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अर्थव्यवस्था
वैश्विक अर्थव्यवस्था में दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी मंदी आएगी-भारत पर भी इसका असर
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वैश्विक अर्थव्यवस्था में दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी मंदी आएगी-भारत पर भी इसका असर

Swadesh Digital
|
9 Jun 2020 11:45 AM IST

नई दिल्‍ली। कोविड-19 की महामारी को लेकर विश्‍व बैंक ने बड़ी चिंता जाहिर की है। विश्‍व बैंक ने कहा कि इसकी वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में दूसरे विश्व युद्ध के बाद की मंदी आएगी। विश्‍व बैंक ने अनुमान लगाया गया है कि इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 5.2 फीसदी की गिरावट आ जाएगी। वहीं, भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर इसका असर पड़ेगा और इसमें 3.2 फीसदी की गिरावट आएगी।

विश्व बैंक के प्रेसिडेंट डेविड मलपास ने सोमवार देर रात जारी ग्लोबल इकॉनोमिक प्रॉस्पैक्ट की भूमिका में कहा कि 1870 के बाद यह पहला मौका होगा, जब महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी आएगी। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इस साल विकसित देशों की अर्थव्यवस्था 7 फीसदी सिकुड़ जाएगी और विकासशील देशों की अर्थव्‍यवस्‍था में भी 2.5 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

विश्व बैंक ने इस बात की आशंका जताई है कि कोरोना वायरस की महामारी और देशव्‍यापी लॉकडाउन की वजह से चालू वित्‍त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में 3.2 फीसदी की गिरावट आएगी। बता दें कि ये दर 2017 में 7 फीसदी थी, जो कि 2018 में घटकर 6.1 फीसदी रह गई। वहीं, वित्‍त वर्ष 2019-20 में यह और भी घटी और 4.2 फीसदी पर जा पहुंची। यानी कोरोना वायरस और लॉकडाउन का असली असर इस वित्त वर्ष में देखने को मिलेगा।

विश्‍व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक प्रति व्यक्ति आय में भी 3.6 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है। इसकी वजह से करोड़ों लोगों को गरीबी की मार झेलनी पड़ेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन देशों में गरीबी की मार सबसे अधिक होगी, जो पर्यटन और निर्यात पर अधिक निर्भर हैं और जहां पर कोरोना वायरस सबसे अधिक फैला है।

उल्‍लेखनीय है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में 1870 के बाद अब तक कुल 14 बार मंदी आई है। ये मंदी 1876, 1885, 1893, 1908, 1914, 1917-21, 1930-32, 1938, 1945-46, 1975, 1982, 1991, 2009 और 2020 में आई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 1870 के बाद अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े हिस्से में सालाना पर कैपिटा जीडीपी में गिरावट आएगी। इस साल अर्थव्‍यवस्‍था का 90 फीसदी हिस्सा मंदी से प्रभावित होगा। दरअसल 1930-32 में अर्थव्यवस्था का करीब 85 फीसदी हिस्सा मंदी की चपेट में था।

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