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बिहार: जलप्रलय में बह गए 13 लोग, 13 साल बाद भी न जिंदा मिले, ना ही मुर्दा
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बिहार: जलप्रलय में बह गए 13 लोग, 13 साल बाद भी न जिंदा मिले, ना ही मुर्दा

Swadesh Digital
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2 Aug 2020 11:30 AM IST

बेगूसराय । दो अगस्त 2007 की उस काली रात की कहानी सूबे की सरकार और बिहार के लोग भले ही भूल जाएं लेकिन बेगूसराय और खगड़िया जिले के लोग 13 साल बाद भी प्रकृति के इस बाढ़ रुपी प्रलय को नहीं भूल पाएंगे। खासकर चेरिया बरियारपुर प्रखंड के बसही गांव के लोग गुरुवार दो अगस्त 2007 की देर शाम को याद कर सिहर उठते हैं। जब गांव के लोग खाना खाने की तैयारी में थे, तभी बूढ़ी गंडक नदी का बायां तटबंध टूट गया।

बूढ़ी गंडक नदी ने जब अपनी धारा बदली तो साही (मिट्टी में बिल बनाकर रहने वाला जानवर) के बिल से जर्जर बांध के टूटने से क्षेत्र के हजारों परिवारों की जीवनधारा ही बदल गई। दो अगस्त की देर शाम करीब सात बजे जब बूढ़ी गंडक नदी का बांध बसही के समीप टूटा तो यहां के बाढ़ से अनभिज्ञ लोग कुछ समझ नहीं पाए और दूर भागने के बजाय घर के ऊपर चढ़ गए। नदी के हाहाकार मचाते पानी के रेला के सामने आए सभी घर बह गए।

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 19 लोग पानी में बह गए (ग्रामीण 25 से अधिक बताते हैं)। बांध टूटते ही प्रशासन और जिले के लोग तुरंत सक्रिय हो गए और रातों-रात सैकड़ों लोगों को किसी तरह सुरक्षित निकाला गया। छह लोगों की लाशें बरामद की गईंं, जबकि 13 व्यक्ति 13 साल बाद भी आज तक ना जिंदा मिल सके और ना ही मुर्दा।

प्रशासन ने घटना के सात साल बाद 2014 में गायब उन सभी 13 लोगों को मृत माना और परिजनों को एक-एक लाख रुपए का मुआवजा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली। लेकिन उस जल प्रलय में अपने तीन बेटों को खो चुके रामाशीष महतो और उनकी पत्‍‌नी माया देवी की जिंदगी जिंदा लाश बन गई। उनके तीनों बेटे आंखों के सामने बाढ़ में बह गए। तीनों का पता आज तक नहीं चल सका है। प्यारेलाल दास की आंखें आज तक लापता पत्‍‌नी और पुत्री की याद में पथराई हुई हैं। बसही समेत पूरे चेरिया बरियारपुर को तबाह करने के बाद इस पानी ने मंंझौल एवं बखरी अनुमंडल तथा खगड़िया शहर को तबाह कर दिया। लाखों लोग प्रभावित हुए। बसही पूरी तरह से तबाह हो गया, लोग अपनी जान के अलावा कुछ नहीं बचा सके।

तत्कालीन मुखिया संजय कुमार सुमन बतातेे हैं कि वह बाढ़ नहीं प्रलय था। इलाका पूरी तरह से तबाह हो गया, हजारों एकड़ खेत बर्बाद हो गए, कई लोग तेेज धार में बह गए। सरकार ने बसही के विस्थापित लोगों को जमीन देकर घर बनवा दिया, लेकिन खेत मेंं अभी भी तीन-तीन फीट बालू जमा है। सब कुछ खो चुके लोगों ने नए स्तर से अपनी जिंदगी जीनी शुरू कर दी, लेकिन दर्द वैसा ही है। प्रशासनिक व्यवस्था और को-ऑर्डिनेशन ठीक नहीं रहने के कारण यहां प्रजातंत्र की परिभाषा निरर्थक साबित हो रही है। 13 साल बाद भी बांध हर साल डराता है। बांध की बोल्डर पिचिंग नहीं की गयी है, जिसके कारण हर साल बाढ़ की स्थिति रहती है। बाढ़ और बारिश का समय है अभी । डरे -सहमे लोग दस दिनों से सो नहीं पा रहे हैं, रतजगा हो रहा है।

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