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मौसम के साथ बदलता रंग, खारून-शिवनाथ संगम पर सोमनाथ धाम का चमत्कार
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1500 साल पुराना स्वयंभू शिवलिंग: मौसम के साथ बदलता रंग, खारून-शिवनाथ संगम पर सोमनाथ धाम का चमत्कार

Deeksha Mehra
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14 July 2025 10:26 AM IST

1500 years old self-created Shivling Raipur : प्रदीप सिन्हा, रायपुर। आज 14 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। छत्तीसगढ़ के सभी शिव मंदिरों में सुबह से ही भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। रायपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर, रायपुर-बिलासपुर हाईवे पर सिमगा गांव में स्थित सोमनाथ धाम शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। सावन मास में यह प्राचीन शिव मंदिर भक्तों से गुलजार हो जाता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां का शिवलिंग मौसम के अनुसार रंग बदलता है, जो भक्तों के लिए आश्चर्य और श्रद्धा का विषय है।

शिवलिंग का अनोखा चमत्कार

सोमनाथ धाम के स्वयंभू शिवलिंग के बारे में भक्तों का मानना है कि यह गर्मियों में लाल, बरसात में भूरा, और सर्दियों में काला हो जाता है। यह प्राकृतिक चमत्कार श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है और उनकी भक्ति को और गहरा करता है। माना जाता है कि यह शिवलिंग लगभग 1500 वर्ष पुराना है और 8वीं शताब्दी से इस मंदिर का अस्तित्व है। खरसिया और शिवनाथ नदियों के संगम पर स्थित यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक माहौल

सावन मास में सोमनाथ धाम का प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। नदियों के संगम पर बसा यह मंदिर बारिश के मौसम में हरियाली और लहरों के साथ मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। मंदिर के समीप पार्वती घाट पर श्रद्धालु पूजा-अर्चना के बाद नौकाविहार का आनंद लेते हैं। सावन के सोमवारों में मंदिर परिसर में "हर-हर महादेव" के जयकारे गूंजते हैं, और पूरा माहौल शिवमय हो जाता है।

कांवड़ यात्रा और जलाभिषेक

सावन के पहले सोमवार को देश के कोने-कोने से कांवड़िए गंगाजल लेकर सोमनाथ धाम पहुंचते हैं। वे भगवान शिव का जलाभिषेक कर अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। मंदिर प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सुरक्षा, स्वच्छता, और यातायात के पुख्ता इंतजाम किए हैं। सावन मास में यहां भजन-कीर्तन और विशेष पूजा-अर्चना के आयोजन भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।

मंदिर का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

सोमनाथ धाम का ऐतिहासिक महत्व भी अद्वितीय है। 8वीं शताब्दी से अस्तित्व में होने के कारण यह मंदिर छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। खरसिया और शिवनाथ नदियों का संगम इसे प्राकृतिक और आध्यात्मिक रूप से विशेष बनाता है। सावन मास में यह स्थल शिवभक्ति, प्रकृति, और संस्कृति के संगम का प्रतीक बन जाता है।

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