, बल्कि साबित कर दिया कि स्टार्टअप के लिए पैसा, प्लान की नहीं, बल्कि मेहनत और लगन की जरूरत होती है। आज इनका सालाना टर्नओवर 10 करोड़ रुपए से ज्यादा है। इसके साथ ही इनकी कंपनी 300 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे रही है।

कौन है कबाड़ीवाला


2014 में आईटी इंजीनियर अनुराग असाटी और कविंद्र रघुवंशी ने 'द कबाड़ीवाला' स्टार्टअप शुरू किया। दोनों ने कड़ी मेहनत कर एक वेबसाइट तैयार की। जिसके बाद दोनों ने जीरो से शुरुआत कर धीरे धीरे सीखते गए। इसके बाद कॉल पर ऑर्डर आने लगे। उसकी किस्मत का सिक्का चला और उन्हें मुंबई की इन्वेस्टर फर्म से 15 करोड़ रुपए की बड़ी फंडिंग मिली। बतादें कि, राजधानी में यह पहला मौका था जब किसी कबाड़ीवाले को बिजनेस स्टार्टअप में इतनी बड़ी फंडिंग मिली हो।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर बने कबाड़ी वाले


जानकारी के लिए बतादें कि, अनुराग ने भोपाल में स्थित ओरिएंटल कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। जहां उनके पास इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस जमा करने तक के पैसे नहीं होते थे। पहले से ही उनके ऊपर लोन चल रहा था। पर फिर भी जैसे तैसे कर अपनी पढ़ाई उन्होंने पूरी की।

देश भर में है चर्चा

अनुराग और कविंद्र ने अपने काम का जिक्र दो साल तक अपने परिवार वालो से नहीं किया। स्टार्टिंग में दोनों ने खुद घरों से आने वाली बुकिंग पर कबाड़ उठाने जाते थे। वहीं जब काम आगे बढ़ा और प्रोग्रेस होने लगी तो फिर उन्होंने अपने परिजनों को अपने काम के बारे में बताया। काम को सुन परिजनों ने भी उनका साथ दिया। आज दोनों की सिर्फ भोपाल में ही नहीं बल्कि पूरे देश में जाना जाता है।

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