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मंत्री कुंवर विजय शाह के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका, पद से हटाने की मांग

मंत्री कुंवर विजय शाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

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संविधान के खिलाफ आचरण: मंत्री कुंवर विजय शाह के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका, पद से हटाने की मांग

Gurjeet Kaur
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23 July 2025 3:49 PM IST

Petition in Supreme Court to Remove Minister Vijay Shah from Post : दिल्ली/भोपाल। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के मंत्री कुंवर विजय शाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। मंत्री शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी को "आतंकवादियों की बहन" कहने वाली टिप्पणी की थी। याचिकाकर्ता शाह को मंत्री पद से हटाने की मांग कर रहे हैं क्योंकि उनके आचरण ने संविधान के अनुच्छेद 164(3) का उल्लंघन किया है।

कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की है। कर्नल सोफिया कुरैशी पाकिस्तानी आतंकवादी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना द्वारा किए गए सैन्य अभियानों के बारे में प्रेस वार्ता देने के बाद 'ऑपरेशन सिंदूर' का चेहरा बन गई थीं।

मंत्री विजय शाह ने एक कार्यक्रम में यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था, "जिन लोगों ने हमारी बेटियों के सिंदूर उड़ाए थे... हमने उनकी बहन भेजकर उनकी ऐसी की तैसी करवायी।" ठाकुर द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में शाह को इस आधार पर मंत्री पद से हटाने की मांग की गई है कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 164(3) के तहत ली गई शपथ का उल्लंघन किया है।

गौरतलब है कि, संविधान की तीसरी अनुसूची संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान के स्वरूप निर्धारित करती है। याचिका के अनुसार, शाह द्वारा दिया गया बयान मुस्लिम समुदाय में अलगाववादी भावनाओं को भड़काता है और भारत की एकता के लिए खतरा पैदा करता है।

याचिका में कहा गया है कि, "मंत्री का यह बयान कि कर्नल सोफिया कुरैशी पहलगाम में हमला करने वाले आतंकवादी की बहन हैं, किसी भी मुस्लिम व्यक्ति में अलगाववादी भावना का आरोप लगाकर अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देता है, जिससे भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरा है। यह भाषण भारतीय संविधान की अनुसूची 3 के तहत निर्धारित शपथ का सीधा उल्लंघन है।"

याचिका में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि, इस तरह का आचरण तहसीन पूनावाला मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया था कि घृणा अपराध और सांप्रदायिक हिंसा कानून के शासन और संवैधानिक नैतिकता के विपरीत हैं।

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